20 विधायकों जैसा एक्शन हुआ तो चुनाव ले पहले गिर जाएगी बीजेपी सरकार, जानिए कैसे

नई दिल्ली : दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को चुनाव आयोग द्वारा अयोग्य करार दिए जाने की खबर से बीजेपी बेहद खुश है लेकिन दिल्ली में आम आदमी की सरकार फिर भी सेफ रहेगी लेकिन अगर चुनाव आयोग की कार्रवाई आगे बढ़ी तो बीजेपी के हाथ से दो  पूर्ण राज्यों की सरकार निकल सकती है. केजरीवाल की सरकार अल्पमत में तो नहीं आ रही लेकिन छत्तीसगढ़ के 11 संसदीय सचिवों पर भी विधायकी खतरे में पड़ गई है. अगर इन दोनों राज्यों में ऐसा हुआ तो बीजेपी की सरकार अल्पमत में आ जाएगी. छत्तीसगढ़ राज्य की कुल 90 सीटों में बीजेपी के पास 49 विधायक हैं. जबकि बहुमत के लिए उनके पास 46 विधायक होने चाहिए. इसके बाद उसेक पास बहुमत से 8 विधायक कम हो जाएंगे.

दूसरा राज्य हरियाणा है. हरियाणा में पिछले साल खट्टर सरकार ने चार बीजेपी विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था, जिसे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अमान्य घोषित कर दिया था. जाहिर बात है बिना सुविधा लिए संसदीय सचिव बने विधायक की सदस्यता जा सकती है तो सुविधा लेने वालों की क्यों नहीं. हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीट हैं. अभी उसके पास 47 विधायक हैं चार कम होते हैं तो पार्टी के सदस्यों की संख्या बहुमत के लिए ज़रूरी 46 से सीधे 43 पर आ जाएगी.

इस मामले में राज्यपाल को शिकायत करने की कवायद भी शुरू हो गई है. विधायक श्याम सिंह राणा, कमल गुप्ता, बख्शीश सिंह विर्क और सीमा त्रिखा को खट्टर सरकार ने मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त किया था.’

उधर छत्तीसगढ़ी में दिल्ली की खबर आते ही कांग्रेस समेत तमाम विरोधी दलों ने संसदीय सचिवों के खिलाफ जल्द कार्रवाई को लेकर चुनाव आयोग को पत्र भेजा है. हालांकि, संसदीय सचिवों की विधायकी ख़त्म करने को लेकर हाई कोर्ट में भी मामला विचाराधीन है, लेकिन तारीख पे तारीख मिलने के चलते मामले की सुनवाई नहीं हो पा रही है. अब चुनाव आयोग पर सीधे आरोप लगे हैं तो उसके लिए भी फैसला करने को लेकर दबाव है.

कई स्वयं सेवी संगठनों ने राज्य के 11 संसदीय सचिवों की विधायकी खत्म करने को लेकर चुनाव आयोग को बहुत समय पहले शिकायत की थी, लेकिन आयोग ने इस शिकायत पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की.

अब जब दिल्ली में आप पार्टी के विधायक चुनाव आयोग के रडार में आ गए हैं, इसलिए अंदाजा लगाया जा रहा है कि आयोग छत्तीसगढ़ में बीजेपी के विधायकों पर भी अपना फैसला सुनाएगा. मई 2015 में छत्तीसगढ़ में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें सभी 13 मंत्रियों के साथ अटैच किया था.

छत्तीसगढ़ का केस दिल्ली से ज्यादा सीरियस है. दिल्ली में तो विधायकों ने कोई सुविधा नहीं ली थी.लेकिन छत्तीसगढ़ में सभी संसदीय सचिवों को मंत्रियों की तरह सुविधाएं मुहैया कराई गई है. मसलन उन्हें सरकारी बंगला, दो पीए, पुलिस सुरक्षा, वाहन सुविधा और 11 हजार रुपए मासिक भत्ता के अलावा 73 हजार रुपए वेतन सरकारी खजाने से दिया जा रहा है. ये सभी संसदीय सचिव अपने विभाग के मंत्रियों से जुड़े काम संभालते हैं.

इनका जलवा किसी मंत्री से कम नहीं होता. राज्य में संसदीय सचिवों को सरकारी बोझ और अपव्यय के साथ-साथ इसे संविधान का उलंघन बताते हुए हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की है. हालांकि, इस पर दो तीन बार सुनवाई हुई और उसके बाद से लगातार तारीख पे तारीख मिलती जा रही है.

RTI कार्यकर्त्ता डॉ. राजेश डेगवेकर के मुताबिक यह संविधान की धारा 163-164 का उल्लंघन है. साथ ही ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का भी उल्लंघन इसलिए है, क्योंकि राज्य की बीजेपी सरकार ने मनमाने तरीके से एक ऐक्ट बनाया जिसका नाम है विधान सभा सदस्य निर्भरता निवारण संशोधन अधिनियम. इसमें इन्होंने 90 पदों को लाभ के पदों से अलग कर दिया, जो कि अपने आप में मनमानी है. उनके मुताबिक उन्होंने उस संशोधन ऐक्ट को भी चैलेंज किया है. बिलासपुर हाई कोर्ट में दायर अपनी याचिका में डॉ. डेगवेकर ने जनता के धन का दुरूपयोग बताते हुए जल्द ही फैसले की मांग की है.

ये हैं छत्तीसगढ़ के संसदीय सचिव

छत्तीसगढ़ में विधायक तोखन लाल साहू, अंबेश जांगड़े, लखन लाल देवांगन, गोवर्धन मांझी, रूपकुमारी चौधरी, शिवशंकर पैकरा, सुनीति सत्यानंद राठिया, लाभचंद बाफना, चंपा देवी पावले, मोतीराम चन्द्रवंशी और राजू सिंह क्षत्रिय को राज्य की बीजेपी सरकार ने संसदीय सचिव की कुर्सी सौपी है.

बिलासपुर हाई कोर्ट ने अगस्त 2017 में अपनी शुरुआती सुनवाई में सभी 11 संसदीय सचिवों को प्रदत्त अधिकारों पर रोक लगा दी थी. यही नहीं, उनके वेतन और भत्तों पर भी पाबन्दी लगाई गई. लेकिन कानूनी दावपेच का इस्तेमाल करते हुए राज्य की बीजेपी सरकार ने हाई कोर्ट के निर्देशों को हवा में उड़ा दिया.

उन्हें पहले की तरह सुख सुविधाएं जारी रहीं. अब जबकि दिल्ली में संसदीय सचिवों पर गाज गिरी है, उसे चुनाव आयोग की तहरीर मानते हुए कांग्रेस समेत सभी विरोधी दल एकजुट होकर राज्य के संसदीय सचिवों के खिलाफ ठीक वैसी ही कार्रवाई जल्द किए जाने की मांग कर रहे हैं.

उनके मुताबिक एक संविधान और दो विधान नहीं हो सकते, मसलन ‘आप’ पार्टी के लिए चुनाव आयोग के निर्देश कुछ और राज्य के बीजेपी विधायकों के लिए और कुछ. लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह इन दिनों ऑस्ट्रेलिया प्रवास पर हैं, लिहाजा तमाम संसदीय सचिव चुनाव आयोग के रुख के बाद अपने इलाकों से नदारद हो गए हैं.

जो भी हो बीजेपी के लिए ये मुद्दा गले की हड्डी बन रहा है क्योंकि उसके हर राज्य में लाभ के पद को लेकर कई मामले सामने आ रहे हैं. हाल ही में हरियाणा में 4 विधायक इस मामले में फंसे .