आलोक वर्मा बने रहते तो जेल जा सकते थे कई बड़े लोग, ये हैं वो केस जिनमें बारूद था


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अगर आलोक वर्मा छुट्टी पर न भेजे जाते तो कई बड़ी हस्तियां सलाखों के पीछे हो सकती थीं. जिन सात मामलों की जांच आलोक वर्मा कर रहे थे वो कई जानी मानी हस्तियों से जुड़े हैं. ये सभी हाई प्रोफाइल मामले हैं और दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रह चुके आलोक वर्मा के रहते इन मामलों में बचना नामुमकिन था. आरोप है कि इन मामलों में जांच को दबाने के लिए आलोक वर्मा को हटाया गया.

जब आधीरात को आलोकवर्मा को छुट्टी पर भेजा गया और सुबह सुबह फ्लोर सील कर दिए गए तब उनकी टेबल पर इन सात मामलों की फाइलें थी. बताया जा रहा है कि सील कर दिए दोनों फ्लोर को हाल ही खोल भी दिया गया क्योंकि अगर फ्लोर सील हो जाते तो दस्तावेज़ जहां थे वही रह जाते. उन्हें छुआ नहीं जा सकता था.

इस बीच, गुरुवार को वर्मा के बंगले के बाहर चार संदिग्ध पकड़े गए. ये चारों काफी देर तक वर्मा के बंगले के बाहर टहलते दिखाई दिए थे. दिल्ली पुलिस ने इनकी गिरफ्तारी से इनकार किया है. बताया जा रहा है कि सीबीआई अफसर ही इनसे पूछताछ कर रहे हैं. हम आपको बताते हैं वो बड़े मामले जिनसे जुड़े दस्तावेज़ की फाइल आलोकवर्मा की टेबल पर थी…

1) राफेल डील

अखबार इंडियन एक्सप्रेस की खबर में दावा किया गया है कि अालोक वर्मा जिन मामलों को देख रहे थे, उनमें सबसे संवेदनशील केस राफेल डील से जुड़ा था. दरअसल, 4 अक्टूबर को ही वर्मा को पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण की तरफ से 132 पेज की एक शिकायत मिली थी. इसमें कहा गया था कि फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की सरकार की डील में गड़बड़ी हुई है. आरोप था कि हर एक प्लेन पर अनिल अंबानी की कंपनी को 35% कमीशन मिलने वाला है. दावा है कि आलोक वर्मा को जब हटाया गया, तब वे इस शिकायत के सत्यापन की प्रक्रिया देख रहे थे.

2) पीएमओ में पदस्थ सचिव पर आरोप

दूसरा मामला प्रधानमंत्री कार्यालय में पदस्थ के एक सचिव से जुड़ा था. कोयला खदानों के आवंटन में सचिव की भूमिका की जांच होनी थी. यह फैसला होना था कि मामले में सचिव को गवाह बनाया जाए या आरोपी.

3) फाइनेंस सेक्रेटरी पर आरोप

तीसरा मामला भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की तरफ से सीबीआई को मिली चिट्ठियों से जुड़ा था. इसमें स्वामी ने फाइनेंस और रेवेन्यू सेक्रेटरी हसमुख अढिया पर कुछ आरोप लगाए हैं.

4) मेडिकल काउंसिल केस

चौथा मामला मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में हुए भ्रष्टाचार से जुड़ा था. इसमें एक रिटायर्ड हाईकोर्ट जज के खिलाफ चार्जशीट लगभग तैयार हो चुकी थी और उस पर आलोक वर्मा को सिर्फ दस्तखत ही करने थे.

 

 

5) मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन

पांचवीं फाइल इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जस्टिस से जुड़ी थी जिन पर मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के दौरान हुए भ्रष्टाचार से जुड़े आरोप लगे हैं. जज को छुट्टी पर भेजा जा चुका है. वर्मा ने इस केस को भी जांच के लिए उपयुक्त पाया था. प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कागजात तैयार थे और उस पर वर्मा के दस्तखत होने थे.

6) नियुक्तियों में भ्रष्टाचार

छठी फाइल दिल्ली के एक बिचौलिए से जुड़ी थी. इसके पास से तीन करोड़ रुपए का कैश और एक लिस्ट मिली थी जिसमें सार्वजनिक उपक्रमों में वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति में नेताओं और बड़े अफसरों की कथित भूमिका का जिक्र था.

7) बैंक फ्रॉड

सातवां मामल स्टर्लिंग बायोटेक के 8,100 करोड़ रुपए के बैंक फ्रॉड से जुड़ा था. इसमें सीबीआई ने अपने ही नंबर-2 अफसर राकेश अस्थाना को आरोपी बनाया था.

केंद्र सरकार ने मंगलवार रात सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को जबरन छुट्‌टी पर भेज दिया. दोनों ने एक-दूसरे पर रिश्वतखोरी के आरोप लगाए थे. अंतरिम व्यवस्था के लिए ज्वाइंट डायरेक्टर एम. नागेश्वर राव को डायरेक्टर का जिम्मा सौंपा गया है. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी ने सीवीसी की सिफारिशों पर मंगलवार देर रात ये फैसले लिए. सरकार के फैसले के खिलाफ आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. वहां उन्होंने कहा कि जरूरी नहीं कि हर जांच सरकार के मुताबिक ही चले. कुछ मौकों पर जांच की दिशा सरकार की इच्छा से उलट भी जा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट में दी गई याचिका में आलोक वर्मा की दलीलें

सीबीआई चीफ आलोक वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई होनी है. याचिका में वर्मा ने दलील दी कि उन्हें हटाना डीपीएसई एक्ट की धारा 4बी का उल्लंघन है. डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल तय है. प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और सीजेआई की कमेटी ही डायरेक्टर को नियुक्त कर सकती है. वही हटा सकती है. इसलिए सरकार ने कानून से बाहर जाकर निर्णय लिया है. कोर्ट ने बार-बार कहा है कि सीबीआई को सरकार से अलग करना चाहिए. डीओपीटी का कंट्रोल एजेंसी के काम में बाधा है.

20 अफसरों के साथ गुजरात कैडर से दिल्ली आए थे अस्थाना

सीबीआई चीफ वर्मा 1979 की बैच के आईपीएस अफसर हैं. वहीं, राकेश अस्थाना 1984 आईपीएस बैच के गुजरात कैडर के अफसर हैं जो सीबीआई में नंबर टू हैं. मोदी सरकार बनने के बाद गुजरात कैडर से जो 20 अफसर दिल्ली आए, उनमें अस्थाना भी एक थे. वर्मा ने अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाने पर ऐतराज जताया था.

मोइन कुरैशी के मामले की जांच से शुरू हुआ रिश्वतखोरी विवाद

सीबीआई में अस्थाना मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले की जांच कर रहे थे. इस जांच के दौरान हैदराबाद का सतीश बाबू सना भी घेरे में आया. एजेंसी 50 लाख रुपए के ट्रांजैक्शन के मामले में उसके खिलाफ जांच कर रही थी. सना ने सीबीआई चीफ को भेजी शिकायत में कहा कि अस्थाना ने इस मामले में उसे क्लीन चिट देने के लिए 5 करोड़ रुपए मांगे थे. हालांकि, 24 अगस्त को अस्थाना ने सीवीसी को पत्र लिखकर डायरेक्टर आलोक वर्मा पर सना से दो करोड़ रुपए लेने का आरोप लगाया था.

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