राष्ट्रीय मसलों पर ये है पीएम मोदी का रिकॉर्ड, भरोसा करें या नहीं ?

पीएम मोदी ने आज टोंक में अपने राजस्थान के चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए कई अहम बाते कीं. हम यहां मोदी की इन मामलों में कथनी और करनी और उनके पुराने रिकॉर्ड की बात करेंगे लेकिन इससे पहले बताते है कि मोदी ने टोंक में क्या कहा.
‘’पिछले दिनों कहां क्या हुआ, घटना छोटी थी या बड़ी थी, कश्मीरी बच्चों के साथ हिंदुस्तान के कोने में क्या हुआ, क्या नहीं हुआ, मुद्दा ये नहीं है. इस देश में ऐसा नहीं होना चाहिए.’’ इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘’हमारी लड़ाई आतंकवाद और इंसानियत के दुश्मनों से है. हमारी लड़ाई कश्मीर के लिए है, कश्मीर के खिलाफ नहीं, कश्मीरियों के खिलाफ नहीं.’’
इसके साथ ही पीएम मोदी ने कहा, ”हिंदुस्तान के किसी भी कोने में, मेरा कश्मीर का लाल, उसकी हिफाजत करना मेरे हिंदुस्तान के हर नागरिक का काम है.”
जब मोदी ये सब बातें कह रहे थे तो देश में उनके ही मेघालय के राज्यपाल के बयान पर देश भर में चर्चा हो रही थी इन राज्यपाल महोदय ने कहा था अगले दो साल तक कश्मीर न जाएं. अमरनाथ न जाए. कश्मीर एंपोरियम से कुछ न खरीदें, सर्दियों में कश्मीर से आने वाले व्यापारियों से सामान न लें. कश्मीर की हर चीज़ का बहिस्कार करें.
अफसोस की बात ये हैं कि मोदी जी या उनकी पार्टी की तरफ से किसी ने भी उपराज्यपाल महोदय को न तो किसी ने सलाह दी न इस बयान की निंदा की. मोदी जी के प्रधानमंत्री रहते देश के सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और 11 राज्यों को बाकायदा नोटिस भेजकर कश्मीरी बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा.

गौ सेवकों पर कहा कुछ किया कुछ

आपको याद होगा कि गोरक्षा के नाम पर किस तरह मोदी समर्थक देश भर में लोगों की हत्या कर रहे थे उन्हें पीट रहे थे और तो और कई लोगों की हत्या भी की गई. लेकिन प्रधानमंत्री ने इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. उनके अपने मंत्री , उनके अपने सांसद भड़काऊ बातें करते रहे लेकिन पीएम ने कुछ नहीं किया लेकिन अब आपको बताते हैं कि इन्हीं पीएम ने अपने भाषण में कितनी महान बातें की थीं. उन्होंने कहा था-
” गौ रक्षा के नाम पर कुछ लोगों ने अपनी दुकान खोल रखी है. उन्होंने कहा कि ये दिखाने को गौ रक्षा करते हैं और इनका असली काम कुछ और होता है. उन्होंने कहा कि 70-80 प्रतिशत गौरक्षक ऐसे गोरखधंधे करते हैं कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता, इसलिए वे गौरक्षक का चोला ओढकर निकलते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कत्ल से उतनी गायें नहीं मरती, जितनी कूड़े-कचरे व प्लास्टिक खाने से मरती हैं. उन्होंने कहा कि समाज सेवा दूसरों को दबाने के लिए नहीं होती, प्रताड़ित करने के लिए नहीं होती. इसके लिए समर्पण व सेवा चाहिए. ये भाषण ओबामा स्टाइल में आयोजित टाउन हॉल कार्यक्रम के दौरान दिया गया था. खूब तालियां बजीं लेकिन इसके बाद भी पहलू खान की हत्या हुई. और बीजेपी की राजस्थान सरकार ने लीपा पोती करके सभी को छोड़ दिया.

सांप्रदायिकता खत्म हो.
15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री के तौर पर अपने लाल किले से पहले भाषण में मोदी ने सांप्रदायिकता पर हमला किया था. उन्होंने कहा था- “भाइयो-बहनो, सदियों से किसी न किसी कारणवश साम्प्रदायिक तनाव से हम गुज़र रहे हैं, देश विभाजन तक हम पहुंच गए. आज़ादी के बाद भी कभी जातिवाद का ज़हर, कभी सम्पद्रायवाद का ज़हर, ये पापाचार कब तक चलेगा? किसका भला होता है? बहुत लड़ लिया, बहुत लोगों को काट लिया, बहुत लोगों को मार दिया.

भाइयो-बहनो, एक बार पीछे मुड़कर देखिए, किसी ने कुछ नहीं पाया है. सिवाय भारत मां के अंगों पर दाग लगाने के हमने कुछ नहीं किया है और इसलिए, मैं देश के उन लोगों का आह्वान करता हूं कि जातिवाद का ज़हर हो, सम्प्रदायवाद का ज़हर हो, आतंकवाद का ज़हर हो, ऊंच-नीच का भाव हो, यह देश को आगे बढ़ाने में रुकावट है.

एक बार मन में तय करो, दस साल के लिए मोरेटोरियम तय करो, दस साल तक इन तनावों से हम मुक्त समाज की ओर जाना चाहते हैं और आप देखिए, शांति, एकता, सद्भावना, भाईचारा हमें आगे बढ़ने में कितनी ताकत देता है, एक बार देखो. मेरे देशवासियो, मेरे शब्दों पर भरोसा कीजिए, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं. अब तक किए हुए पापों को, उस रास्ते को छोड़ें, सद्भावना, भाईचारे का रास्ता अपनाएं और हम देश को आगे ले जाने का संकल्प करें. मुझे विश्वास है कि हम इसको कर सकते हैं.”
करनी कुछ कथनी कुछ
इस भाषण के बाद क्या हुआ. देश में औसत हर दिन एक सांप्रदायिक दंगा हुआ. खुद पीएम मोदी के भाषणों में सांप्रदायिकता की बातें सुनी गई. पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने तो यूपी चुनाव में कहा कि अगर रमजान में बिजली नहीं कटती तो दिवाली पर भी नहीं कटनी चाहिए. जबकि बिजली दोनों ही मौकों पर नहीं कटती
इसके अलावा मुजफ्फर नगर दंगों के दोषियों को छुड़ाने के लिए भी अमितशाह कोशिश करते नजर आए. अखलाक की दादरी में हत्या के आरोपियों को बाकायदा बीजेपी ने एनटीपीसी में नौकरी दी.
पार्टी ने उत्तर प्रदेश में छांट छांट कर उन धंधों को निशाना बनाया जो एक संप्रदाय विशेष के लोग करते हैं.
उत्तर प्रदेश में 2015 में 155 दंगे हुए तो 2016 में 162 और 2017 में 195 . हालांकि मुजफ्फरनगर दंगों वाले साल के मुकाबले 2017 में हुए दंगों की संख्या कम है.
देश भर में छोटे दंगों की संख्या काफी ज्यादा रही. बिहार दंगों में जला और तो और दिल्ली में भी दंगे हए.
———–
मिलजुल के देश को आगे ले जाने की बात
15 अगस्त 2014 के भाषण में मोदी ने कहा- “भाइयो-बहनो, मैं दिल्ली के लिए आउटसाइडर हूं. पिछले दो महीने में, एक इनसाइडर व्यू लिया, तो मैं चौंक गया! यह मंच राजनीति का नहीं हैमैंने पहले ही कहा है, मैं सभी पूर्व प्रधान मंत्रियों, पूर्व सरकारों का अभिवादन करता हूं, जिन्होंने देश को यहां तक पहुंचाया.
मैंने जब दिल्ली आ करके एक इनसाइडर व्यू देखा, तो मैंने अनुभव किया, मैं चौंक गया. ऐसा लगा जैसे एक सरकार के अंदर भी दर्जनों अलग-अलग सरकारें चल रही हैं. हरेक की जैसे अपनी-अपनी जागीरें बनी हुई हैं. मुझे बिखराव नज़र आया, मुझे टकराव नज़र आया. एक डिपार्टमेंट दूसरे डिपार्टमेंट से भिड़ रहा है और यहां तक भिड़ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खट-खटाकर एक ही सरकार के दो डिपार्टमेंट आपस में लड़ाई लड़ रहे हैं.

यह बिखराव, यह टकराव, एक ही देश के लोग! हम देश को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं? और इसलिए मैंने कोशिश प्रारम्भ की है, उन दीवारों को गिराने की, मैंने कोशिश प्रारम्भ की है कि सरकार एक असेम्बल्ड एन्टिटी नहीं, लेकिन एक ऑर्गेनिक युनिटी बने, ऑर्गेनिक एन्टिटी बने. एकरस हो सरकार – एक लक्ष्य, एक मन, एक दिशा, एक गति, एक मति – इस मुक़ाम पर हम देश को चलाने का संकल्प करें”

लेकिन मोदी सबको साथ लेकर चले क्या ?
सबको साथ लेकर चलने की बात करने वाले मोदी के साथ चलने के उदाहरण अनगिनत पड़े हैं. किसी भी मौके पर सरकारी कार्यक्रमों से भी मोदी विपक्ष पर निशाना साधते नजर आए. लगभग विपक्षी पार्टी की हर सरकार से उनका टकराव हुआ.दिल्ली सरकार पर मोदी सरकार का खुद का हमला इसका उदाहरण है.
सीबीआई के दुरुपयोंग. ब्लैकमेलिंग के ज़रिए लोगों को झुकाकर अपने इशारे पर नचाना जैसे कई आरोप सरकार पर लगातार लगते रहे. मायावती हों, मुलायम सिंह यादव हों, अरविंद केजरीवाल हों, ममता बैनर्जी हों या कोई और नेता, मोदी पर सभी को ब्लैकमेल करने के आरोप लगे.
दिल्ली में तो सरकार पर कब्जा कर लिया गया. उसकी ताकत छीन ली गई. उसके हर फैसले को बंद कर दिया गया और तो और सरकार के हर मंत्री पर कोई न कोई केस लगा.
पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए अभ ये तय करना मुश्किल है कि मोदी जी कश्मीरियों पर अपनी बात पर अमल करा भी पाएंगे या नहीं.ICHOWK पर आजतक के वरिष्ठ पत्रकार गिरिजेश वशिष्ठ का लेख

Leave a Reply