सरकार की असफलताओं को स्वीकारने लगी है बीजेपी, पढ़िए इस बड़े नेता ने क्या कहा ?

नई दिल्ली :  अभी मोदी सरकार के पांच साल पूरे होने हैं लेकिन धीरे धीरे पार्टी अपनी असफलताओं को तरह तरह के तर्कों के साथ मानने लगी है. आज इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में गए नितिन गडकरी ने माना कि सरकार वो नहीं कर सकी जो वो करना चाहती थी हालांकि नफासत के साथ उन्होंने मुलम्मा चढ़ाकर ये बात कही..

अच्छे दिन का जुमला

नितिन गडकरी ने कहा- ‘अच्छे दिन वास्तव में कभी नहीं होते, यह मानने पर होते हैं, क्योंकि हर व्यक्ति अपने हालात से असंतुष्ट रहता है.’ उन्होंने कहा मानो तो अच्छे दिन हैं न मानों तो कभी अच्छे दिन नहीं होंगे. उन्होंने कहाकि हर आदमी कुछ बेहतर चाहता है ऐसे में अच्छे दिन कभी आ ही नहीं सकते. गडकरी के बयान को अगर समझा जाए अच्छे दिन की बात एक जुमला ही साबित हुई है. एक जुमला जो वो देने की बात कह रहा था जो कभी होता ही नहीं है. यानी बीजेपी ने एक ऐसी बात का वादा करके सत्ता हथिया ली जो हो ही नहीं सकती.

याद कीजिए ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’. 2014 की चुनाव रैलियों में नरेंद्र मोदी और उन्हीं की तर्ज पर बीजेपी के दूसरे नेता बार बार जिक्र करते रहे. ज्यादातर रैलियों में तब नेता मंच से बोलते – ‘अच्छे दिन.’, फिर भीड़ से आवाज आती – ‘आने वाले हैं’. ‘अच्छे दिन.’ के साथ ही

काले धन का जुमला

मोदी खुद अपनी रैलियों में भ्रष्टाचार और काले धन का जिक्र करते और ’15 लाख रुपये’ लोगों के अकाउंट में आने की बात करते. बाद में जब 15 लाख की बात पर विपक्ष को घेरने लगा तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उसे जुमला करार दिया. कहा 15 लाख की बात तो हमने जुमले के तौर पर कही थी

गडकरी का गंभीर होकर ये कहना कि ‘अच्छे दिन वास्तव में कभी नहीं होते, संदेह जरूर पैदा करता है. क्या ये सोनिया गांधी के बयान के बाद बीजेपी की ओर से काउंटर स्ट्रैटेजी होने वाला है या फिर वास्तव में गडकरी की बातों को जस का तस समझ लिया जाना चाहिये. मान लेना चाहिये कि वास्तव में अच्छे दिन कुछ नहीं होते.

असफलता की बात ऐसे भी मानी

गडकरी ने एक और बात कही जिससे लगता है कि सरकार को कुछ न कर पाने का एहसास है. उन्होंने कहा कि, “सभी अपेक्षाएं 5 साल में पूरी हों ये संभव भी नहीं है. बीजेपी एक बार 2019 में फिर चुन कर आएगी.”

इसका मतलब साफ है कि बीजेपी ने पांच साल में वो नहीं किया जिसकी देख अपेक्षा करता है. पार्टी अब समझा रही है कि, पांच साल और दे दो , हो जाएगा.

तमाम प्रसंगों से होते हुए बात घूमते फिरते उस बहस पर पहुंची जिसमें चर्चा हो रही है कि बीजेपी की कम सीटें आने की स्थिति में मोदी नहीं बल्कि कोई और भी प्रधानमंत्री बन सकता है. इस मुद्दे पर हाल में राहुल गांधी के जिक्र के साथ एक रिपोर्ट भी आयी थी और एक वरिष्ठ पत्रकार के ट्वीट करने के बाद उस पर रिपोर्टर की तरफ से सफाई भी पेश की गयी थी.

भावनाओं पर पूरी तरह काबू पाते हुए गडकरी ने जवाब दिया, “मैं सपने नहीं देखता. मेरी औकात और हैसियत से मुझे ज्यादा मिला है. मोदी ही देश के प्रधानमंत्री होंगे.”

वैसे प्रधानमंत्री पद के सवाल के मुकाबले गडकरी ‘अच्छे दिन.’ वाले सवाल पर ज्यादा सहज दिखे. सियासत में कहा कुछ और जाता है और उसके मायने और होते हैं. फिर तो उस दिन का भी इंतजार शुरू कर देना चाहिये जब किसी सवाल के जवाब में बीजेपी की ओर से कोई साफ तौर पर कह देगा – ‘अच्छे दिन.’ भी एक चुनावी जुमला ही था. ठीक वैसे ही जैसे सभी के खाते में काला धन के ₹15 लाख वाली बात. है कि नहीं?