ये है असली ‘पैडमैन’ की कहानी, अक्षय कुमार की फिल्म का असली हीरो

नई दिल्ली : फिल्म ‘पैडमैन’ में अक्षय कुमार महिलाओं के लिए सस्ते सैनिटरी नैपकिन्स बनाने के तरीके ढूंढ़ते नजर आएंगे. उनके किरदार का नाम लक्ष्मीकांत चौहान है जो कोयंबटूर के रहने वाले अरुणाचलम मुरुगनाथम से प्रेरित है. मुरुगनाथम ने पहली बार देश में महिलाओं के लिए कम कीमत वाले सैनिटरी पैड बनाएं. ट्विंकल ने अपनी किताब ‘द लीजेंड ऑफ लक्ष्मी प्रसाद’ में अरुणाचलम मुरुगानंदम् का जिक्र किया है.  यहां हम आपके लिए ला रहे हैं पूरी कहानी उस असली पैडमैन की….

जब-जब जिसने सोसायटी को बदलने की कोशिश की है तब-तब उसे मुसीबत झेलनी पड़ी है. ये कहानी है ऐसे इनसान की जिसे उसकी धुन के कारण पत्नी ने छोड़ दिया,  जिसे देखकर लोग छिपने लगते थे. जिसकी अजीब सी आदत ने उसे दुनिया में सबसे घृणित व्यवहार झेलने को मजबूर किया आखिर उसी शख्स ने दुनिया से अपना लोहा मनवा लिया. आज उसकी गिनती  ऐसे शख्स की जो आम होते हुए भी खास है. टाइम मैगज़ीन ने उसे दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में माना.  इस शख्स का वीडियो 23 घंटों में ही इस वीडियो को 33 लाख से भी ज्यादा बार देखा गया और करीब 35 हजार बार शेयर किया गया है.

प्यार की प्रेरणा से बदली ज़िदंगी

दक्षिण भारतीय अरुणाचलम् मुरुगानंदम्नंदम् अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता था. हर रोज़ अपनी पत्नी को नये तोहफे लाकर देता. उसे बड़ा दुख हुआ जब पता चला कि वो पत्नी के लिए सैनिटरी पैड खरीद पाने की स्थित में नहीं थीं इसलिए उन्हें महीने के उन दिनों में पुराने तरीकों का इस्तेमाल करना पड़ता था जो साफ सफाई के नज़रिये से ठीक नहीं थे. पत्नी की मदद करने कि लिए अरुणाचलम् ने खुद एक सस्ता सैनिटरी पैड डिजायन करने का निर्णय लिया जिसे वो अपनी पत्नी को तोहफे में देकर इंप्रेस करना चाहते थे.

ये आसान काम नहीं था

बाजार में उपलब्ध दूसरे सैनिटरी पैड्स की ही तरह  एक सस्ता पैड बनाना चाहते थे. इसके लिए वो कॉटन रोल लाए और उसके साथ उन्होंने इसपर काम करना शुरू कर दिया. दो दिन में जाकर उन्होंने एक पैड तैयार कर लिया, और अपनी पत्नी को इस्तेमाल करने दिया. पत्नी को वो पैड जरा भी पसंद नहीं आया. उन्होंने कहा कि वो कपड़ा ही इस्तेमाल करेंगी, क्योंकि ये पैड बिलकुल बेकार है. अब मुरुगानंदम् इसे सुधारने कि लिए फिर से जुट गए. वो अलग-अलग सामग्री के साथ एक्सपैरिमेंट करने लगे. वो जांच के लिए पैड्स अपनी पत्नी को देते, लेकिन इन नए-नए पैड्स की जांच करने के लिए उन्हें एक महीने का इंतजार करना पड़ता था, जो काफी लंबा समय था. इसलिए उन्होंने अपने गांव के ही एक विश्वविद्यालय की मेडिकल छात्राओं को इन पैड्स को टेस्ट करने के लिए कहा. छात्राओं ने उन्हें इस्तेमाल तो किया लेकिन शर्म की वजह से वो उसके बारे में ज्यादा कुछ बता नहीं पाईं.

एक अजीब फैसला

मुरुगानंदम् के पास कोई चारा नहीं था और उन्होंने एक हैरान करने वाला फैसला लिया. उन्होंने खुद उस पैड को पहनकर जांच करने की ठान ली. एक रबड़ के ब्लैडर से नकली यूट्रस बनाया गया जिसे ट्यूब की मदद से पैड से जोड़ा गया, और ब्लैडर में जानवर का खून भर लिया गया. दबाब पड़ने पर खून स्राव वैसा ही होता जैसा महावारी में होता है.

 

वो ब्लैडर पहनकर ही रहते, नतीजा ये हुआ कि उनके शरीर से दुर्गंध आती और कपड़ों पर अक्सर खून के दाग पाये जाते. पड़ोसियों ने बातें बनाना शुरू कर दिया, लोग उन्हें पागल तक कहने लगे. जब लोगों की बातें बर्दाश्त से बाहर हो गईं तो उन्की पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गईं. पत्नी को लगा कि वो चली जाएंगी तो मुरुगानंदम् ये सब करना बंद कर देंगे. लेकिन वो जुटे रहे. अपने काम में सफलता तो नहीं बल्कि तलाक का नोटिस जरूर मिला गया. मुरुगानंदम् ने फिर भी हार नहीं मानी और शोध करते रहे. अपने शोध में उन्होंने पाया कि भारत की केवल 10 से 20 प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं ही महावारी के लिए हाइजीनिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं. वो अब इस मिशन पर जुट गए कि उन्हें भारत की हर महिला तक कम कीमत वाले सैनिटरी पैड्स उपलब्ध कराने हैं.

मेहनत रंग लाई

अपने सैनिटरी पैड के लिए सही सामग्री खोजने में उन्हें दो साल लग गए. और इस योजना को साकार रूप देने के लिए उन्होंने करीब 4 सालों में आसानी से चलने वाली तीन मशीनें भी तैयार कीं. जिनका इस्तेमाल कर कोई भी महिला अच्छे और सस्ते सैनिटरी पैड्स तैयार कर सकती है. बाजार में मिलने वाले सैनिटरी पैड्स की आधी कीमत में ये पैड्स तैयार हो गए.

अब महिलाएं उनकी बनाई मशीनें खरीद सकती हैं और खुद के सैनिटरी पैड्स बनाकर बेच सकती हैं. मुरुगानंदम् की इन मशीनों ने गांव में रहने वाली महिलाओं को रोजगार प्रदान किए. देश के 27 राज्यों में 1300 मशीनों पर ये पैड्स तैयार किए जाते हैं. मुरुगानंदम् ने अब ये पैड्स दूसरे देशों में निर्यात भी करने शुरू कर दिए हैं. कई कंपनियों ने मुरुगानंदम् से उनकी मशीनें खरीदनी चाही लेकिन उन्होंने अपनी मशीनें किसी कंपनी को नहीं बेचीं. वो अपनी मशीनें केवल महिलाओं की स्वयं सेवी संस्थाओं को ही देते हैं.

आज मुरुगानंदम् एक जाना माना नाम हैं. ये उनकी मेहनत, लगन और महिलाओं की मदद करने की भावना ही थी जिसने उन्हें टाइम्स मैगजीन 2014 के सौ प्रभावित करने वाले लोगों की सूचि में ला खड़ा किया.

मरुगा का लक्ष्य था पत्नी को तोहफा देना, लेकिन उन्होंने देश के हर गांव की महिला को जो तोहफा दिया उससे पत्नी भी इंप्रेस हो ही गईं. 5 साल पति से दूर रहने के बाद मुरुगानंदम् की पत्नी भी उनके पास वापस आ गईं. उनका लक्ष्य पूरा हुआ. वो कहते है कि जब वो इस स्तर पर ही बेहद खुश हैं, तो अगले स्तर पर जाने की क्या जरूरत.

भारत में रहने वाली हर पांच में से एक लड़की को महावारी के चलते स्कूल छोड़ना पड़ता है. गांव और पिछड़े तबके में रहने वाली महिलाएं बाजार में मिलने वाले सैनिटरी पैड्स नहीं खरीद सकतीं. ऐसे में मुरुगानंदम् की एक जिद ने इन सभी महिलाओं की जिंदगी बदल दी.