जस्टिस लोया केस में नया ट्विस्ट, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट ने खड़े किए नये सवाल

नई दिल्ली: जस्टिस लोया की मौत पर जितने बड़े स्तर पर विवाद चल रहा है उतनी ही गहरी पड़ताल भी जो रही है. इंडियन एक्सप्रेस ने जस्टिस लोया की मौत पर जो पड़ताल की है उसने मामले को पूरी तरह बदल दिया है. अखबार के मुताबिक जस्टिस लोया की मौत पर उठाए गए सवाल गलत हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की ने जांच का दावा किया है और कहा है कि कारवां मैगजीन के कई दावे गलत हैं. अस्पताल में ‘ECG मशीन के काम नहीं करने के कारवां के दावे को भी अखबार ने गलत बताया है. अखबार का कहना है कि अस्पताल की डांडे अस्पताल की ईसीजी मशीन ठीक-ठाक काम कर रही थी. इस बात के समर्थन में इंडियन एक्सप्रेस ने जस्टिस लोया की ईसीजी की एक कॉपी भी छापी है. इस कॉपी में ईसीजी की तारीख भी दिख रही है.

इंडियन एक्सप्रेस की पड़ताल ने उस दावे को भी गलत बताया है जिसमें कहा गया था कि  ‘परिवार की तरफ से अपरिचित एक शख्स ने बॉडी को उठाया’, जज की मौत के बाद उनकी बॉडी को लावारिस हाल में छोड़ दिया गया और उनके पार्थिव शरीर को जज लोया के पैतृक गांव में बिना किसी एस्कॉर्ट के भेजा गया’,

जस्टिस भूषण गवई (बाएं) और जस्टिस सुनील शुक्रे ने कहा कि दोनों उनकी मौत के वक्त अस्पताल में मौजूद थे. फोटो सौजन्य इंडियन एक्सप्रेस

जस्टिस भूषण गवई उसी गेस्ट हाऊस में ठहरे थे जिसमें जस्टिस लोया को सीने में दर्द हुआ था. जस्टिस गवई ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया- ‘लोया अपने साथी जज श्रीधर कुलकर्णी, श्रीराम मधुसूदन मोडक के साथ ठहरे हुए थे. सुबह चार बजे उन्हें कुछ तकलीफ महसूस हुई. स्थानीय जज विजयकुमार बर्दे और उस समय के हाईकोर्ट के नागपुर बेंच के डिप्टी रजिस्ट्रार रुपेश राठी उन्हें सबसे पहले दांडे अस्पताल ले गये. ये अस्पताल गेस्ट हाउस से 3 किलोमीटर दूर स्थित है. ये लोग दो कारों में अस्पताल पहुंचे.’ जस्टिस शुक्रे ने कहा कि, ‘जस्टिस बर्दे ने उन्हें अपनी कार में बिठाकर, खुद कार चलाकर दांडे हॉस्पिटल ले गये.’ (जबकि कारवां मैगज़ीन ने दावा किया था कि जस्टिस लोया को ऑटो रिक्शा में ले जाया गया)

कारवां रिपोर्ट और जज की बहन ये सवाल उठाती हैं कि दांडे अस्पताल में जस्टिस लोया की ECG क्यों नहीं की गई. जबकि रिकॉर्ड बताते हैं कि दांडे अस्पताल में ECG की गई थी. इंडियन एक्सप्रेस ने ये कॉपी भी छापी है. जब दांडे अस्पताल के डायरेक्टर पिनाक दांडे से संपर्क किया गया तो उन्होंने अखबार को बताया, ‘ उन्हें हमारे अस्पताल में सुबह 4.45 या 5 बजे के करीब लाया गया, हमारे अस्पताल में 24 घंटे चलने वाला ट्रामा सेंटर है, घटना के वक्त अस्पताल में एक मेडिकल ऑफिसर मौजूद थे जिन्होंने जज लोया को चेक किया. जब उनकी ECG की गई तब हमें महसूस हुआ कि उन्हें विशेष ह्रदय चिकित्सा की जरूरत है जो हमारे अस्पताल में मौजूद नहीं थी, इसलिए हमने उन्हें एक बड़े अस्पताल में ले जाने की सलाह दी, इसके बाद वे उन्हें मेडिट्रिना अस्पताल ले गये.’

जस्टिस लोया की ईसीजी रिपोर्ट. नीचे तारीख भी साफ दिख रही है.

मेडिट्रिना अस्पताल के प्रबंध निदेशक ने इस मामले में बात करने से इनकार कर दिया. लेकिन अस्पताल से इंडियन एक्सप्रेस को मिले दस्तावेज के मुताबिक पता चलता है कि जब उन्हें इस अस्पताल में लाया गया तो उन्हें रेट्रोस्ट्रनल चेस्ट पेन हुआ था और वे बेहोश हो गये थे. इस अस्पताल में तुरंत उनका इलाज शुरू किया गया. उन्हें 200 J के कई डॉयरेक्ट शॉक दिये गये. प्रोटोकॉल के मुताबिक सीपीआर किया गया. लेकिन कई कोशिशों के बावजूद जस्टिस लोया को होश नहीं आया. मेडिट्रिना अस्पताल में ही कई दूसरे जज पहुंचे. इंडियन एक्सप्रेस बातचीत में जस्टिस गवई ने कहा कि, ‘ मुझे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार ने फोन किया मैं अपने साथी जज जस्टिस शुक्रे के साथ अस्पताल पहुंचा. कई दूसरे जज भी पहुंचे, जिसमें चीफ जस्टिस मोहन शाह भी शामिल थे लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. इस मामले में ना तो उनकी मौत को लेकर कोई शक है और ना ही घटनाओं को लेकर.’

 

बहरहाल कारवां पत्रिका की रिपोर्ट में कुछ झोल सामने आए हैं . इंडियन एक्सप्रेस की पड़ताल में ये बिंदू गलत साबित हुए हैं लेकिन फिर बी कई अहम सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बाकी है. इनमें अहम है …

  • मुंबई में घर होते हुए भी जस्टिस लोया का शव पैतृक गांव क्यों भेजा गया?
  • पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के हर पेज पर एक रहस्मय शख्स के दस्तख्वत हैं, ये दस्तख्वत जस्टिस लोया के कथित ममेरे भाई का बताया गया है. परिवार का कहना है-संंबंधित हस्ताक्षर वाला  जस्टिस का कोई ममेरा भाई नहीं है
  • अगर इस रहस्यमय मौत के पीछे कोई साजिश नहीं थी तो फिर मोबाइल के सारे डेटा मिटाकर उनके परिवार को ‘डिलीटेड डेटा’ वाला फोन क्यों दिया गया
  • अगर मौत हार्टअटैक से हुई फिर कपड़ों पर खून के छींटे कैसे लगे.