पाकिस्तानियों की नफरत ने लाश को भी नहीं छोड़ा, मुसलमान को नहीं दी दो गज़ ज़मीन

पाकिस्तानियों की नफरत का इससे अंदाज़ा लगा सकते है आप. ये नफरत कोई और नहीं नेता जनता के दिगाम में भरते हैं. खबर दर्दनाक है और इतनी कि इनसान को मौत के बाद भी नफरत से छुटकारा न मिले. ये खबर पाकिस्तान से आई है . भारत-पाक सीमा से सटे राजौरी जिले के युवक सलीम के शव को गुलाम कश्मीर के गिलगित बाल्टिस्तान के कब्रिस्तान में दो गज जमीन तक नहीं मिली. कारण केवल इतना था कि वह भारतीय मुसलमान था. इसलिए वहां की पुलिस ने उसके शव को नदी किनारे ही दफना दिया.

इस साल सात जून को एक गैस टैंकर कारगिल में सिंध नदी में गिर गया था, जिसमें सलीम समेत तीन लोग सवार थे. ट्रक बहता हुआ गुलाम कश्मीर पहुंच गया. इस पूरी घटना की जानकारी गुलाम कश्मीर के ही एक नागरिक ने दुर्घटनाग्रस्त ट्रक पर लिखे नंबर पर फोन करके दी. साथ ही संबंधित फोटो भी वाट्सएप की. अब सलीम के अम्मी-अब्बू अपने बेटे के शव को भारत लाकर उसे दफनाने के लिए जम्मू से लेकर दिल्ली तक चक्कर काट रहे हैं. बेहद गरीब इस परिवार के लिए मुश्किल यह है कि गुलाम कश्मीर के कानून के मुताबिक छह माह बीतने के बाद शव नहीं लौटाया जाता. अब उसका शव हासिल करने के लिए केवल दो ही माह का समय बचा है.

चार जून को गैस टैंकर जम्मू से लेह के लिए निकला. राजौरी जिले के ही ड्राइवर शौकत, जब्बार व हेल्पर के तौर पर सलीम गैस टैंकर में सवार थे. सात जून को कारगिल के ही द्रास ब्रिज से गैस टैंकर खाई में खिसककर दरिया-ए-सिंध के तेज बहाव में बह गया. न टैंकर मिला और न युवकों का कोई सुराग मिला. पुलिस ने हादसे में शामिल लोगों के लापता होने का मामला दर्ज कर लिया.

हादसे के एक महीने बाद जम्मू में टैंकर के मालिक चमन के मोबाइल पर गुलाम कश्मीर के स्कर्दू जिले से आशिक हुसैन का फोन आया. उसने बताया कि गिलगिट के खैरमंग में नदी किनारे गैस टैंकर आधा डूबा मिला है. टैंकर पर आपका मोबाइल नंबर लिखा था, इसलिए फोन किया है. तभी चमन ने राजौरी के साज में सलीम के अब्बू कबीर भट्ट को इस हादसे की सूचना दी. आशिक हुसैन ने सलीम के पिता कबीर को बताया कि गिलगित की पुलिस ने टैंकर से एक शव बरामद किया है.

आशिक ने वहां के हालात व शव की वाट्सएप पर फोटो कबीर को भेजीं. पिता ने फोटो देखकर बेटे सलीम के शव को पहचान लिया. आशिक हुसैन ने कबीर को बताया कि उनके मुल्क की पुलिस व मौलवी को जैसे ही पता चला कि शव हिंदुस्तानी है, उन्होंने कब्रिस्तान में दफनाने के बजाय जनाजा पढ़कर रेत में दफन कर दिया. वहीं हादसे के शिकार दो अन्य युवकों का अभी भी कोई सुराग नहीं मिला है.

बेबस सलीम के अब्बू कबीर व अम्मी गुलनाज परवीन ने कहा कि वे अधिक पढ़े-लिखे नहीं हैं, न पैसे हैं और न ही परमिट या पासपोर्ट. अगर पैसे व पासपोर्ट होता तो वे खुद ही गुलाम कश्मीर के प्रधानमंत्री से लेकर पाक के प्रधानमंत्री तक गुहार लगाकर शव को वापस लाने का प्रयास करते.

राजौरी के जिला आयुक्त एजाज अहमद असद का कहना है कि सलीम के परिवार व अन्य दो युवकों के परिवार ने हमसे संपर्क किया है. हमने उच्च अधिकारियों को अवगत करवाया है. हम सलीम के शव को वापस लाने व अन्य दो लापता लोगों की तलाश के लिए प्रयास कर रहे हैं. पीड़ित परिवारों को हर संभव मदद दी जाएगी.

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