मास्टर प्लान में बदलाव हुआ तो मुसीबत में फंस जाएंगे व्यापारी, इससे तो अच्छी सीलिंग है.

नई दिल्ली: दिल्ली में सीलिंग रोकने के लिए मास्टर प्लान बदला जा रहा है. सिर्फ बदला ही नहीं जा रहा बल्कि जोर शोर से बदला जा रहा है. हालात ये हैं कि पूरी दिल्ली में सीलिंग पर जबरदस्त जल्दबाजी दिखाई जा रही है. इतने बड़े स्तर पर किसी शहर का मास्टर प्लान बदलने के लिए आपत्तियां दर्ज कराने के लिए सरकार सिर्फ तीन दिन का समय दिया. जाहिर बात है इतनी बड़ी दिल्ली में क्य समस्याएं हो सकती है इसके लिए तीन दिन में कोई दस्तावेज कहां से तैयार कर लेगा. खैल इस सबके बावजूद सीलिंग से व्यापारियों को कोई राहत नहीं मिलने वाली है. यहां बंदर के मंत्री बनने वाली वो कहानी याद आती है जिसमें वो फरियादियों के आते ही पेड़ पर चढ़ना उतरना शुरू कर देता था और कहता था मेरी तरफ से मेहनत में तो कोई कसर नही है ना. इसके बाद फिर सो जाता था.

सीलिंग को लेकर मास्टर प्लान में संशोधन पर भी यही हो सकता है. जो संशोधन वह करने जा रहा है, उसको लेकर न तो कारोबारी संतुष्ट हैं और न ही आरडब्ल्यूए. अब तो विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के नेता भी यह कहने लगे हैं कि डीडीए के इन संशोधनों से सीलिंग से बचना मुश्किल है. डीडीए के पूर्व अडिशनल कमिश्नर (टाउन प्लैनिंग) व सिटी प्लानर आरजी गुप्ता के हवाले से नवभारत टाइम्स सिखता है कि डीडीए के नए संशोधनों में एफएआर 350 करने और ग्राउंड फ्लोर पर पार्किंग स्पेस देने का संशोधन दिया गया है. अखबार के अनुसार यह छूट तो उस नई इमारत को ही मिल पाएगी, जिसका निर्माण कारोबारी गतिविधियों के लिए किया जाना है. जो इमारत पहले ही खड़ी हैं उनपर ये छूट नहीं मिल सकेगी. नए निर्माण में ही एफएआर बढ़ाया जा सकता है और उसी के आधार पर पार्किंग स्पेस छोड़ा जा सकता है.

दूसरी बात ये कि दरअसल पहले से बनी हुई इमारतों को तोड़कर कोई नये सिरे से बनाने से तो रहा. इससे सस्ता तो कनवर्जन चार्ज जमा करना ही है.  एमसीडी के पूर्व मेयर सुभाष आर्य का कहना है कि जिन सड़कों में व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं, उनमें तो हर फ्लोर का मालिक अलग-अलग है. बढ़े एफएआर के लिए ऐसी इमारतों का नए सिरे से निर्माण करना होगा और उसके बाद ही पार्किंग स्पेस भी निकल पाएगा.

आर्य के अनुसार सीधी-सी बात यह है कि डीडीए के इन संशोधनों का लाभ वर्तमान व्यावसायिक सड़कों को मिलने वाला नहीं है. एकीकृत एमसीडी की निर्माण समिति के पूर्व चेयरमैन जगदीश ममगांई ने भी डीडीए के प्रस्तावित संशोधनों को अपर्याप्त व अनवाश्यक बताया है. उनका कहना है कि इससे व्यापारियों को सीलिंग से मुक्ति नहीं मिलेगी, अवैध बिल्डर माफिया प्रोत्साहित होगा व दिल्ली और अधिक अनियोजित शहर के रूप में परिवर्तित होगा.

कुल मिलाकर पार्टियां व्यापारियों की नाराज़गी कम करने के लिए आंख बंद करके समाधान निकाल रही हैं. इससे होगा कुछ नहीं लेकिन व्यापारियों के लिए मुसीबत बढ़ जाएगी. आज तो कुछ लाख का कनवर्जन चार्ज देना पड़ रहा बाद में इमारत तोड़कर बनानी पड़ेगी.