76 हज़ार बिल्डरों के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार, एक बार ज़रूर जानें नया कानून

नयी दिल्ली : रीयल इस्टेट सेक्टर की गंदगी साफ करने के लिए ‘द रीयल इस्टेट (रेग्युलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट, 2016’ (रेरा) प्रभावी हो चुका है. इसलिए यदि आप घर खरीदने की सोच रहे हैं, लेकिन प्रोजेक्ट के लेट होने या घटिया निर्माण से डरे हुए हैं, तो अब निश्चिंत हो जाइये. एक मई से बहुप्रतीक्षित रेरा लागू हो गया है. इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि बिल्डरों को तय समय के भीतर ग्राहक को मकान तो देना ही होगा, घटिया निर्माण करने या किसी तरह की धोखाधड़ी करने पर बिल्डर को जेल भी जाना पड़ सकता है.

अपने घर के लिए जीवन भर की जमा पूंजी लगा देनेवालों को बिल्डरों की मनमानी और बदमाशियों से निजात दिलाने और खरीदार को शोषण से बचाने का ये क्रांतिकारी कानून मार्च, 2016 में संसद में पास हुआ था और एक मई, 2017 से यह कानून फिलहाल 12 राज्यों में लागू हो गया है.
रेरा पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मुहर के बाद एक्ट के 59 प्रावधान एक मई, 2016 को लागू हो गये.इस बीच, एक्ट के अधीन कानूनों का निर्माण होने के साथ रीयल एस्टेट अथाॅरिटी के गठन समेत दूसरी जरूरी औपचारिकताओं को पूरा किया गया. शेष 32 प्रावधानों के एक मई, 2017 से लागू होने के साथ पूरा एक्ट व्यवहार में आ गया है. मंत्रालय ने नया मॉडल कानून सभी राज्यों को भेज दिया है.

नये प्रावधानों के अनुसार, सभी बिल्डरों को जुलाई के अंत तक पहले से चल रहे और नये आवासीय प्रोजेक्ट को रीयल इस्टेट अथॉरिटी में पंजीकरण कराना होगा. वहीं, हर प्रोजेक्ट का अथॉरिटी से सेक्शन प्लान और ले-आउट प्लान अपनी वेबसाइट के साथ सभी कार्यालयों की साइट्स पर छह वर्ग फीट के बोर्ड पर लगाना होगा.

इसके बाद ही बिल्डर फ्लैट की बुकिंग शुरू कर सकेंगे. केंद्रीय आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के अधिकारी बताते हैं कि इस प्रावधान से फ्लैट या प्लॉट की बुकिंग करने से पहले ही खरीदार को प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी मिल जायेगी. बाद में बिल्डर इसमें कोई हेराफेरी नहीं कर सकता.
केंद्रीय आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री वेंकैया नायडू ने बताया कि नौ साल के इंतजार के बाद रीयल इस्टेट एक्ट लागू हो गया है. आवासीय सेक्टर के लिए यह नये युग की शुरुआत है. कानून से यह क्षेत्र उत्तरदायी होने के साथ पारदर्शी होगा. वहीं, इसमें प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी.

डेवलपरों ने भी उम्मीद जतायी है कि रीयल इस्टेट कानून लागू होने से मकानों की मांग में तेजी आयेगी, क्योंकि यह कानून खरीदारों को बेईमान कंपनियों से बचायेगा. हालांकि, दाम बड़ी संख्या में बने हुए मकानों के अब तक नहीं बिकने की वजह से स्थिर बने रहेंगे.
समझौते के वक्त बतानी होगी पजेशन की तारीख
एक्ट में प्रावधान है कि बिल्डर खरीदार से समझौता करते वक्त ही बता देगा कि फ्लैट कब तक उसे सौंप दिया जायेगा. इससे बिल्डर व खरीदार के बीच किसी तरह की गलतफहमी की गुंजाइश नहीं बचेगी. 

पजेशन देने या लेने में देरी होने पर बिल्डर या खरीदार को स्टेट बैंक की दर से दो फीसदी अधिक ब्याज देना होगा. शर्तों का उल्लंघन हुआ, तो बिल्डर को तीन साल तक की सजा भी हो सकती है.
इन राज्यों में रेरा को मिली है हरी झंडी
उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओड़िशा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, बिहार, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, चंडीगढ़, दादर और नागर हवेली, दमन-दीव और लक्षद्वीप.
76 हजार से अधिक कंपनियां होंगी पंजीकृत
केंद्रीय आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय का मानना है कि रीयल इस्टेट सेक्टर में फिलहाल 76 हजार से ज्यादा कंपनियां काम कर रही हैं. 31 जुलाई तक इनको रीयल इस्टेट रेग्युलेटर के पास पंजीकरण कराना होगा. मार्च, 2016 में राज्यसभा में बिल को जब मंजूरी मिली थी, तब इनकी संख्या 76,044 थी.
पांच साल में 13.70 लाख करोड़ का निवेश
हर साल तकरीबन 10 लाख लोग अपने सपनों के घर में निवेश करते हैं. 

वर्ष 2011 से 2015 तक हर साल 2,349 से 4,488 प्रोजेक्ट लांच हुए. देश के 15 राज्यों के 27 शहरों में ऐसे कुल 17,526 प्रोजेक्ट लांच हुए, जिनमें 13.70 लाख करोड़ रुपये का निवेश हुआ.
एक्ट की खास बातें
-रेग्युलेटर की नियुक्ति की जायेगी, जो केंद्र के मॉडल कानून के मुताबिक नियम बनायेगा. ग्राहक रेग्युलेटर के पास ही शिकायत दर्ज करायेंगे.
-इस एक्ट में अपार्टमेंट या घर की बिक्री के पांच साल तक बिल्डिंग में खामी सामने आती है, तो डेवलपर उसे 30 दिन के अंदर दुरुस्त करायेगा, नहीं तो खरीदार को मुआवजा का भुगतान करेगा.
-प्रोजेक्ट के लिए खरीदारों से ली रकम का 70% अलग अकाउंट में रखना पड़ेगा. इसका इस्तेमाल उसी प्रोजेक्ट के कंस्ट्रक्शन में होगा. अभी डेवलपर एक प्रोजेक्ट के खरीदारों से पैसे लेकर दूसरे प्रोजेक्ट शुरू कर देते हैं.
-बिल्डर व खरीददार की ब्याज दर एसबीआइ के सीमांत लागत पर देय होगी. किसी भी हालत में देरी होने पर दो फीसदी अतिरिक्त ब्याज का भुगतान करना होगा.
-रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर डेवलपर को हो सकती है जेल.
-डेवलपर को रेग्युलेटर की वेबसाइट पर प्रोजेक्ट की डिटेल इन्फॉर्मेशन देनी होगी. इसे हर तीन माह में अपडेट करना होगा.
-अपीलेट ट्रिब्यूनल और रेग्युलेटरी अथॉरिटी के ऑर्डर नहीं मानने पर डेवलपर को तीन साल, एजेंट व खरीदार को एक तक साल जेल संभव.
(courtsey प्रभात खबर)