अंग्रेज़ों ने बनायी थी कुंभ में साधुओं की नहाने की व्यवस्था! जानिए तारीखें


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इलाहाबाद में कुंभ मेले का बड़ा महत्व है. इसके पहले दिन. इसी दिन पहला शाही स्नान होता है. इस स्नान का बड़ा महत्व है. कहा जाता है कि ये सीधे स्वर्ग के दरवाजे खोल देता है. नियत वक्त पर सभी अखाड़ों के साधु-संत संगम पर शाही स्नान करते हैं. ये स्नान शांति से निबटे, इसके लिए प्रशासन की सांस रुक जाती है. जब तक शाही स्नान न निपट जाए प्रशासन चैन की सांस नहीं लेता. शाही स्नान का इतिहास बेहद खून खराबे वाला है और आज अगर शांति है तो अंग्रेज़ों के कारण बनी हैं. वरना शाही स्नान को लेकर बाबाओं में खून-खच्चर होना आम बात है. क्या है ये शाही स्नान और वैराग्य ले चुके बाबाओं का इससे क्या वास्ता है, इसकी पड़ताल.

शाही स्नान की शुरुआत

सदियों से ये स्नान चला आ रहा है, जिसमें 13 अखाड़े शामिल होते हैं. ये कोई वैदिक परंपरा नहीं. माना जाता है कि इसकी शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई, तब देश पर मुगल शासकों के आक्रमण की शुरुआत हो गई थी. धर्म और परंपरा को मुगल आक्रांताओं से बचाने के लिए हिंदू शासकों ने अखाड़े के बाबाओं और खासकर नागा बाबाओं से मदद ली.

नागा साधु धीरे-धीरे आक्रामक होने लगे और धर्म को राष्ट्र से ऊपर देखने लगे. ऐसे में शासकों ने नागा बाबाओं के प्रतिनिधि मंडल के साथ बैठक कर राष्ट और धर्म के झंडे और बाबाओं और शासकों से काम का बंटवारा किया. साधु खुद को खास महसूस कर सकें, इसके लिए कुंभ स्नान का सबसे पहले लाभ उन्हें देने की व्यवस्था हुई. इसमें बाबाओं का वैभव राजाओं जैसा होता था, जिसकी वजह से इसे शाही स्नान कहा गया. इसके बाद से शाही स्नान की परंपरा चली आ रही है.

वक्त के साथ शाही स्नान को लेकर विभिन्न अखाड़ों में संघर्ष होने लगा. साधु इसे अपने सम्मान से जोड़ने लगे. उल्लेख मिलता है कि साल 1310 में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानंद वैष्णव अखाड़े के बीच खूनी संघर्ष हुआ. दोनों ओर से हथियार निकल गए और पूरी नदी ने खूनी रंग ले लिया. साल 1760 में शैव और वैष्णवों के बीच स्नान को लेकर ठन गई. ब्रिटिश इंडिया में स्नान के लिए विभिन्न अखाड़ों का एक क्रम तय हुआ जो अब तक चला आ रहा है.

शाही स्नान में क्या होता है

इसमें विभिन्न अखाड़ों से ताल्लुक रखने वाले साधु-संत सोने-चांदी की पालकियों, हाथी-घोड़े पर बैठकर स्नान के लिए पहुंचते हैं. सब अपनी-अपनी शक्ति और वैभव का प्रदर्शन करते हैं. इसे राजयोग स्नान भी कहा जाता है, जिसमें साधु और उनके अनुयायी पवित्र नदी में तय वक्त पर डुबकी लगाते हैं. माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में डुबकी लगाने से अमरता का वरदान मिल जाता है. यही वजह है कि ये कुंभ मेले का अहम हिस्सा है और सुर्खियों में रहता है. शाही स्नान के बाद ही आम लोगों को नदी में डुबकी लगाने की इजाजत होती है.

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ये स्नान तय दिन पर सुबह 4 बजे से शुरू हो जाता है. इस वक्त से पहले अखाड़ों के साध-संतों का जमावड़ा घाट पर हो जाता है. वे अपने हाथों में पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र लिए होते हैं, शरीर पर भभूत होती है और वे लगातार नारे लगाते रहते हैं. मुहूर्त में साधु न्यूनतम कपड़ों में या फिर निर्वस्त्र ही डुबकी लगाते हैं. इसके बाद ही आम जनता को स्नान की इजाजत मिलती है.

कुंभ मेले में शाही स्नान की तारीखें घोषित हो चुकी हैं, ये 8 दिन हैं-

मकर संकांति – 14 एवं 15 जनवरी 2019

पौष पूर्णिमा- 21 जनवरी 2019

पौष एकादशी स्नान- 31 जनवरी 2019

मौनी अमावस्या- 4 फरवरी 2019

बसंत पंचमी- 10 फरवरी 2019

माघी एकादशी- 16 फरवरी 2019

माघी पूर्णिमा- 19 फरवरी 2019

महाशिवरात्रि- 04 मार्च 2019

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