कोरोना में सभी मालिकों ने कर्मचारियों को नहीं लूटा, कुछ ऐसे भी थे


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इन्दौर के सेंट रेफियल्स स्कूल ने अपने विद्यार्थियों की एक तिमाही की फीस माफ कर दी है. इस विद्यालय में  4000 से भी अधिक विद्यार्थी हैं. इस फीस माफ़ी के कारण संस्था पर करीब 6 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आ गया.

लेखक प्रकाश हिंदुस्तानी भारत के जाने माने पत्रकार हैं देश के शुरुआती इन्टरनेट पत्रकारों में से एक हिंदुस्तानी की कलम जन सरोकारों और प्रेरक विषयों पर पूरी धार के साथ सक्रिय रहती है.

कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम के लिए कई कंपनियों ने अपने स्टाफ को प्रेरित किया. कई कंपनियां तो इसके लिए अपने कर्मचारियों को तरह-तरह के प्रोत्साहन अब भी दे रही हैं. घर से काम करने वाले कर्मचारियों को अतिरिक्त भत्ता दिया जा रहा है.

एक कंपनी ने तो अपने कर्मचारियों को फर्नीचर खरीदने, बिजली तथा इंटरनेट का बिल चुकाने और जलपान आदि के लिए अलग से भत्ते भी मंजूर किये हैं. पूरी तनख्वाह भी दी जा रही है. कंपनी के प्रबंधन को लगता है कि इससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ेगी. वर्क फ्रॉम होम से कंपनी के खर्चों में काफी कमी भी आई है क्योंकि कर्मचारियों के ट्रांसपोर्टेशन,  कैंटीन का खर्च और अन्य सुरक्षा संबंधी खर्चों में कमी आ गई है.

इसके विपरीत कुछ ऐसी नॉन प्रोफेशनल कंपनियां हैं जिन्होंने कोरोना काल को कर्मचारियों के शोषण का हथियार बना लिया है. कुछ कंपनियों ने तो कर्मचारियों की तनख्वाह आधी कर दी और कुछ ने तो पांच- छह महीने की तनख्वाह ही नहीं दी है. कुछ ऐसे दुर्भाग्यशाली भी हैं जो कंपनी का कार्य करते हुए कोरोना के शिकार हुए और मृत्यु को प्राप्त हुए. उन कर्मचारियों के लिए उनकी कंपनी की ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए. मालिकों पर भी सरकार का शिकंजा होना चाहिए.

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी का फेसबुक पोस्ट

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