गुजरात के ठीक बाद बीजेपी की एक और अग्नि परीक्षा, तैयारी में जुटा नेतृत्व


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नई दिल्ली :  गुजरात भले ही बीजेपी जीत गई लेकिन अब उसकी टेंशन बढ़ गई है. उसका सबसे बड़ा टेंशन है आठ लोकसभा सीटों पर होनेवाले उपचुनाव . अगले कुछ महीनों में इन सीटों पर मतदान होने हैं. बीजेपी के सामने इनमें चार पर अपना कब्जा कायम रखने की चुनौती है. केंद्र की सत्ता पर काबिज पार्टी को इन सीटों पर कांग्रेस के दिग्गज चेहरों से चुनौती मिलनेवाली है.

अभी लोकसभा की जो 8 सीटें खाली हैं, उनमें राजस्थान से दो अजमेर और अलवर, यूपी से दो गोरखपुर और फूलपुर, बिहार का अररिया, जम्मू-कश्मीर का अनंतनाग, पश्चिम बंगाल का उलुबेरिया और महाराष्ट्र का भंडारा गोंदिया शामिल हैं.

संवैधानिक नियमों के मुताबिक कोई सीट खाली होने के छह महीने के अंदर वहां उपचुनाव करवाना अनिवार्य है. इस लिहाज से देखें तो खाली पड़े आठ में से कुल छह सीटों पर उपचुनाव करवाने की अधिकतम समय-सीमा फरवरी 2018 है. हालात सामान्य नहीं होने की वजह से अनंतनाग उपचुनाव टाला जा चुका है. भंडारा गोंदिया में भी वक्त से चुनाव हो जाएगा.

अजमेर और अलवर की सीटें तत्कालीन बीजेपी सांसदों क्रमशः सांवर लाल जाट का अगस्त में और महंत चांद नाथ का सितंबर में निधन से खाली हुई थीं. इधर, योगी आदित्यनाथ के यूपी के मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद मौर्य के उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद क्रमशः गोरखपुर और फूलपुर की सीटें खाली हो गईं. दोनों ने अगस्त महीनें में सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था.

अररिया के आरजेडी सांसद तस्लिमुद्दीन और उलुबेरिया के टीएमसी सांसद सुल्तान अहमद का सितंबर में निधन हो गया था जबकि तत्कालीन बीजेपी सांसद नानाभाऊ पटोले के हाल में पार्टी छोड़कर संसद सदस्यता से इस्तीफा देने से भंडारा गोंदिया सीट खाली हो गई. 2014 के चुनाव में पटोले ने यहां एनसीपी के कद्दावर नेता प्रफुल्ल पटेल को हराया था.

कांग्रेस के सूत्रों ने इशारों-इशारों में कहा कि 2014 चुनाव में हारे राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को पार्टी अजमेर से जबकि भंवर सिंह को अलवर से दोबारा खड़ी करेगी जो चांद नाथ के हाथों पराजित हुए थे. इधर, बीजेपी सूत्रों के मुताबिक बेहरोर विधायक और वसुंधरा राजे सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ. जसवंत यादव अलवर से जबकि सावंर लाल जाट के पुत्र राम स्वरूप लांबा अजमेर से पार्टी के उम्मीदवार होंगे.

भगवा दल पर सबसे ज्यादा दबाव यूपी की गोरखपुर और फूलपुर सीटें बचाने का है. हालांकि, योगी आदित्यनाथ का करिश्मा कायम रहने से गोरखपुर में जीत बहुत मुश्किल नहीं दिख रही, लेकिन फूलपुर में जीतना आसान नहीं होगा क्योंकि हालिया नगरपालिका चुनाव में यहां बीजेपी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था.