SHOCKING: मोदी जी ये है देश का हाल, फॉरेन रिटर्न एमबीए लड़कियां भीख मांगने को मजबूर


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नई दिल्ली :  हो सकता है कि बेरोज़गारी और जीएसटी पर नये सिरे से बहस शुरू हो जाए लेकिन ये बेहद कड़वा और धक्का पहंचाने वाला सच है कि भारत जैसे देश में अच्छी खासी पढ़ाई करके तमाम युवा भीख मांग रहे हैं. हम ये बात सिर्फ हवाई बातों में नहीं कह रहे बल्कि हमारी आपनी सरकार के आंकड़े इस हकीकत को बयान करते हैं. पिछली जनगणना में खुद गुजरात सरकार इसका खुलासा कर चुकी है. गुजरात सरकार ने कहा था कि भारत में 78 हजार ऐसे भिखारी हैं जो 12वीं पास और डिग्री, डिप्लोमाधारी हैं. इसी तरह बिहार में समाज कल्याण विभाग की सर्वे रिपोर्ट में खुलासा हो चुका है कि वहां 4.5 फीसद भिखारी शिक्षित हैं. वे पटना में लगभग छह सौ रुपए रोजाना भीख कमा लेते हैं. ये सर्वे समेकित पुनर्वास के उद्देश्य से कराया गया था.

राजधानी हैदराबाद में पिछले दिनो भीख मांगते हुए एक एमबीए पास फरजोना नाम की युवती को पकड़ा गया. वह लंदन में एकाउंट ऑफिसर की नौकरी कर चुकी हैं. वह विगत दो वर्षों से गंभीर हालात का सामना कर रही थी. पति की मृत्यु के बाद से वह आनंदबाग में अपने आर्किटेक्‍ट बेटे के साथ रह रही है. जब वह जिंदगी से आजिज आकर जिज्ञासा शांत करने के लिए एक बाबा के पास पहुंची तो उसने भ‍िखारी बना दिया. इसी तरह अमेरिकी ग्रीन कार्डधारी राबिया हैदराबाद में ही एक दरगाह के सामने भीख मांगती पकड़ी गई. उसके भिखारी बनने की अलग ही कहानी है. उसके रिश्तेदारों ने ही धोखे से उसकी सारी संपत्ति हजम कर ली.

 

एक व्यक्ति को तो जब उसकी योग्‍यता के अनुसार नौकरी नहीं मिली तो एक अस्‍पताल में वॉर्ड बॉय बन गया. वह काम भी मतलब का नहीं लगा तो वह भिखारी बन गया. अब उसे पहले से ज्यादा कमाई होती है. बताया जाता है कि उसने 30 भिखारियों की एक टीम भी बना ली है. एक ताजा चौंकाने वाली खबर हाल ही में आंध्र प्रदेश से आई है, जहां अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी को तो चमत्कृत करने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां चल रही हैं, जबकि उसी शहर की पढ़ी-लिखी बेटियां सड़कों पर भीख मांग रही हैं.

आंध्र प्रदेश के ही गुंटूर जिले में सत्ताईस वर्षीय युवक को परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण हाई स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. किसी तरह उसे मुंबई में काम तो मिला लेकिन बंधुआ मजदूर जैसा. उससे मुक्ति पाने के लिए वह भीख मांगने लगा. आंध्र प्रदेश में सार्वजनिक जगहों, शहर के मुख्‍य चौराहों पर दो महीने तक कोई भिखारी नजर नहीं आएगा, क्योंकि ट्रंप की बिटिया आ चुकी हैं.

शिक्षाशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों का कहना है कि शिक्षा और रोजगार के बीच सही तालमेल न होने की वजह से यह दुखद हालात पैदा हुए हैं. उनकी आशंका है कि पढ़े लिखे भिखारियों की वास्तविक संख्या और अधिक हो सकती है. भिक्षावृत्ति को समाज में अच्छा नहीं माना जाता, इसलिए ज्यादातर उच्च शिक्षित भिखारी सर्वे के दौरान अपनी शैक्षिक स्थिति के बारे में झूठ बोलते हैं. अधिकतर मामलों में उच्च शिक्षित लोग मजबूरी में भीख मांगते हैं लेकिन कुछ समय बाद यह एक आदत बन जाती है.

मसलन, गुजरात सरकार वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार खुलासा कर चुकी है कि देश में 3.72 लाख भिखारी हैं और इनमें 78 हजार ऐसे हैं जो या तो 12वीं पास हैं या फिर डिग्री, डिप्‍लोमाधारी. उसी वक्त यह भी बताया गया कि इन भिखारियों में 21 फीसद 12वीं पास थे तो तीन हजार ऐसे भी, जिनके पास कोई न किसी न किसी प्रोफेशनल कोर्स की डिग्री थी. इसके अलावा कई तो ऐसे रहे जो एमए, बीए की पढ़ाई पूरी कर चुके थे. यह सच आए दिन आंखों के सामने से गुजरता है कि एक चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी और इंजीनियरिंग की डिग्री लिए लोग आवेदन कर रहे हैं.