‘मोदी सरकार ने HAL का भुगतान रोककर डसाल्ट को दिया’

केन्द्र सरकार ने जहां डलाल्ट से राफेल खरीदने का फैसला किया है और उसे सैकड़ों करोड़ का भुगतान कर रही है वहीं उसने एचएएल को उससे खरीदे गए सामान का 1000 करोड़ रुपये का भुगतान काम करवाने के बाद भी नहीं किया. नतीजा ये हैं कि एचएएल को उधार लेकर अपने कर्मचारियों की तनख्वाह देनी पड़ी. ये आरोप कांग्रेस पार्टी ने लगाया है.

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार रक्षा क्षेत्र में काम करने वाली सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक कंपनी को अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए 1000 करोड़ रुपये उधार लेने को मजबूर होना पड़ा है.

इस अख़बार ने पहली बार अक्टूबर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया था कि एचएएल के पास केवल उतना ही कैश बचा है, जिससे वह अपने 29,000 कर्मचारियों को तीन महीने की सैलरी दे सके.

बीते गुरुवार इस अख़बार से बात करते हुए कंपनी के चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर आर.माधवन ने बताया, ‘हमारे हाथ में बिल्कुल कैश नहीं है. हमें करीब 1 हज़ार करोड़ रुपये बतौर ओवरड्राफ्ट के बतौर उधार लेने पड़े हैं.  31 मार्च तक हमारे पास 6000 करोड़ रुपये की कमी हो जाएगी, जिसमें गुजारा करना बेहद मुश्किल हो जायेगा. हम रोज़मर्रा के काम के लिए उधार ले सकते हैं, लेकिन प्रोजेक्ट संबंधी खरीददारी के लिए नहीं.’

एचएएल इस समय अपनी ओवरड्राफ्ट सीमा 1,950 करोड़ रुपये से अधिक बढ़वाने पर काम कर रहा है.

कंपनी के सामने आए इस वित्तीय संकट की मुख्य वजह इसके सबसे बड़े उपभोक्ता भारतीय वायुसेना द्वारा बकाया न चुकाना है. सितंबर 2017 से भारतीय वायुसेना ने कंपनी को भुगतान नहीं किया है. अक्टूबर 2018 तक उनका कुल बकाया तक़रीबन दस हज़ार करोड़ रुपये था.

31 दिसंबर 2018 को यह बकाया 15,700 करोड़ रुपये था, जो माधवन के अनुसार 31 मार्च तक बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये हो जायेगा.

मालूम हो कि एचएएल का बिज़नेस मूल रूप से रक्षा मंत्रालय पर निर्भर करता है, जिसे सशस्त्र बलों को बजट आवंटित करने होते हैं, जो काम के लिए एचएएल को भुगतान करता है. 2017-18 के लिए रक्षा मंत्रालय ने 13,700 करोड़ रुपये का बजट दिया था, इसके बाद 2018-19 का संशोधित बजट 33,715 करोड़ रुपये था, जिसमें 2017-18 का बकाया शामिल था.

माधवन बताते हैं, ‘इसमें से 20, 287 करोड़ रुपये का आवंटन आया और प्राप्तियों का बैलेंस 16,420 करोड़ रुपये हुआ. आज की तारीख में बकाया राशि 15,700 करोड़ रुपये की है. और हम इसमें से कोई भी धनराशि किसी एडवांस के बतौर नहीं मांग रहे हैं, बल्कि जो प्रोडक्ट और सेवा हम दे चुके हैं, ये उसका बकाया है.’

इस 15,700 करोड़ रुपये में से करीब 14,500 करोड़ रुपये वायुसेना का बकाया है, वायुसेना ने सितंबर 2017 से अब तक केवल 2,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. बाकी सेना, नेवी और कोस्ट गार्ड का है.

माधवन बताते हैं कि हमेशा से हमारे पास पर्याप्त कैश रहा है, लेकिन ऐसा कई दशकों में पहली बार हुआ है कि हमें उधार लेना पड़ा है.

इससे वित्तीय संकट से जुड़ी एक समस्या यह भी है कि छोटे और मझोले उद्योग भी काम के लिए एचएएल पर निर्भर हैं. ऐसे छोटे विक्रेताओं की संख्या करीब 2000 है. माधवन कहते हैं कि यह भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि बकाये के चलते अगर एचएएल के सामने पैसे की कमी आती है, तो इसका प्रभाव उन पर भी पड़ेगा.

रक्षा क्षेत्र में काम करने वाली सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक कंपनी को अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए 1000 करोड़ रुपये उधार लेने को मजबूर होना पड़ा है.

इस अख़बार ने पहली बार अक्टूबर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया था कि एचएएल के पास केवल उतना ही कैश बचा है, जिससे वह अपने 29,000 कर्मचारियों को तीन महीने की सैलरी दे सके.

बीते गुरुवार इस अख़बार से बात करते हुए कंपनी के चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर आर.माधवन ने बताया, ‘हमारे हाथ में बिल्कुल कैश नहीं है. हमें करीब 1 हज़ार करोड़ रुपये बतौर ओवरड्राफ्ट के बतौर उधार लेने पड़े हैं.  31 मार्च तक हमारे पास 6000 करोड़ रुपये की कमी हो जाएगी, जिसमें गुजारा करना बेहद मुश्किल हो जायेगा. हम रोज़मर्रा के काम के लिए उधार ले सकते हैं, लेकिन प्रोजेक्ट संबंधी खरीददारी के लिए नहीं.’

एचएएल इस समय अपनी ओवरड्राफ्ट सीमा 1,950 करोड़ रुपये से अधिक बढ़वाने पर काम कर रहा है.

कंपनी के सामने आए इस वित्तीय संकट की मुख्य वजह इसके सबसे बड़े उपभोक्ता भारतीय वायुसेना द्वारा बकाया न चुकाना है. सितंबर 2017 से भारतीय वायुसेना ने कंपनी को भुगतान नहीं किया है. अक्टूबर 2018 तक उनका कुल बकाया तक़रीबन दस हज़ार करोड़ रुपये था.

31 दिसंबर 2018 को यह बकाया 15,700 करोड़ रुपये था, जो माधवन के अनुसार 31 मार्च तक बढ़कर 20,000 करोड़ रुपये हो जायेगा.

मालूम हो कि एचएएल का बिज़नेस मूल रूप से रक्षा मंत्रालय पर निर्भर करता है, जिसे सशस्त्र बलों को बजट आवंटित करने होते हैं, जो काम के लिए एचएएल को भुगतान करता है. 2017-18 के लिए रक्षा मंत्रालय ने 13,700 करोड़ रुपये का बजट दिया था, इसके बाद 2018-19 का संशोधित बजट 33,715 करोड़ रुपये था, जिसमें 2017-18 का बकाया शामिल था.

माधवन बताते हैं, ‘इसमें से 20, 287 करोड़ रुपये का आवंटन आया और प्राप्तियों का बैलेंस 16,420 करोड़ रुपये हुआ. आज की तारीख में बकाया राशि 15,700 करोड़ रुपये की है. और हम इसमें से कोई भी धनराशि किसी एडवांस के बतौर नहीं मांग रहे हैं, बल्कि जो प्रोडक्ट और सेवा हम दे चुके हैं, ये उसका बकाया है.’

इस 15,700 करोड़ रुपये में से करीब 14,500 करोड़ रुपये वायुसेना का बकाया है, वायुसेना ने सितंबर 2017 से अब तक केवल 2,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है. बाकी सेना, नेवी और कोस्ट गार्ड का है.

माधवन बताते हैं कि हमेशा से हमारे पास पर्याप्त कैश रहा है, लेकिन ऐसा कई दशकों में पहली बार हुआ है कि हमें उधार लेना पड़ा है.

इससे वित्तीय संकट से जुड़ी एक समस्या यह भी है कि छोटे और मझोले उद्योग भी काम के लिए एचएएल पर निर्भर हैं. ऐसे छोटे विक्रेताओं की संख्या करीब 2000 है. माधवन कहते हैं कि यह भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि बकाये के चलते अगर एचएएल के सामने पैसे की कमी आती है, तो इसका प्रभाव उन पर भी पड़ेगा.

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