ब्लैकमेलिंग करके जांच से बचे थे मोदी और शाह, IPS संजीव भट्ट का आरोप

इससे पहले आईपीएस अफसर संजीव भट्ट के एक फेसबुक पोस्ट ने हंगामा मचा दिया है. संजीव भट्ट के इस पोस्ट ने सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति के एनकाउंटर पर हुए सीबीआई जांच पर कई गंभीर खुलासे किए हैं . अपने पोस्ट में आईपीएस अफसर ने बताया है कि कैसे केस की जांच कर रहे सीबीआई के एक यंग अफसर और एक महिला पत्रकार की रंगीन मुलाकातों को ट्रैप पर उस वक्त जांच को पूरी तरह डिरेल किया गया.
आईपीएस संजीव भट्ट ने 19 सितंबर पर अपने एक लंबे चौड़े फेसबुक पोस्ट में सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति के एनकाउंटर मामले में चल रही सीबीआई की जांच को डिरेल करने की दास्तां को कुछ यूं बयां किया ..

सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति के फर्जी एनकाउंटर को लेकर सीबीआई की जांच सुर्खियों में थी. गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री (अमित शाह) और तत्कालीन मुख्यमंत्री (नरेंद्र मोदी) का भविष्य सीबीआई की तलवार की नोक के नीचे था. इसबीच एक युवा खोजी पत्रकार जो की एक मैगजीन के लिए काम करती थी. वो कुछ ऐसी खबर तलाश रही थी जो सुपरहिट हो जाए. इस सिलसिले में महिला पत्रकार दिल्ली से अहमदाबाद आ पहुंची. जहां उसने सीबीआई और पुलिस में सूत्र पकड़ने की कोशिश की. जिससे की कुछ अंदर की खबरें निकाली जा सके.

दुर्भाग्यवश उस वक्त राज्य की पुलिस और मामले की जांच कर रही सीबीआई की टीम से उसे कुछ खास मिला नहीं. फिर उस महिला पत्रकार ने गुजरात के एक वकील से पैरवी शुरू की. अदालत में इस फर्जी मुठभेड़ मामलों से जुड़े वकील चैन स्मोकर महिला पत्रकार के आदाओं के झांसे में आ गए. फिर क्या था धीरे-धीरे केस से जुड़ी कई अहम जानकारिया मिलनी शुरू हो गई.

लेकिन खोजी पत्रकरा को कुछ और एक्सक्लूसिव खबरें चाहिए थी. धीरे-धीरे पत्रकार उस युवा सीबीआई अफसर तक पहुंच बनाने में कामयाब हो गई जो इस पूरे मामले की जांच को लीड कर रहा था. काम के दौरान ही कब दोनों एक दूसरे के करीब पहुंच गए उन्हें पता भी नहीं चला. दोनों के मिलने और अंदर की खबरें बताने का सिलसिला चलना शुरू हो गया. लेकिन वो ये भूल गए कि जिस सरकारी गेस्ट हाउस में उनकी ये रंगीन मुलाकातें हो रही है वहां राज्य की पुलिस उन्हें ट्रैक कर ही है.

दोनों युवा जोड़े की रंगीन मुलाकातें सरकारी कैमरे में कैद हो चुकी थी. अब बाजी पटल चुकी थी. युवा अफसर को उसके रंगीन मुलाकातों का वीडियो दिखाया गया और उसे बदनामी का डर दिखाकर केस में सरकार के साथ कॉम्प्रोमाइज करने के लिए कहा गया. इस युवा अफसर के कारनामे की ये खबर दिल्ली में बैठे सीबीआई के बॉस तक पहुंची. उन्होंने उस अफसर को जांच के हटा दिया, लेकिन तबतक जांच पूरी तरह से डिरेल हो चुकी थी और केस कमजोर पड़ चुका था. उधर महिला पत्रकार के साथ भी ऐसा ही हुआ. उससे भी कहा गया कि या तो तुम हमारी मदद करो या फिर बदनाम होने के लिए तैयार हो जाओ.

महिला के जरिए उस एक्टिविस्ट वकील साबह को ट्रैप करवाया गया. मामले में खुद को बुरा फंसता देख वकील साहब ने भी हथियार डाल दिए और 2002 के गुजरात दंगों की जांच के लिए बने आयोग से खुद को किनारा कर लिया.