2000 साल पुराने हैं फैल्प्स के कंधों के ये गोल धब्बे !

ओलंपिक खेल हों और मौजूदा दौर के सबसे महान तैराक अमेरिका के माइकल फेल्प्स की चर्चा न हो, ऐसा भला कहां हो सकता है. दो साल पहले शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए जब उन पर छह महीने का प्रतिबंध लगा तो कहा गया कि इस स्टार एथलीट के दिन अब लद जाएंगे. लेकिन उन्होंने सबको गलत ठहराया. पानी के बीच उनके जलवे एक बार फिर देखने लायक हैं. लेकिन फेल्प्स के अलावा एक और बात की चर्चा जो इस अलंपिक में सबसे ज्यादा हो रही है- वो है उनके शरीर पर गहरे लाल रंग के स्पॉट.

फेल्प्स ही नहीं उनके हमवतन और जिमनास्ट एलेक्स नैडर और बेलारूस के तैराक पावेल सैंकोविच के शरीर पर भी ऐसे ही दाग हैं. सवाल है ये आखिर हैं क्या? किसी प्रकार की बीमारी…कोई एलर्जी या कुछ और!

फेल्प्स के शरीर पर धब्बों का राज क्या है…

 

दरअसल, ये एक प्रकार के थेरेपी है. आम भाषा में इसे कपिंग थेरेपी कहा जाता है जो एशियाई देशों और खासकर चीन में खासा लोकप्रिय है. माना जाता है कि इसकी शुरुआत करीब 2000 साल पहले चीन में हुई थी. कपिंग थेरेपी के तहत शीशे के एक कप किसी जलती हुई चीज (मोमबत्ती या कुछ और) को डालकर शरीर पर उल्टा रख दिया जाता है. कप में ऑक्सिजन की कमी होने के साथ ही लौ बुझने लगती है. और फिर एक वैक्यूम बन जाता है.

वैक्यूम होने और हवा का दूसरा कोई मार्ग न होने से एक स्किन में एक खिंचाव पैदा होने लगता है. इसके बाद स्किन खींच कर शीशे के कप से चिपक जाती है. एथलीट्स के मुताबिक ये तरीका दर्द मिटाने और लगातार खेलने से पैदा हुए तनाव को कम करने में बेहद काम आता है.

कपिंग को लेकर जानकार क्या कहते हैं…

कुछ शोधों में बताया गया है कि कपिंग कैंसर के दर्द या कमर के दर्द में भी बेहद कारगर है. हालांकि ये दावे हैं लेकिन अभी किसी खास नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है. कपिंग के भी दो तरीके हैं. एक वेट कपिंग (Wet cupping), जिसमें स्किन को थोड़ा काटा जाता है. इस कारण थेरेपी के दौरान खून खाली शीशी में भरता चला जाता है.

वेट कपिंग, जिसमें खून को शरीर से निकाला जाता है..

वैसे, माना जाता है कि ज्यादातर लोग या एथलीट ड्राई कपिंग को तरजीह देते हैं. क्या ज्यादा कपिंग थेरेपी लेने से शरीर पर कोई बुरा असर भी पड़ता है? इसे लेकर स्थिति बहुत ठोस जानकारी चिकित्सा क्षेत्र में मौजूद नहीं है. चिकित्सा विज्ञान में इसके भी पुख्ता प्रमाण नहीं है कि इससे कितना फायदा होता है. वैसे, आम धारणा यही है कि ये सुरक्षित है और इसे लेने वाले भी इसे फायदेमंद बताते हैं.