वामपंथ के लिए काला दिन, तानाशाही की ओर एक कदम बढ़ा चीन

नई दिल्ली : चीन के तानाशाही की तरफ एक कदम आगे बढ़ने के साथ ही  आज फिर वामपंथ के इतिहास का एक काला दिन सामने आ गया है.  चीन की संसद ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए महज दो कार्यकाल की अनिवार्यता को दो-तिहाई बहुमत से खत्म कर दिया है. इसके बाद देश के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जीवन भर शीर्ष पद पर आसीन रहने का रास्ता साफ कर दिया है. फिलहाल शी का पांच साल का दूसरा कार्यकाल चल रहा है. गौरतलब है कि पिछली अधिकतम दो कार्यकाल की अनिवार्यता वाली प्रणाली में शी शासन के 10 साल पूरे होने के बाद 2023 में सेवानिवृत्त होते.

 

हालांकि चीन में एक ही पार्टी का शासन है लेकिन पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र काफी अहम है. कम्युनिस्ट पार्टियों की कार्य पद्धति बाकी पार्टियों से अलग है. शी अगर चुने भी गए हैं तो वो हमेशा वहां रह सकें ऐसा ज़रूरी नहीं है. हालांकि नया नियम पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर भी दूरगामी असर डाल सकता है इसीलिए इसे वामपंथ के इतिहास के लिए काला दिन कहा जा रहा है.

 

पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष माओ त्से तुंग के बाद पिछले दो दशक से पार्टी के नेता दो कार्यकाल की अनिवार्यता का पालन करते रहे थे ताकि तानाशाही से बचा जा सके और एक दलीय राजनीति वाले देश में सामूहिक नेतृत्व सुनिश्चित किया जा सके. लेकिन संसद में आज संविधान संशोधन पारित होने के साथ ही यह दोनों परंपराएं समाप्त हो गयीं. चीनी संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के करीब 3,000 सांसदों में से दो-तिहाई ने देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की अधिकतम दो कार्यकाल की अनिवार्यता खत्म करने के कानून को मंजूरी दी.

 

गौरतलब है कि संसद में मतदान से पहले सत्तारूढ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष संगठन सात सदस्यीय स्थाई समिति ने इस संशोधन को आम सहमति से मंजूरी दी थी. मतदान से पहले एनपीसी के अध्यक्ष झांग देजिआंग ने अपनी कार्य रिपोर्ट में कहा था,’एनपीसी की स्थाई समिति का प्रत्येक सदस्य संविधान में संशोधन की मंजूरी देता है और उसका समर्थन करता है. माओ के बाद शी को देश का सबसे मजबूत नेता माना जाने लगा है क्योंकि वह सीपीसी और सेना दोनों के प्रमुख तथा देश के राष्ट्रपति हैं.’