उसने अपनी जान दे दी दूसरे खतरे में न पड़े, सैनिक था फर्ज निभा गया

कच्छ: एक पायलट के लिए इससे बड़ी जांबाज़ी कुछ नहीं हो सकती कि वो लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान दे दे. कच्छ में हुए हादसे में एयर कॉमोडोर संजय चौहान ने अपनी जान दे दी वो चाहते तो पैराशूट से कूदकर अपनी जान बचा सकते थे लेकिन इससे प्लेन गांव पर गिरता. सैकड़ों लोगों की जान को खतरा हो सकता था इससे.

संजय चौहान उसी हादसे का शिकार हुए जो मंगलवार को कच्छ में हुआ. वो जगुआर विमान में सवार थे. अचानक गड़बड़ी आनी शुरू हो गई. चौहान के पास दो विकल्प थे या तो वो विमान से कूद जाते या उसे ऐसी जगह क्रेश कराते जहां आबादी न हो. एक पायलट की जान हमेशा विमान से ज्यादा कीमती होती है. अगर वो कूद जाते तो भी उन्हें कोई गलत नहीं कहता सेकिन चौहान ने दूसरा विकल्प चुना और एयरक्राफ्ट जगुआर को नंदी सरोवर के नजदीक उतारने की कोशिश की. कामयाब नहीं हुए तो उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर खाली खेत में प्लेन की इमरजेंसी लैंडिंग की. जाहिर बात है ये सही विकल्प नहीं था. संजय को हादसे में गभीर चोटें आई थीं. वो शहीद हो गए.

गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना का जगुआर लड़ाकू विमान गुजरात के जामनगर वायुसैनिक अड्डे से उड़ान भरने के तुरंत बाद कच्छ जिले में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. एक रक्षा प्रवक्ता ने बताया कि विमान बरेजा गांव के एक खेत में दुर्घटनाग्रस्त हुआ. हादसे में जामनगर वायु सेना केंद्र के एयर ऑफिसर कमांडिंग, एयर कॉमोडोर संजय चौहान की मौत हो गई. उन्हें वायु सेना पदक मिला हुआ था.

रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष ओझा ने बताया, ‘जामनगर से नियमित प्रशिक्षण मिशन पर निकला जगुआर विमान सुबह करीब साढ़े दस बजे दुर्घटनाग्रस्त हो गया.’ 50 वर्षीय चौहान को 16 दिसंबर, 1989 को वायुसेना के युद्धक दस्ते में शामिल किया गया था और वह एक क्वालीफाइड फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर (क्यूएफआई) और एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलट थे. उनके पास वायुसेना के पायलट के रूप में 3,800 घंटे से ज्यादा की उड़ान का अनुभव था.

‘ चौहान लड़ाकू विमानों के एक बेहद अनुभवी पायलट थे.एक अधिकारी ने कहा, ‘अपनी सेवा के दौरान चौहान टेस्ट पायलट स्कूल के प्रमुख जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. वह वायुसेना के एक लड़ाकू दस्ते के भी प्रमुख के रूप में सेवा दे चुके थे.’ उन्होंने बताया कि चौहान को 2010 में वायुसेना पदक दिया गया था. अधिकारी ने कहा, ‘वह एक अनुभवी पायलट थे और जगुआर, मिग-21, हंटर, एचपीटी-32, इस्कारा, किरण, एवरो-748, एएन-32 एवं बोइंग 737 सहित वायुसेना के 17 प्रकार के विमान उड़ा चुके थे.’ चौहान के पास राफेल, ग्रिपेन एवं यूरो फाइटर जैसे कई आधुनिक लड़ाकू विमान उड़ाने का भी विशिष्ट अनुभव था.

वायु सेना मेडल से सम्माणनित संजय उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले थे और स्टेशन कमांडर थे. एयर कोमोडोर रैंक आर्मी की ब्रिगेडियर रैंक के बराबर होती है.

संजय को हादसे में गंभीर चोटें आई थीं और कुछ मिनटों बाद उनकी मौत हो गई. सूत्रों की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक संजय एक एक्सीपेरीमेंटल टेस्टद पायलट थे और उन्हों ने इंडियन एयरफोर्स के लगभग हर एयरक्राफ्ट को उड़ाया था. उनके पास अकेले जगुआर को उड़ाने का 2000 घंटों का अनुभव था.

संजय चौहान की उम्र करीब 50 वर्ष थी और उन्हेंप वायु सेना मेडल से सम्माननित किया जा चुका था. 17 तरह के एयरक्राफ्ट का अनुभव एक अधिकारी की ओर से बताया गया कि वह एक बेहतर पायलट थे. उन्होंकने जगुआर, मिग-21, हंटर, एचपीटी-32, इस्काारा, किरण, एवोरो-748, एएन-32 से लेकर बोइंग 737 जैसे 17 टाइप के एयरक्राफ्ट्स भी उड़ाए थे. इतना ही नहीं उनके पास राफेल, ग्रिपेन और यूरो-फाइटर जैसे जेट्स को उड़ाने का भी अनुभव था.

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