अटल जी के निधन के बाद स्कूलों में छुट्टी, दफ्तर भी बंद रहेंगे

नई दिल्ली: अटल विहारी वाजपेयी नहीं रहे. उनके शोक में कल दिल्ली नोएडा , फरीदाबाद, गाज़ियाबाद और नोएडा के स्कूल बंद रहेंगे. इसके अलावा केन्द्र और राज्य सरकार के दफ्तरों में भी छुट्टी रहेगी. छुट्टी इसलिए रखी गई है ताकि अटल जी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के इच्छा रखने वाले उसमें शामिल हो सकें. इसके साथ ही अटलजी के निधन पर 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा गई की. अटलजी दो महीने से एम्स में भर्ती थे, लेकिन पिछले 36 घंटों के दौरान उनकी सेहत बिगड़ती चली गई. उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था. इससे पहले वे 9 साल से बीमार थे. राजनीति की आत्मा की रोशनी जैसे घर में ही कैद थी. वे जीवित थे, लेकिन नहीं जैसे. किसी से बात नहीं करते थे. जिनका भाषण सुनने विरोधी भी चुपके से सभा में जाते थे, उसी सरस्वती पुत्र ने मौन ओढ़ रखा था.

अटलजी का पार्थिव शरीर कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके आवास पर रातभर रखा जाएगा. सुबह 9 बजे पार्थिव देह भाजपा मुख्यालय ले जाई जाएगी. दोपहर 1.30 बजे अंतिम यात्रा शुरू होगी, जो राजघाट तक जाएगी. वहां महात्मा गांधी के स्मृति स्थल के नजदीक अटलजी का अंतिम संस्कार किया जाएगा. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अटलजी की अस्थियां प्रदेश की सभी नदियों में प्रवाहित की जाएंगी. अमेरिका ने भी अटलजी के निधन पर दुख जाहिर किया. भारत में अमेरिका के दूतावास ने वक्तव्य जारी कर कहा- अटलजी ने भारत और यूएस के रिश्तों को मजबूत करने में अभूतपूर्व योगदान दिया. इसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा.

मोदी ने कहा- भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है : श्रद्धांजलि में मोदी ने सात ट्वीट किए. उन्होंने कहा, ‘‘मैं नि:शब्द हूं, शून्य में हूं, लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है. हम सभी के श्रद्धेय अटल जी हमारे बीच नहीं रहे. यह मेरे लिए निजी क्षति है. अपने जीवन का प्रत्येक पल उन्होंने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था. उनका जाना, एक युग का अंत है. लेकिन वो हमें कहकर गए हैं- मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं. मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?’’

ये नेता मिलने आए : दो दिन में अटलजी का हालचाल जानने के लिए एम्स में प्रधानमंत्री के अलावा उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, वाजपेयी के छह दशक तक साथी रहे पूर्व प्रधानमंत्री लालकृष्ण अाडवाणी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, सुमित्रा महाजन, वसुंधरा राजे, स्मृति ईरानी, सुरेश प्रभु, जेपी नड्डा, शिवराज सिंह चौहान, रामविलास पासवान, डॉ. हर्षवर्धन, जितेंद्र सिंह, अश्वनी कुमार चौबे, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, बसपा प्रमुख मायावती और अमर सिंह पहुंचे थे.

हम सभी के श्रद्धेय अटल जी हमारे बीच नहीं रहे. अपने जीवन का प्रत्येक पल उन्होंने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था. उनका जाना, एक युग का अंत है.

मोदी ने लाल किले से अटलजी को याद किया था : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनकी सेहत का हाल जानने पिछले दो महीनों में कई बार एम्स जा चुके थे. बुधवार शाम भी वे एम्स पहुंचे थे. इससे पहले 72वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्होंने लाल किले की प्राचीर से दिए भाषण में भी कश्मीर के संदर्भ में अटलजी को याद किया था. उन्होंने कहा था- वाजपेयीजी ने कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत का जिक्र किया था. हम इसी पर आगे बढ़ रहे हैं.

तीन साल से कोई तस्वीर सामने नहीं आई : अटलजी की तस्वीर पिछली बार 2015 में सामने आई थी. तब तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए वाजपेयी को उनके घर जाकर भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया था.

2009 में तबीयत बिगड़ी थी, वेंटिलेटर पर रखा गया था : 2009 में वाजपेयी की तबीयत बिगड़ गई थी. उन्हें सांस लेने में दिक्कत के बाद कई दिन वेंटिलेटर पर रखा गया था. हालांकि, बाद में वे ठीक हो गए और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी. बाद में कहा गया था कि वाजपेयी लकवे के शिकार हैं. इस वजह से वे किसी से बोलते नहीं हैं. बाद में उन्हें स्मृति लोप भी हो गया था. उन्होंने लोगों को पहचानना भी बंद कर दिया.

तीन बार प्रधानमंत्री बने : वाजपेयी सबसे पहले 1996 में 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने. बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. दूसरी बार वे 1998 में प्रधानमंत्री बने. सहयोगी पार्टियों के समर्थन वापस लेने की वजह से 13 महीने बाद 1999 में फिर आम चुनाव हुए. 13 अक्टूबर 1999 को वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने. इस बार उन्होंने 2004 तक अपना कार्यकाल पूरा किया.

2005 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लिया : अटलजी ने 2005 में मुंबई में एक रैली में ऐलान कर दिया कि वे सक्रिय राजनीति से संन्यास ले रहे हैं और लालकृष्ण अाडवाणी और प्रमोद महाजन को बागडोर सौंप रहे हैं. उस वक्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि वाजपेयी मौजूदा राजनीति के भीष्म पितामह हैं.

1924 में ग्वालियर में जन्मे, मूल रूप से कवि और शिक्षक : वाजपेयी मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्मे. वे मूलत: कवि थे और शिक्षक भी रह चुके थे. 1951 में जनसंघ की स्थापना हुई और अटलजी ने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया. 1957 में वाजपेयी मथुरा से लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन हार गए. हालांकि, बलरामपुर सीट से वे जीत गए. 1975-77 के आपातकाल के दौरान वे गिरफ्तार किए गए. 1977 के बाद जनता पार्टी की मोरारजी देसाई की सरकार में वे विदेश मंत्री भी रहे. 1980 में उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी. वे 10 बार लोकसभा सदस्य रहे.

Leave a Reply