श्रीदेवी को मरकर ही मिला चैन, राम गोपाल वर्मा की फैन्स के लिए चिट्ठी

श्रीदेवी के निधन पर खुला ख़त लिखकर दुख जताने वाले फ़िल्म निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने एक और पत्र लिखा है. इस बार उन्होंने यह ख़त श्रीदेवी के प्रशंसकों के नाम लिखा है, जिसका शीर्षक है- ‘माइ लव लेटर टु श्रीदेवीज़ फ़ैन्स’ यानी श्रीदेवी के प्रशंसकों के लिए मेरा प्रेम पत्र.

फ़ेसबुक पर शेयर किए गए इस पत्र की भूमिका में उन्होंने लिखा है, “मैंने काफ़ी विचार किया कि मुझे इसे प्रकाशित करना चाहिए या नहीं क्योंकि इसमें कुछ नामों का ज़िक्र है. लेकिन मैं मानता हूं कि श्रीदेवी किसी और से ज़्यादा उनके प्रशंसकों की हैं और उन्हें सच पता होना चाहिए.”

दरअसल इस पत्र में राम गोपाल वर्मा ने श्रीदेवी के जीवन के कई घटनाक्रमों पर प्रकाश डाला है. उन्होंने लिखा है कि ‘वास्तव में श्रीदेवी को निधन के बाद ही शांति मिली है.’

 

‘क्या श्रीदेवी ख़ुश थीं?’

राम गोपाल वर्मा लिखते हैं, “हां, आप जैसे लाखों लोगों की तरह मैं भी मानता था कि वह सबसे ख़ूबसूरत महिला हैं. हम सब जानते हैं कि वह देश की सबसे बड़ी सुपर स्टार थीं जिन्होंने 20 साल से ज़्यादा समय तक मुख्य अभिनेत्री के रूप में पर्दे पर राज किया. यह तो कहानी का एक ही हिस्सा है. उनके निधन से हमें पता चलता है कि ज़िंदगी और मौत, दोनों किस तरह से अप्रत्याशित, क्रूर, नाज़ुक और रहस्यमय हो सकते हैं.”


“उनकी मौत के बाद बहुत सारे लोग कह रहे हैं कि वह कितनी ख़ूबसूरत थीं, कितनी महान अभिनेत्री थीं और उनकी मौत से क्या असर पड़ा है. मगर मेरे पास कहने के लिए इससे ज़्यादा है. ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे अपनी दो फ़िल्मों ‘क्षणा क्षणं’ और ‘गोविंदा गोविंदा’ के सिलसिले में उनके क़रीब रहने का मौका मिला.”

राम गोपाल वर्मा के मुताबिक़, श्रीदेवी का जीवन इस बात का सटीक उदाहऱण है कि किसी हस्ती के जीवन के बारे में बाहरी दुनिया के लोग जो कुछ सोचते हैं, उस हस्ती की निजी ज़िंदगी लोगों की धारणा से बिल्कुल अलग होती है.

 

वह लिखते हैं, “बहुत से लोगों के लिए श्रीदेवी का जीवन संपूर्ण था. सुंदर चेहरा, कमाल की प्रतिभा और दो बेटियों के साथ सुखी परिवार. बाहर से सबकुछ ऐसा दिखता कि हर कोई अपने लिए ऐसी ही कामना करता. लेकिन श्रीदेवी क्या बहुत ख़ुश थीं और उनका जीवन सुखद था?”

 

“मैं उनके जीवन के बारे में तबसे जानता हूं, जबसे उनके मुलाक़ात हुई. मैंने अपनी आंखों से देखा कि कैसे उनके पिता की मौत से पहले तक उनका जीवन आसमान में उड़ते परिंदे की तरह था और फिर ज़रूरत से ज़्यादा ही सचेत रहने वाली उनकी मां के कारण पिंजरे में बंद पंछी की तरह हो गया.”

 

इस बारे में फ़िल्म निर्देशक ने लिखा है, “उन दिनों टैक्स को लेकर होने वाली छापेमारी से बचने के लिए अभिनेताओं को काले धन से पारिश्रमिक दिया जाता था. उनके पिता अपने दोस्तों और रिश्तेजारों पर भरोसा करते थे मगर उनके निधन के बाद सभी ने श्रीदेवी को धोखा दे दिया. समस्या तब बढ़ गई जब उनकी नासमझ मां ने कानूनी पचड़ों में फंसी संपत्तियों में निवेश किया. इन ग़लतियों के चलते श्रीदेवी उस समय तक कंगाल हो चुकी थीं, जब तक बोनी कपूर उनके जीवन में आए. वह ख़ुद भारी कर्ज में थे और बस सहानुभूति ही जता सकते थे.”

“उनकी मां अमरीका में ग़लत ब्रेन सर्जरी के कारण मनोरोगी बन गईं और इस बीच उनकी छोटी बहन श्रीलता ने अपने पड़ोसी के बेटे से विवाह कर लिया. मां ने मृत्यु से पहले सभी संपत्तियां श्रीदेवी के नाम कर दी थीं लेकिन बहन ने यह कहते हुए श्रीदेवी पर केस कर दिया कि वसीयत पर हस्ताक्षर करते समय मां की मानसिक अवस्था सही नहीं थी. इस तरह से जिस महिला के पूरी दुनिया में लाखों दीवाने थे, वह एकदम अकेली और लगभग कंगाल हो चुकी थीं.”

 

राम गोपाल वर्मा लिखते हैं, “बोनी की मां ने श्रीदेवी को घर तोड़ने वाली के तौर पर पेश किया और बोनी की पहली पत्नी मोना के साथ जो हुआ, उसके लिए ज़िम्मेदार मानते हुए एक फ़ाइव स्टार होटल की लॉबी में पेट पर घूंसा मार दिया. इस पूरे दौर में वह बहुत नाख़ुश थीं और उनके जीवन में आए उतार-चढ़ावों ने उनके मन पर गहरे ज़ख्म के निशान छोड़ दिए थे और उन्हें कभी शांति नसीब नहीं हुई.”

 

‘महिला के शरीर में बच्चे जैसी थीं श्रीदेवी’

राम गोपाल वर्मा ने लिखा है, “अपने जीवन में इतना कुछ झेलने के कारण और एक बाल कलाकार के रूप में करियर शुरू होने के बाद ज़िंदगी ने उन्हें कभी भी सामान्य रफ़्तार से बड़ा होने का समय नहीं दिया.”

 

“बहुत से लोगों के लिए वह सबसे ख़ूबसूरत महिला थीं लेकिन क्या वह खुद को ख़ूबसूरत मानती थीं? हां, मानती थीं. लेकिन उम्र ढलना हर अभिनेत्री का दुस्वपन होता है और वह अपवाद नहीं थीं. कई सालों तक वह बीच-बीच में कॉस्मेटिक सर्जरी करवाती रही थीं, जिसका असर उनपर साफ़ देखा जा सकता था.”

 

श्रीदेवी की पहली फ़िल्म ‘थुनाइवान’ का एक दृश्य

“उन्होंने अपने इर्द-गिर्द एक मनोवैज्ञानिक दीवार सी बनाई हुई थी और वह नहीं चाहती थीं कि कोई देखे कि इसके अंदर क्या चल रहा है. वह नहीं चाहती थीं कि कोई उनकी असुरक्षाओं के बारे में जाने. इसमें इनका दोष नहीं था क्योंकि कम उम्र में ही उन्हें प्रसिद्धि मिल गई थी और उन्हें आज़ाद होने का असवर ही नहीं मिला. लेकिन वह जो चाहती थीं, बन सकती थीं.”

 

राम गोपाल वर्मा ने आगे लिखा है, “उन्हें कैमरे के सामने आने के लिए मेकअप ही नहीं लगाना पड़ता था, बल्कि अपना असली अक्स कैमरे के सामने न आने देने के लिए भी मनोवनैज्ञानिक मेकअप करना पड़ता था.”

 

“वह लगातार माता-पिता, रिश्तेदारों, पति और काफ़ी हद तक अपने बच्चों के कहने पर चलती रहीं. वह अन्य सितारों की ही तरह इस बात को लेकर डरी हुई थीं कि उनकी बेटियों को स्वीकार किया जाएगा या नहीं. श्रीदेवी दरअसल महिला के शरीर में कैद बच्चा थीं.”

 

‘रेस्ट इन पीस’

राम गोपाल वर्मा लिखते हैं कि आमतौर पर वह किसी के निधन पर रेस्ट इन पीस नहीं कहते, लेकिन श्रीदेवी के मामले में ऐसा कहना चाहते हैं क्योंकि उनकी राय में मौत के बाद उन्हें (श्रीदेवी को) पहली बार असलियत में शांति मिली है.

 

वह लिखते हैं, “मैंने उन्हें तभी शांत देखा है, जब वह कैमरे के सामने होती थीं और वह भी ऐक्शन और कट के बीच. इसलिए क्योंकि वह इस दौरान कटु वास्तविकता से दूर होकर अपनी काल्पनिक दुनिया में जा सकती थीं.”

 

“इसीलिए अब मैं आश्वस्त हूं कि वह हमेशा के लिए शांति में होंगी क्योंकि आख़िरकार वह उस सब से बहुत दूर हैं, जिसने उन्हें इतना ज़्यादा दर्द दिया. अब मैं आपको आंखों में ख़ुशी लिए स्वर्ग की वादियों में एक आज़ाद परिंदे की तरह उड़ते हुए देखता हूं.”

“मैं पुनर्जन्म में यकीन नहीं करता लेकिन मैं वाकई इसपर विश्वास करना चाहता हूं क्योंकि हम प्रशंसक अपने अगले जन्म में एक बार फिर आपको देखना चाहेंगे. और इस बार हम पूरी कोशिश करके सुधार लाएंगे ताकि आपके लायक बन सकें. हमें एक और मौका दीजिए श्रीदेवी क्योंकि हम सभी आपको सच्चा प्यार करते हैं.”

 

आख़िर में राम गोपाल वर्मा ने लिखा है, “मैं इसी तरह से लिखता चला जा सकता हूं मगर मैं अब और अपने आंसू नहीं रोक सकता.” (Courtsey-BBC)