कल आएगा तीन तलाक पर सुप्रीम फैसला, एक नज़र में लीजिए ज्ञान

नई दिल्ली : कल का दिन न्याय शास्त्र और भारतीय संविधान के हिसाब से तो अहम है ही देश की राजनीति भी इसके बाद ऐसी गरमाएगी कि सालों तक ये मुद्दा खबरों के केन्द्र में रहेगा. कल   सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ तीन तलाक के मुद्दे पर अपना अहम फैसला दे सकती है. इस खंड पीठ में सभी धर्मों के जस्टिस शामिल हैं जिनमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कुरियन जोसफ (क्रिश्चिएन), जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन (पारसी), जस्टिस यूयू ललित (हिंदू) और जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) शामिल हैं. इस मामले पर शीर्ष अदालत में 11 से 18 मई तक सुनवाई चली थी जिसमें मुस्लिम समुदाय में चल रही प्रथा तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह संविधान सम्मत होने को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनावई हुई.

बेहद बेताव है सुप्रीम कोर्ट

तीन तलाक पर सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट कितना व्यग्र है और इसकी अहमियत क्या है इसका अंदाज़ा आप के इस बात से लगा सकते है कि कोर्ट ने इस मुद्दे पर गर्मियों की छुट्टी के दौरान भी सुनवाई जारी रखी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अकील जमील की उस याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया था जिसमें उसकी पत्नी ने अकील के खिलाफ आपराधिक शिकायत कराई थी. उसने अपने पति अकील पर दहेज के लिए मारपीट करने और जब मांगें पूरी ना होने पर तीन तलाक देने के चलते केस दर्ज किया था.

वैधानिकता पर होगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था वह मुस्लिमों में चल रहे तीन तलाक, निकाह हलाल और बहु विवाह की वैधानिकता से संबंधित मुद्दों पर फैसला करेगा. उधर, सुप्रीम कोर्ट में अपनी ओर से दिए गए हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है. अदालत में सुनवाई के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने माना था कि वे सभी काजियों को एडवाइजरी जारी करेगा ताकि वे ट्रिपल तलाक पर न केवल महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें. अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई हैं.

पर्सनल लॉ बोर्ड से सवाल

इससे पहले 18 मई को सुनवाई के आखिरी दिन शीर्ष अदालत ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से पूछा था कि क्या निकाह के समय ‘निकाहनामा’ में महिला को तीन तलाक के लिए ‘ना’ कहने का विकल्प दिया जा सकता है? चीफ जस्टिस खेहर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल से पूछा- क्या ये संभव है कि किसी महिला को निकाह के समय ये अधिकार दिया जाए कि वह तीन तलाक को स्वीकार नहीं करेगी? कोर्ट ने पूछा कि क्या एआईएमपीएलबी सभी काजियों को निर्देश जारी कर सकता है कि वे निकाहनामा में तीन तलाक पर महिला की मर्जी को भी शामिल करें.

जिद पर अड़ा केन्द्र

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से सुनवाई के दौरान कहा था, ‘अगर शीर्ष अदालत तुरंत तीन तलाक के तरीके को निरस्त कर देती है तो केंद्र सरकार मुस्लिम समुदाय के बीच शादी और तलाक के नियमन के लिए एक कानून लाएगी.’ मुकुल रोहतगी ने ये बातें तब कही, जब अदालत ने उनसे पूछा कि अगर तीन तलाक के तरीके निरस्त कर दिए जाएं तो शादी से निकलने के लिए किसी मुस्लिम मर्द के पास क्या तरीका होगा?

क्या है पूरा केस ?

मार्च 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी. बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है. कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है. वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं. यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है. अब पूरे देश की निगाह तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के आनवाले फैसले पर टिकी हुई है.