जानिए बालाकोट में 300 मरे थे या सिर्फ एक कौआ? मदरसा था या आतंकी शिविर?


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भारत में कोई अगर सरकार के दावे पर सवाल उठाए या कोई जाच पड़ताल करने की कोशिश करे तो अब उसे देशद्रोही और सबूत मांगने वाला कहकर खारिज किया जाता है लेकिन मीडिया इन हालात में अपना काम भी नहीं छोड़ सकता . बहरहाल राष्ट्रवादी और सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों का प्रभाव इतना ज्यादा है कि अब मीडिया सवाल करने का साहस भी नही कर पाता है. बल्कि उसी धारा में शामिल होकर और बढ़ाचढ़ा कर आंकड़े पेश करने लगता है.

हाल ही में पाकिस्तान के बालाकोट में भारत के मिराज विमानों ने सर्जिकल स्ट्राइक की तो फिर से सबूत मांगने को लेकर ऐसा माहौल बन गया कि लोग मुंह ही नहीं खोल सके. इसे देश विरोधी हरकत करार दिया गया. ऐसी हालत में विदेशी मीडिया की रिपोर्ट ही अकेला सहारा बनी हैं.

हालांकि हम इस बात की पुष्टि नहीं करते कि विदेशी मीडिया जो कह रहा है वही सत्य है और भारतीय मीडिया गलत कह रहा है लेकिन ये जानना बेहद ज़रूरी है कि मीडिया रिपोर्ट क्या कहती हैं.

हम ये नहीं बताएंगे कि भारतीय चैनल्स ने कितनी मौतों का दावा किया था क्योंकि वो सभी जानते हैं और ये दावा दोसौ से लेकर 400 लोगों के मारे जाने का था.

मीडिया का दावा था कि बालाकोट में चरमपंथियों के लिए छह एकड़ का शिविर बना था जिसमें कई सुविधाएं थीं और चरमपंथियों को वहां हर तरह का प्रशिक्षण मिलता था.

पाकिस्तान का दावा था कि भारत गलत प्रचार कर रहा है. उसने दावे की पुष्टि के लिए पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को हमले की जगह जाबा में आने के लिए आमंत्रित किया था. जाबा बालाकोट में स्थित है. पाकिस्तानी सेना की निगरानी में मीडिया को जाबा में ले जाया गया.

बीबीसी की ग्राउंड रिपोर्ट

भारतीय हवाई हमले के बाद बीबीसी संवाददाता सहर बलोच भी बालाकोट पहुंची थीं. उन्होंने इस हमले में घायल एक स्थानीय शख़्स नूरान शाह से बात की. उनका घर घटनास्थल के पास ही है.

नूरान शाह ने बताया, ”पिछली रात मैं सोया हुआ था. उनकी बहुत तेज आवाज़ से मैं जाग गया. जब मैं उठा तो बहुत तेज धमाका हुआ. जब ये धमाका हुआ तो मैंने बाहर निकलने की कोशिश की. मैंने कहा कि ये कोई ख़तरनाक काम है. जब मैं दरवाजे के पास आया तो तीसरा धमाका हुआ. ये जगह 15 मीटर या उससे भी कम दूर होगी.”

”दूसरे धमाके के साथ ही दरवाजे टूट गए थे. तब मैं, मेरी बेटी और बीवी वहीं बैठ गए. मैंने कहा कि अब मरना ही है. उसके बाद चौथा धमाका थोड़ा नीचे हुआ तो हम उधर ही बैठे रहे. फिर थोड़ी देर बाद हम उठे, बाहर निकले तो देखा कि मकान की दीवारें, छत वगैरह पर दरारें थीं. बस अल्लाह ने हमें बचा लिया. मेरे सिर पर थोड़ी सी चोट आई है. टांग और कमर पर थोड़ी चोटें हैं.”

पाकिस्तानी सेना के आने पर इलाक़े की आवाजाही पर क्या असर पर पड़ा इस संबंध में इलाक़े के एक छात्र ने बताया, ”सुबह से लोगों का यहां आना मना है. फौज की तरफ़ से रोका गया है.”

इसके अलावा खैबर पख्तूनख्वाह के हेल्थ केयर कमीशन ने यहां 100 बेड अलग किए हैं, जिसके बाद से हालात ख़राब होने का अनुमान लगाया जा रहा था.

अल जज़ीरा ने क्या लिखा

क़तर के न्यूज़ ब्रॉडकास्टर अल जज़ीरा ने लिखा है कि बुधवार को हमले की जगह जाने के बाद अल जज़ीरा ने पाया कि उत्तरी पाकिस्तान के जाबा शहर के बाहर जंगल और दूर दराज के क्षेत्र में चार बम गिरे थे. विस्फोट से हुए गड्ढे में टूटे हुए पेड़ और जगह-जगह पत्थर पड़े थे. लेकिन, वहां पर किसी भी तरह के मलबे और जान-माल के नुकसान का कोई सबूत नहीं था.”

स्थानीय अस्पतालों के अधिकारियों और उस जगह पर पहुंचे कई निवासियों ने बताया कि उन्हें भारतीय हमले के बाद वहां कोई शव या घायल लोग नहीं दिखे.

इलाक़े में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण ​शिविर को लेकर स्थिति साफ नहीं थी.

स्थानीय निवासियों ने बताया कि जहां बम गिराए गए वहां से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर, एक ढलान वाली चोटी पर एक मदरसा है जिसे जैश-ए-मोहम्मद चलाता है. कुछ दूरी पर लगे एक साइनबोर्ड से स्कूल की जगह की पुष्टि हुई और यह सशस्त्र समूह द्वारा चलाया जा रहा था.

बोर्ड में मसूद अज़हर को तलीम-उल-क़ुरान मदरसे का प्रमुख और मोहम्मद युसूफ़ अज़हर को प्रशासक बताया गया था.

यहां कुछ लोगों का कहना था कि यह मदरसा स्थानीय स्कूल के बच्चों को पढ़ाता था लेकिन कुछ ने कहा कि वहां जैश के लड़ाकों का ​प्रशिक्षण केंद्र था.

एक व्यक्ति ने बिना पहचान ज़ाहिर किए बताया, ”पहाड़ पर बना मदरसा मुजाहिदीनों के लिए प्रशिक्षण ​शिविर था.”

31 साल के एक अन्य स्थानीय शख़्स ने कहा, ”हर कोई जानता था कि वहां जैश का शिविर है. वहां लोगों को लड़ना सिखाया जाता था.”

हालांकि, कुछ ही ​दूरी पर रहने वाले मीर अफ़जल गुलज़ार ने बताया, ”यहां कोई शिविर नहीं था और कोई चरमपंथी नहीं थे. यहां 1980 में मुजाहिदीन शिविर हुआ करता था लेकिन अब वो चला गया है.”

31 जनवरी, 2004 को विकीलीक्स द्वारा लीक किए गए अमरीकी विदेश मंत्रालय के एक मेमो में जिक्र है कि जाबा के पास जैश-ए-मोहम्मद का एक प्रशिक्षण शिविर है जहां हथियारों और विस्फोट का बेसिक और एडवांस प्रशिक्षण दिया जाता है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट

ब्रिटेन की न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने जाबा के दौरे के बाद लिखा है कि वहां हमले से घायल हुआ सिर्फ़ एक ही पीड़ित है, जिसकी दाईं आंख पर हमले के कारण चोट आई हुई है.

जाबा में ऊपरी ढालानों की तरफ़ इशारा करते हुए गांवों वालों ने बताया कि यहां चार बमों के गिरने के निशान हैं और चीड़ के पेड़ बिखरे पड़े हैं.

इलाक़े में वैन चलाने वाले अब्दुर रशीद ने कहा, ”इसने सबकुछ हिलाकर रख दिया. यहां कोई नहीं मरा. सिर्फ कुछ चीड़ के पेड़ गिरे हैं. एक कौआ मरा है.”

जाबा घने पहाड़ी और ​नदियों के इलाके में स्थि​त है जहां से कघान घाटी का रास्ता खुलता है. यह पाकिस्तानी पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा पर्यटक स्थल है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां 400 से 500 लोग मिट्टी के घरों में रहते हैं. रॉयटर्स ने 15 लोगों से बात की लेकिन नूरान शाह के अलावा किसी के भी हताहत होने की ख़बर नहीं मिली.

अब्दुर रशीद ने कहा, ”मैंने यहां कोई शव नहीं देखा, बस एक स्थानीय व्यक्ति ही किसी चीज़ से घायल हुआ है.”

नूरान शाह ने सामाचार एजेंसी रॉयटर्स से भी बात की है.

जाबा के नज़दीकी अस्पताल में बेसिक हेल्थ यूनिट के एक अधिकारी मोहम्मद सादिक उस रात को नाइट ड्यूटी पर थे. उन्होंने भी किसी के घायल होने के दावों से इनकार किया है. वह कहते हैं, ”यह बस एक झूठ है. हमें एक भी घायल व्यक्ति नहीं मिला.”

हालांकि इलाक़े के लोगों ने बताया कि वहां जैश-ए-मोहम्मद की मौजूदगी है. प्रशिक्षण ​शिविर तो नहीं है लेकिन एक मदरसा है.

नूरान शाह ने कहा, ”यह तालीम-उल-क़ुरान मदरसा है. गांव के बच्चे वहां पढ़ते हैं. वहां कोई प्रशिक्षण नहीं होता.”

मदरसा के जैश-ए-मोहम्मद से संबंध बताने वाले साइन बोर्ड को गुरुवार को हटा दिया गया और सेना संवाददाताओं को वहां जाने से रोक रही थी.

लेकिन, पीछे से उस ढांचे को देखा जा सकता था और उसे कोई नुकसान नहीं हुआ था.

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