पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के शासनकाल में बेरोज़गारी का सबसे ज्यादा शिकार हिंदू और सिख हुए हैं. सरकारी सस्था NSSO की रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 के मुकाबले 2017-18 में सिख समुदाय में बेरोजगारी 2 गुना (शहर) और 5 गुना (गांव) में बढ़ी है.
इसी तरह हिंदुओं में दो गुनी (शहर) और तीन गुनी (गांव) और इसके बाद मुसलमानों में दो गुनी रफ्तार से बेरोजगारी बढ़ी है.
अगर बेरोजगारी के मामले में महिलाओं का जातिगत विश्लेषण करें तो 2011-12 की तुलना में 2017-18 में अनुसूचित जनजाति और सामान्य वर्ग की माहिलाओं में बेरोजगारी काफी तेजी से बढ़ी है. शहरी इलाकों की बात करें तो यहां पर अनुसूचित जाति कि महिलाओं का आंकड़ा रोजगार के मामले में बेहद कम है.
इसके बाद ओबीसी पुरुषों के लिए भी रोजगार के बेहद कम अवसर मुहैया हो पाए हैं.
बिजनस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 की तुलना में 2017-18 में देश में बेरोजगारों की फौज काफी ज्यादा बढ़ चुकी है. रिपोर्ट में NSSO के एक सर्वे का हवाला दिया गया है. सर्वे में धर्म, जाति और लिंग के आधार पर विश्लेषण करने पर पाया गया कि बेरोजगारी की मार सबसे ज्यादा सिख समुदाय और उसके बाद हिंदुओं पर पड़ी है.
बेरोजगारी का दंश झेलने में मुस्लिम समुदाय तीसरे पायदान पर हैं. वहीं, महिलाओं की बात करें तो ग्रामीण इलाकों में अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ सामान्य वर्ग की महिलाओं में भी रोजगार का अभाव हुआ है.
सर्वे में 2011-12 और 2017-18 के तुलनात्मक अध्ययन में पाया गया कि मोदी सरकार रोजगार के अवसर मुहैया कराने में नाकाम रही है. जिस तरह से मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बेरोजगारी की समस्याओं को निपटारा किया, उतने कारगर ढंग से मोदी सरकार इस समस्या से निपटने में असफल रही है.
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