राष्ट्रपति ने गणतंत्र दिवस के भाषण में RSS के बारे में कही ये बात, कर्णी सेना को भी दिया संदेश

नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस से ठीक पहले ‘पद्मावत’ फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन और विरोध के बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उदारतावाद और भाईचारा पर जोर दिया. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने फिल्म को लेकर चल रहे विवाद पर संकेतों में अपनी बात कही और लोगों को एक-दूसरे की भावनाओं का आदर करते हुए उदारता बरतने का संदेश दिया.

अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से नैतिक राष्ट्र का निर्माण

संघ का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से एक अनुशासित और नैतिक राष्ट्र का निर्माण होता है. ऐसी संस्थाएं, अन्य संस्थाओं के साथ, अपने भाई-चारे का सम्मान करती हैं. वे अपने कामकाज में ईमानदारी, अनुशासन और मर्यादा बनाए रखती हैं .

समान अवसरों वाले परिवार करते हैं राष्ट्र का निर्माण

कोविंद ने कहा कि जहां बेटियों को, बेटों की ही तरह, शिक्षा, स्वास्थ्य और आगे बढ़ने की सुविधाएं दी जाती हैं, ऐसे समान अवसरों वाले परिवार और समाज ही एक खुशहाल राष्ट्र का निर्माण करते हैं. उन्होंने कहा कि देशवासियों की सेवा करने वाली हर नर्स, साफ सफाई में लगा हर स्वच्छता कर्मचारी, शिक्षित बनाने वाला हर अध्यापक, नवोन्मेष से जुड़ा हर वैज्ञानिक, देश को नया स्वरूप प्रदान करने वाला हर इंजीनियर, देश की रक्षा में लगा हर सैनिक, देशवासियों की पेट भरने वाला हर किसान, सुरक्षा में लगा हर पुलिस और अर्ध-सैनिक बल, पालन पोषण करने वाली हर मां, उपचार करने वाला हर डाक्टर एवं अन्य लोगों का राष्ट्र निर्माण में योगदान है .

देश के 69वें गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश में राष्ट्रपति कोविंद ने कहा,  “त्योहार मनाते हुए, विरोध प्रदर्शन करते हुए या किसी और अवसर पर, हम अपने पड़ोसी की सुविधा का ध्यान रखते हैं. किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिए से या इतिहास की किसी घटना के बारे में भी, हम असहमत हो सकते हैं. ऐसे उदारतापूर्ण व्यवहार को ही, भाईचारा कहते हैं.”

राष्ट्रपति कोविंद ने अपने अभिभाषण में “कानून के शासन” के महत्व पर भी जोर दिया. राष्ट्रपति ने कहा, “हमारे संविधान निर्माता बहुत दूरदर्शी थे. वे “कानून का शासन” और “कानून द्वारा शासन” के महत्व और गरिमा को भलीभांति समझते थे. वे हमारे राष्ट्रीय जीवन के एक अहम दौर के प्रतिनिधि थे. हम सौभाग्यशाली हैं कि उस दौर ने हमें संविधान और गणतंत्र के रूप में अनमोल विरासत दी है.”

कोविंद ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के जीवन को खुशहाल बनाने को लोकतन्त्र की सफलता की कसौटी बताया. उन्होंने एक ऐसे समाज की वकालत की जहां किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में भी हम असहमत हो सकते हैं.

राष्ट्रपति पद पर आने के बाद गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में कोविंद ने कहा कि वर्ष 2022 में हमारे गणतन्त्र को 70 वर्ष हो जाएंगे. उन्होंने कहा, ‘‘साल 2022 में, हम अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएंगे. ये महत्वपूर्ण अवसर हैं. स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान के निर्माताओं द्वारा दिखाए रास्तों पर चलते हुए, हमें एक बेहतर भारत के लिए प्रयास करना है.’’

गणतंत्र के रूप में अनमोल विरासत

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में भी हम असहमत हो सकते हैं.’’ कोविंद ने कहा, ‘‘हमारे संविधान निर्माता बहुत दूरदर्शी थे. वे ‘कानून का शासन’ और ‘कानून द्वारा शासन’ के महत्त्व और गरिमा को भली-भांति समझते थे. वे हमारे राष्ट्रीय जीवन के एक अहम दौर के प्रतिनिधि थे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम सौभाग्यशाली हैं कि उस दौर ने हमें गणतंत्र के रूप में अनमोल विरासत दी है.’’ हमारा संविधान, हमारे नए राष्ट्र के लिए केवल एक बुनियादी कानून ही नहीं है, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक दस्तावेज है.

कोविंद ने कहा कि हमें आजादी एक कठिन संघर्ष के बाद मिली थी. इस संग्राम में, लाखों लोगों ने हिस्सा लिया. उन स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया. महात्मा गाँधी के नेतृत्व में, ये महान सेनानी, मात्र राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करके संतुष्ट हो सकते थे.

भारत एक विकसित देश बने

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम सबका सपना है कि भारत एक विकसित देश बने. उस सपने को पूरा करने के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं. हमारे युवा अपनी कल्पना, आकांक्षा और आदर्शों के बल पर देश को आगे ले जाएंगे. उन्होंने कहा कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के जीवन को खुशहाल बनाना ही हमारे लोकतन्त्र की सफलता की कसौटी है. गरीबी के अभिशाप को, कम-से-कम समय में, जड़ से मिटा देना हमारा पुनीत कर्तव्य है. यह कर्तव्य पूरा करके ही हम संतोष का अनुभव कर सकते हैं .

समता या बराबरी का आदर्श हो

राष्ट्रपति ने कहा कि समता या बराबरी के इस आदर्श ने आज़ादी के साथ प्राप्त हुए स्वतंत्रता के आदर्श को पूर्णता प्रदान की. एक तीसरा आदर्श हमारे लोकतंत्र के निर्माण के सामूहिक प्रयासों को और हमारे सपनों के भारत को सार्थक बनाता है. यह भाईचारे का आदर्श है. कोविंद ने कहा कि संविधान का निर्माण करने, उसे लागू करने और भारत के गणराज्य की स्थापना करने के साथ ही, हमने वास्तव में ‘सभी नागरिकों के बीच बराबरी’ का आदर्श स्थापित किया, चाहे हम किसी भी धर्म, क्षेत्र या समुदाय के क्यों न हों .

अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से नैतिक राष्ट्र का निर्माण

उन्होंने कहा कि अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से एक अनुशासित और नैतिक राष्ट्र का निर्माण होता है. ऐसी संस्थाएं, अन्य संस्थाओं के साथ, अपने भाई-चारे का सम्मान करती हैं. वे अपने कामकाज में ईमानदारी, अनुशासन और मर्यादा बनाए रखती हैं .