“अमित शाह की जांच कर रहे सीबीआई जज की संदिग्ध मौत नहीं हत्या है”- परिवार के गंभीर सवाल


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नई दिल्लीः अमित शाह के खिलाफ चल रहे सोहराबुद्दीन केस में सुनवाई कर रहे जज की रहस्यमय मौत पर अब परिवार ने चुप्पी तोड़ी है.  जज लोया के परिवार ने अब इस समूचे घटनाक्रम पर गंभीर सवाल उठाए हैं. परिवार का कहना है कि  जज की मौत के पीछे गहरी साज़िश है. उनके कपड़ों पर खून के छींटे थे, लेकिन गुनाहों के ये दाग हमेशा के लिए मिटा दिए गए और पूरे परिवार को अंधेरे में रखा गया.

परिवार का कहना है-संदेहास्पद परिस्थितियों में जस्टिस लोया का शव नागपुर के सरकारी गेस्टहाउस में मिला था. इस मामले को तत्कालीन भाजपा सरकार ने हार्टफेलियर का रूप दिया. लेकिन कई अनसुलझे सवाल इस मौत पर आज भी जवाब मांग रहे हैं. जस्टिस लोया सुनवाई के निर्णायक मोड़ पर थे.

 

पहले बताते हैं कि जज के परिवार ने कौन से अहम सात सवाल उठाए हैं.

1-जस्टिस लोया की मौत कब हुई, इस पर अफसर से लेकर डॉक्टर अब तक खामोश क्यों हैं. तमाम छानबीन के बाद भी अब तक मौत की टाइमिंग का खुलासा क्यों नहीं हुआ

2-48 वर्षीय जस्टिस लोया की हार्ट अटैक से जुड़ी कोई भी मेडिकल हिस्ट्री नहीं थी, फिर मौत का हार्टअटैक से कनेक्शन कैसे

3- उन्हें वीआइपी गेस्ट हाउस से सुबह के वक्त आटोरिक्शा से अस्पताल क्यों ले जाया गया 4-हार्टअटैक होने पर परिवार को तत्काल क्यों नहीं सूचना दी गई. हार्टअटैक से नेचुरल डेथ के इस मामले में अगर पोस्टमार्टम जरूरी था तो फिर परिवार से क्यों नहीं पूछा गया.

 

5-पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के हर पेज पर एक रहस्मय शख्स के दस्तख्वत हैं, ये दस्तख्वत जस्टिस लोया के कथित ममेरे भाई का बताया गया है. परिवार का कहना है-संंबंधित हस्ताक्षर वाला  जस्टिस का कोई ममेरा भाई नहीं है

6-अगर इस रहस्यमय मौत के पीछे कोई साजिश नहीं थी तो फिर मोबाइल के सारे डेटा मिटाकर उनके परिवार को ‘डिलीटेड डेटा’ वाला फोन क्यों दिया गया

7-अगर मौत हार्टअटैक से हुई फिर कपड़ों पर खून के छींटे कैसे लगे.

अब देखें हत्या और अमित शाह जु़ड़ा घटनाक्रम

  • 26 मई 2014  को दिल्ली में मोदी सरकार स्थापित हो चुकी थी और चार महीने बाद महाराष्ट्र में भी बीजेपी के हाथ सत्ता आ चुकी थी. पूरे देश में जीत का शोर था.  लेकिन मुंबई की सीबीआई अदालत में सोहराबुद्दीन हत्याकांड अमित शाह के सिर पर तलवार लटकी थी.
  • महीने भर के अंदर ही यानी 30 नवंबर 2014 को मामले की सुनवाई  कर रहे जज की संदेहास्पद मौत हो जाती है. जज का नाम था जयगोपाल हरिकृष्ण लोया.
  • मामला दब जाता है. जज लोया की मौत को सरकार से लेकर मीडिया सब चुप बैठ जाते हैं.
  • इसके 30 दिन बाद यानी 30 दिसंबर 2014 को जज लोया की जगह दूसरे जज एमबी गोसावी ने अमित शाह को सोहराबुद्दीन हत्याकांड के इस चर्चित कांड से बरी कर दिया.

संघ कार्यकर्ता की भूमिका पर सवाल

जज का परिवार इस पूरे मामले में एक संघ कार्यकर्ता की भूमिका को संदेहास्पद मानता है. इसी संघ कार्यकर्ता ने सबसे पहले परिवार को हादसे की जानकारी दी. इसी कार्यकर्ता ने बाद में डिलीट किए डेटा वाला जज का मोबाइल भी परिवार को सौंपा.

ये सवाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नींद उड़ाने के लिए भले काफी हों, मगर इससे बड़ा सवाल पूरी व्यवस्था की नींद उड़ाने वाला है. सवाल यह है-मौत के 30 दिन बाद नए जज ने अमित शाह को इस सनसनीखेज मामले से बरी कैसे कर दिया. यही नहीं जांच एजेंसी सीबीआई ने अमित शाह के केस में डिस्चार्ज होने के बाद चुप्पी क्यों साध ली. केस की अपील उच्च न्यायालय में क्यों नहीं की.

अंग्रेजी पत्रिका कारवां से बात करते हुए जस्टिस लोया की बहन अनुराधा, भांजी नुपूर और पिता हरकिशन का कहना है- यकीन नहीं होता कि जज बृजगोपाल की हृदयगति रुक जाने से मौत हुई. परिवार का कहना है-30 नवंबर 2014 को जस्टिस लोया साथी जज स्वप्ना जोशी की बेटी की शादी में शरीक होने नागपुर आए थे. उनके रहने का इंतजाम वीआइपी गेस्ट हाउस में हुआ था. अगले दिन परिवार को बताया गया जस्टिस लोया की हार्टअटैक से मौत हो गई.

5 Comments

  1. It’s quite right what the allegation allegated on bjp’s president. It’s their habit to ommit the proofs either in Godra kand, Ishrat murder, Sohrabs encounter or the VYAPAM’S scam . All the linked vitals are made out of the way. And proffessor

  2. R S S ka hath hay paka

  3. BJP bhagao Des bachao.amitsah kasurvar hai

  4. विजेपी को देश से भगा देना चाहिए आज जज को मार डाला कल किसी और जज को मार देगा इस भाजपा को देश से भगा देना चाहिए

  5. Amit Shah is criminal man

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