2जी मामले में बीजेपी या कांग्रेस का कोई दोष नहीं. पढ़िेए विचारोत्तेजक लेख


Deprecated: Creation of dynamic property Maghoot_Theme::$loop_meta_displayed is deprecated in /var/www/vhosts/knockingnews.com/httpdocs/wp-content/themes/magazine-hoot/template-parts/loop-meta.php on line 108

नई दिल्ली: वरिष्ठ पत्रकार गिरिजेश का एक और लेख सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है. ये लेख कहता है की बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही 2 जी मामले में दोष देना ठीक नहीं . मामले की जड़ में कुछ और है और वो है भारत की व्यवस्था की बड़ी कमी. लेख रोचक है इसीलिए पढ़ा भी जा रहा है….

2 जी मामले में कांग्रेस को जो नुकसान हुआ वो सबके सामन हैं. कोर्ट की टिप्पणियां भी सब जानते हैं. चूंकि राजनीतिक फायदा इसी में है इसलिए कांग्रेस भी बीजेपी को ही निशाना बनाने में लगी है. लेकिन मामला सिर्फ राजनीतिक नहीं है . खाली बीजेपी को दोष देना भी तर्क संगत नहीं है. विपक्ष के हाथ में जब भी कोई ऐसी जानकारी लगेगी वो शोर करेगा और जाहिर बात है जांच कोई पार्टी खुद तो करेगी नहीं. फिर सवाल उठता है कि दोष किसका है. खोट कहां है. कुछ लोग सीएजी विनोद राय को निशाने पर ले रहे हैं. वो एक हद तक सही भी हो सकते हैं लेकिन ये भी अधूरा सत्य है.

ये सब मानते हैं कि संविधान और न्याय की अवधारणा के नज़रिए से देखा जाए तो तब तक किसी को दोषी नहीं कहा जा सकता जब तक वो साबित न हो जाए फिर टूजी या कोई भी दूसरा मामला क्यों न हो सज़ा तो मिल जी जाती है. कोर्ट की सज़ा तो काफी कम होती है लेकिन मीडिया ट्रायल और उसके बाद विपक्षी हमले सिर्फ आरोप लगने भर से अधिकतम नुकसान पहुंचा ही देते हैं.

हम सबके सामने सिर्फ 2जी घोटाले का ही उदाहरण नहीं है. बोफोर्स भी है और दूसरे कई मामले भी .गुजरात और अमितशाह का जिक्र नहीं कर रहा क्योंकि ये मामला मेरे इस लेख के विषय से जुडा नहीं है.
ऐसे पचासों मामले हैं कि सीएजी कोई ऑब्जेक्शन लगाता है और उस एक ऑब्जेक्शन को अंतिम सत्य मानकर खेल शुरू हो जाता है. अधिकतर मामलों में ये पाया गया है कि सीएजी की रिपोर्ट अधकचरी होती है. उसमें सिर्फ अकाऊंट का पहलू ही होता है या फिर कई बार सीएजी उन मामलों में भी टिप्पणी कर देते हैं जो उनकी परिधि में आते ही नहीं.

अनेकों मामलों में सीएजी की टिप्पणियों को सरकार ने रद्दी की टोकरी में डाला है क्योंकि वो एक तरफ और एक पहलू को दिमाग में रखकर की गई होती हैं.
लेकिन जब हम देखते है कि सीएजी की टिप्पणियां अर्थ का अनर्थ करती हैं तो कई समाधान दिमाग में आते हैं. एक समाधान है सीएजी को अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करने से रोक देना. सीएजी की भूमिका रिपोर्ट सरकार को देने तक ही हो.

किसी ज़माने में जांच आयोग भी अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक कर दिया करते थे. इससे सरकार को फजीहत का सामना करना पड़ता था. राजीव गांधी की सरकार कानून लेकर आई कि जांच आयोग अपनी संसुस्ति सरकार के सामने पेश करें. वो भी गोपनीय ढंग से. उसे सार्वजनिक करना है या नही ये सरकार का अधिकार होगा. उस पर अमल करने या न करने का अधिकार पहले ही सरकार के पास ही था. इससे खबरों में बने रहने की जांच आयोगों की बीमारी का इलाज हो गया .

लेकिन सीएजी का मामला अलग है. ये एक संवैधानिक संस्था है. सीएजी की स्वतंत्रता को कम करने का मतलब है सरकार की ताकत को बढ़ाना. कांग्रेस की नीतियों और उसके बाद वर्तमान सरकार ने लगातार सरकार की शक्तियां बढ़ाई हैं. इससे संवैधानिक व्यवस्था में असंतुलन बढ़ा है. इसलिए ऐसा कदम उठाना भी घातक होगा. देश को तानाशाही की तरफ ले जाने वाला होगा.

जाहिर बात है ऐसे मामलों में सीएजी की जवाबदेही ज़रूर होनी चाहिए. चूकि सीएजी सिर्फ अनुशंशात्मक भूमिका निभाती है इसलिए उसके फैसले अंतिम नहीं हो सकते. अंतिम फैसला देश की संसद का ही होना चाहिए. ऐसे में सबसे बड़ा समाधान दिखाई देता है सार्वजनिक रूप से बयान देने और टिप्पणी करने से सीएजी को रोकना. ये तो ठीक नहीं है कि सीएजी अपनी रिपोर्ट गोपनीय ढंग से दे लेकिन ये भी ठीक नहीं है कि वो फैसला लेने के सरकार और संसद के अंतिम अधिकार में अतिक्रमण करे और पहले ही नतीजे निकालकर बदनामी करने लगे.
मैं पिछले चार दिनों से इसी उधेड़बुन में हूं कि आखिर इसका रास्ता क्या निकाला जाए. मामला पेचीदा है. जानकार और संविधान की समझ रखने वालें मित्र संवाद मे शामिल होकर मेरा मार्गदर्शन करें.