इस मीडिया को विशेषाधिकार क्यों मिलना चाहिए जो खबरें एजेंडा के लिए लिखता है. जो विज्ञापन घोटाला करने के लिए टीआरपी के सैंपल से छेड़छाड़ करता है. जो नेताओं के यहां हाजिरी लगाता है. जो किसी राज्य के सीएम के गुणगान वाला आधे घंटे का शो चलाता है और पैसे लेकर खबरें गिरवी रख देता है. जिसके संपादक मुनाफे के सामने साष्टांग रहते हैं.

उस मीडिया को समाज की आवाज क्यों माना जाए जो समाज के लिए काम नहीं करता बल्कि समाज को ‘चलाने’ और बहकाने का काम करता है. जो सिर्फ मति फेरने और मतिभ्रम पैदा करने में लगा है. जिसका धर्म कुछ और दमड़ियां बना लेने का है. जिसको जन सरोकार की सूचनाओं से लेना देना नहीं.
जिसे बच्चियों की परवाह नहीं. जिसे रेप भी मुनाफे का एक हथियार लगता है. जिसके लिए हत्या एक मसाला है और जिसके लिए आलोचना भी व्यावसायिक आयोजन है. जिसमें अनगिनत मूर्ख चोरी की टीआरपी महानायक बन गए हैं.
मेरे खयाल से मीडिया अपना सम्मान खो चुका है. दुखद है कि ऐसा हुआ है. नहीं होना चाहिए था क्योंकि इससे सरकार बेलगाम होजाएगी लेकिन ये क्या वाकई लगाम थे या उसी सरकार का हिस्सा बन चुके थे.
मैं भी उसी मीडिया का हिस्सा हूं लेकिन मैं जो हूं वो हूं जब हिस्सा बना था तो नहीं पता था कि ये सब ऐसा हो जाएगा. वरना कौन आता यहां. खैर जागरूक रहें क्योंकि अब जो मीडिया सत्यता जांचकर आपको खबरें दिया करता था उसी की खबरों की सत्यता जांचकर ही भरोसा करना होगा. जैसे सोशल मीडिया या वाट्सएप की खबरों का करते हैं.
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