हिंदुओं के कितने हितैषी हैं ये हित रक्षक, जानकारी भरा पत्रकार का वायरल लेख


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पत्रकार गिरिजेश वशिष्ठ का ये वायरल लेख फेसबुक पर प्रकाशित हुआ है. ज़रूर पढ़ें. हमेशा की तरह नया नज़रिया है और आंखें खोल देने वाली जानकारियां हैं…

ये तस्वीरें हमारे आपके जैसे ही किसी इनसान की है. इन्हें ऊपरवाले ने वैसे ही धरती पर भेजा है जैसे हमें भेजा था. लेकिन इनके पास खाना नहीं है. इनके पास कपड़े नहीं हैं इनके पास मकान नहीं है. वैसे तो गरीब का कोई मजहब या धर्म नहीं होता लेकिन फिर भी ये हिंदू हैं और कल की दिवाली इनकी इसी तरह फटेहाल, भूखे पेट और खुले आसमान के नीचे बीती है.

उस दिन जब अयोध्या में 126 करोड़ रुपये दिए की बत्तियों में धुंआ कर दिए गए, ये हिंदू एक कटोरी भात या एक रोटी के लिए तरस रहे थे. कई बच्चे मीडिया की नज़र से दूर दम भी तोड़ रहे होंगे झारखंड में पिछले दिनों हुई मौत की तरह.

जब में ये लिख रहा हूं तो कुछ लोग तिलमिला रहे होंगे, कह रहे होंगे कि 60 साल में सरकार ने कुछ नहीं किया. अब गरीबी का ज़िक्र क्यों हो रहा है. कुछ लोग ये भी कहेंगे कि त्यौहार के वक्त गरीबी भुखमरी की बातें करके मनहूसियत क्यों फैलाने की कोशिश होती है. जाहिर बात है कि आपकी ये बातें तार्किक लगती है. लेकिन वो क्या कुतर्क होता है जब आप कहते हैं कि सरकार पर सब कुछ कैसे छोड़ा जा सकता है. सरकार क्या क्या करेगी. नागरिकों का भी तो कोई फर्ज होता है. मैं आपके उस तर्क को मानते हुए कुछ जानकारियां देना चाहता हूं.

भारत में हिंदू कोई म्यामांर के रोहिंग्या नहीं है जो अपने लोगों के लिए कुछ करने की हैसियत न रखते हों. उनके हतैषी होने का दावा करने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास अकूत ताकत है. उसकी देशभर में 57 हज़ार से ज्यादा शाखाएं हैं. उसके स्वयंसेवकों की संख्या भी साठ सत्तर लाख से ज्यादा है. जिस धर्म के लोगों के पास इतनी ताकत हो और जो संगठन कहता हो कि वो सिर्फ समाजसेवा के लिए बना है और सिर्फ समाज सेवा ही करता है. जो संगठन हिंदुओं के हितों का हितैषी होने का दावा करता हो उसके रहते हिंदुओं की ये दशा हो तो क्या समझ जाए. इस आंखों देखे सच को सही माना जाए या इस दावे को.

ऐसा नहीं है कि हिंदुओं के पास आर्थिक ताकत नहीं है. वो तरह तरह की भारी भारी मूर्तियां बना रहे हैं. ऐसी मूर्तियां जिनके सामने स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी पानी भरता हो. हिंदुओं के पास इतनी ताकत है कि वो एक रात की दिवाली मनाने पर 25 हज़ार करोड़ रुपये खर्च कर देते हैं. एक एक रोटी को तरस रहे इन हिंदुओं के मंदिरों में देश का कर्ज 12 बार उतार सकने जितनी दौलत है. अकेले पद्मनाभस्वामी मंदिर में ही एक लाख करोड़ रुपये की दौलत है. तिरुपति और शिरडी के साईंबाबा जैसे कई बड़े मंदिर भी इतनी ही हैसियत रखते हैं.

ये हिंदुओं की ही ताकत है कि भारत में सबसे ज्यादा कमाई किसी उद्योगपति की नहीं है बल्कि मंदिरों की है. मैं हिंदुओं की जिस ताकत की बात तर रहा हूं वो उनकी सार्वजनिक संपत्तियों और संगठनों की ताकत है. हिंदओं की निजी दौलत और हिंदु उद्योगपतियों की शक्तियों की बात यहां जानबूझकर नहीं की जा रही. यहां बात सिर्फ उन संगठनों, संस्थानों, संस्थाओं और बीजेपी जैसे सबसे ज्यादा दौलतमंद राजनीतिक दलों की की जा रही है. जो हिंदुओं की ज़िंदगी बदल सकते हैं.लेकिन इनके होने के बावजूद देश में तीस करोड़ हिंदू ऐसे हैं जिनके पास खाने को रोटी नहीं है.

अब आते हैं इन रईस हिंदू हित रक्षकों की भूमिका पर. हिंदुओं के ये हितैषी , हिंदुओं की दौलत पर सिर्फ हिंदओं के साधन सम्पन्न अमीरों और ऊंची जाति के अभिजात्य का हक समझते हैं. जो पैसा खर्च किया जाता है वो हिंदुओं की न तो बेहतरी पर खर्च होता है न उनके हितों पर. सारा खर्च होता है सिर्फ दिखावे और प्रचार प्रसार पर. बड़ी बड़ी दीप मालिकाएं होती हैं, रैलियां होती हैं, मूर्तियां बनती हैं. सम्मेलन होते हैं. और तरह तरह के चमकीले आयोजन होते हैं.

सरल भाषा में समझें तो सारा ज़ोर मार्केटिंग पर होता है. ये दिखाने पर होता है कि ये सब हिंदुओं के कितने बड़े हितैषी है. पूरा पैसा दिखावों पर खर्च होता है. दिखावे से फिर दौलत बनती है और उसे दिखावे पर खर्च कर दिया जाता है. हिंदुओं को न तो कुछ मिलता है. न उनका कोई हित होता है. उन्हें अगर मिलता है तो खतरे में होने का झूठा एहसास और उस एहसास की मार्केटिंग करके थोड़े संसाधन और बन जाते हैं.

इस दिवाली पर ये सोचने की ज़रूरत है कि तस्वीर में दिख रहे लोग क्या सचमुच हिंदू हैं? क्या उनको हिंदू हित रक्षक हिंदू मानते हैं? क्या हिंदुओं की ताकत और दौलत सचमुच हिंदुओं के लिए है या फिर उसपर कुछ खास लोगों का कब्जा है ? ये तेज़वान चेहरे वाले समृद्ध अभिजात्य क्या बहुमत हिंदुओं के हितों का सचमुच खयाल रखते हैं या उन्हें इस्तेमाल की चीज़ मानते है. उस गंदे कपड़े की तरह जिसे रगड़कर जूता चमका लिया जाता है, शान बढ़ा ली जाती है और फिर उसे ऐसी जगह फेंक दिया जाता है जहां किसी की नज़र न पड़े.