विश्व के महानतम नेताओं में शामिल हो जाएंगे मोदी ? नेहरू से भी बड़ा कद करने की तैयारी

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इजरायल यात्रा को अगर आप मामूली विदेश यात्रा मान रहे हैं तो आप चूक कर रहे हैं. इस यात्रा से पीएम मोदी अपने लिए जो भूमिका तलाश रहे हैं वो हो सकता है उन्हें विश्व इतिहास का अहम नेता बना दे. विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार मोदी का इरादा दुनिया में अपनी अहमियत सबसे ऊपर ले जाकर रखने का है. मोदी की ये भूमिका सिर्फ कुछ ड्रोन या अन्य हथियार खरीदने तक नहीं है. मामला सिर्फ गले मिलकर फोटो खिंचवाने का भी नहीं है. विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि पिछले लंबे समय से पीएम मोदी की सरकार इस कोशिश में लगी है कि भारत फिलीस्तीन और इस्रायल के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाए. दोनों देशों के समझौते में तीन विकल्पों पर काम हो रहा है. एक फिलीस्तीन और इस्रायल को मिलाकर एक देश बना दिया जाए. दूसरा दो देश हों जिनमें गाज़ा पर समान अधिकार हो और तीसरा गाज़ा को स्वतंत्र जगह बना दिया जाए.

अगर मोदी फिलीस्तीन और इस्रायल के बीच संबंधों को शांति की ओर ले जाते हैं तो उन्हें विश्व के बेहद प्रभावशाली लोगों में समझा जाएगा. 70 साल से इन दोनों देशों के बीच गाजा पट्टी को लेकर विवाद बना हुआ है और अब तक हिंसा में हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं.

संघर्ष का इतिहास

फिलिस्तीन और इजरायल के बीच संघर्ष इन तमाम संघर्ष के बाद फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद शुरू हुआ, इजरायल के खिलाफ पीएलओ यानि पैलेस्टाइन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ने इजरायल के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू की, जिसके काफी चर्चित नेता थे यासिर अराफात। फिलिस्तीन के लोगों ने इजरायल सरकार के खिलाफ अपना विरोध शुरू कर दिया, क्योंकि इन लोगों को इनके अधिकार नहीं मिले और वेस्ट बैंक पर इजरायल की सेना तैनात थी। यह विवाद हिंसा में तब्दील हो गई और तकरीबन 100 यहूदी और 1000 अरब की मौत हो गई। इसी दौरान हमास का जन्म हुआ, जोकि पीएलओ से भी ज्यादा खतरनाक थी।

पीएलओ इजरायल से समझौते के पक्ष में था, जबकि हमास का मानना था कि इजरायल देश का अस्तित्व ही नहीं है, हम इसे राष्ट्र नहीं मानते हैं। 1993 में ओस्लो करार के तहत इजरायल और फिलिस्तीन या यूं कहें इजरायल के पीएम येट्सचाक राबिन और पीएलओ के नेता यासिर अराफात के बीच समझौता हुआ, इन दोनों ही नेताओं को नोबेल पीस अवॉर्ड मिला था। इस समझौते के तहत पीएलओ ने इजरायल को एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता दी और इजरायल की सरकार ने पीएलओ को मान्यता दी। इससे पहले पीएलओ को आतंकी संगठन माना जाता था। समझौते के तहत पांच साल के लिए हिंसा को रोकने पर करार हुआ।

लेकिन इस समझौते के बावजूद गाज़ा पट्टी पर विवाद है. इसपर कब्जे को लेकर तनाव जारी है. इस तनाव के बीच मोदी सरकार लगातार दोनों पक्षों के संपर्क में रही है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पिछले साल अक्टूबर में फिलिस्तीन का दौरा किया था। विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान के मुताबिक, 17 जनवरी को सुषमा फिलिस्तीन के प्रमुख नेताओं से मिलींगी और भारत-फिलिस्तीन संबंधों पर बात करेंगी। सुषमा वहां रामल्ला में फिलिस्तीन डिजिटल लर्निग एंड इनोवेशन सेंटर का उद्घाटन भी करके आईं

इसके बाद सुषमा अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ 17-18 जनवरी को इजरायल का दौरा करने गईं. यह सुषमा की पहली इजरायल यात्रा थी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी पिछले साल अक्टूबर में इजरायल का दौरा किया था।

इस दौरान इजरायली दूतावास द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि सुषमा स्वराज वहां राष्ट्रपति रेवेन रिवलिन, प्रधानमंत्री वेंजामिन नेतन्याहू, रक्षामंत्री मोशे यालोन, राष्ट्रीय अवसंरचना मंत्री यूवल स्टिनिट्ज और इजरायली सांसदों से मिलीं. जानकारों का कहना है कि इन यात्राओं के दौरान मोदी की यात्रा की भूमिका बनी. इतना ही नहीं दोनों पक्षों के साथ विचार विमर्ष भी जारी रहा.

पिछले साल नवंबर में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी इजरायल की यात्रा की थी। वहीं, 2015 में इजरायल के कृषिमंत्री याइर शामिर और रक्षामंत्री यालोन भारत आए थे। सुषमा स्वराज ने 2008 में भारत-इजरायल संसदीय मैत्री समूह के तहत इजरायल की यात्रा की थी। दूतावास ने कहा है कि इस यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंध सुदृढ़ होंगे।

माना जा रहा है कि इन दोनों दुश्मनों की पुरानी रंजिश हो सकता है कि मोदी की मध्यस्थता से ऐतिहासिक भाईचारे में बदल जाए.