30 साल बाद : भारत के लोग बन जाएंगे भिखारी, आप भी बन सकते हैं सरकारी नीतियों के शिकार

नई दिल्ली: आप मानें या न मानें लेकिन 30 साल बाद भारत एक भिखारी देश होगा. ये भविष्यवाणी ऐसे ही नहीं की जा रही बल्कि सरकारी नीतियां इसे उसी तरफ धकेल रह हैं. आगे बढ़ने से पहले बता दें कि भारत आज दुनिया का सबसे युवा देश है और 30 साल बाद ये सबसे बुजुर्ग देश होगा. बुजुर्ग देश के पास कमाने के लिए कोई जरिया नहीं होगा बुजुर्ग उत्पादन करने की हालत में नहीं होंगे और ज्यादातर देश रिटायर हो चुका होगा. अब बताते हैं वो नीतियां जो देश को गुलामी की ओर धकेल देंगी.

पहली नीति

पेंशन योजना खत्म : अब कर्मचारियों को रिटायर होने के बाद पेंशन नहीं मिलेगी. मनमोहन सिंह सरकार रिटायरमेंट पर पेंशन देने की योजना खत्म कर चुकी है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि कॉर्पोरेट्स जैसे अंबानी, अडानी, टाटा और बिड़ला पर कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद कोई लाभ देने का दबाव न रहे.

दूसरी नीति

पीएफ का शेयर कम: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन पीएफ समेत अन्य सामाजिक सुरक्षा स्कीम में अनिवार्य अंशदान को घटा कर दस फीसदी करना: अब तक पीएफ में आपके वेतन से दस फीसदी पैसा कटता था. इतना ही पैसा आपका एंप्लायर देता था लेकिन एक झटके से ये पैसा अब 10 फीसदी होने जा रहा है. यानी आपके वेतन का 24 फीसदी पैसा आपके फ्यूचर के काम आता था ये पैसा सीधे 20 फीसदी हो जाएगा. यानी आपकी भविष्य निधि सीधे 16 फीसदी कम हो जाएगी. अभी कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ), कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस), एम्प्लॉयी डिपोजिट लिंक्ड इंश्योरेंस स्कीम (ईडीएलआई) आदि में कर्मचारी और नियोक्ता की ओर से मूल वेतन का 12-12 फीसदी जमा कराया जाता है.

सूत्रों के मुताबिक पुणे में शनिवार को ईपीएफओ की होने वाली बैठक के एजेंडे में अंशदान को 10 फीसदी करने का प्रस्ताव शामिल है. श्रम मंत्री का कहना है उन्हें कई लोगों ने ज्ञापन दिए थे इसलिए सरकार ऐसा कर रही है. सब जानते हैं कि ऐसे उल्टे ज्ञापन कौन देता होगा. इस बीच ट्रेड यूनियनों ने इस प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला लिया है. यूनियनों का कहना है कि इससे सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाएं कमजोर होंगी.

तीसरी नीति

व्याज दर कम होते जाना: बैंकों में जमा पूंजी पर ब्याज़ दर लगातार कम हो रही है. बैंकों का ही नहीं पीएफ का ब्याज भी कम हो रहा है जाहिर बात है कि सरकार की इन नीतियों से बची खुची जमा पूंजी पर ब्याज भी इतना नहीं होगा कि बुजुर्ग अपने लिए रोटी कमा सकें.

ये न तो अतिशयोक्ति है न दूर का सपना लेकिन ये नीतियां बेहद खतरनाक हैं जब देश की ज्यादातर आबादी की औसत आयु 60 साल से ज्यादा होगी तो उसके हाथ में दो जून की रोटी के लिए भी पैसा नहीं होगा. ऐसे में देश भिखारियों का देश ही तो बनेगा.