रघुराम राजन का नाम नोबल पुरस्कार के संभावितों की सूची में

नई दिल्ली : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन को इस साल अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार मिल सकता है. ये कहना है एक एनालिटिक्स कंपनी का. जिसने अर्थशास्त्र के नोबल पुरस्कार के लिए संभावितों की सूची जारी की है, इस फेहरिस्त में राजन का भी नाम है.
ये Clarivate Analytics फर्म उन लोगों की सूची जारी करती है, जिनके पास किसी विशेष क्षेत्र में योग्यता होती है और पहले भी इन्हें अपने रिसर्च के लिए पुरस्कार मिल चुके होते हैं. सोमवार को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में अर्थशास्त्र के नोबल पुरस्कार का ऐलान किया जाएगा.
इस सूची में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में बेहतर काम कर चुके 6 लोगों के संभावित नाम हैं. इनके द्वारा की गई रिसर्च नोबल पुरस्कारों के मापदंड के मुताबिक पाई गई है. वहीं उपयोगिता के पैमाने पर भी इनकी रिसर्च खरी उतरी है.

Clarivate Analytics फर्म ने इसकी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी साझा की है. पिछले 15 सालों में जिन संभावित लोगों का नाम इस फर्म ने बढ़ाया है. उसमें से अबतक 45 लोगों को नोबल पुरस्कार मिल चुका है. वहीं 9 लोगों को तो उसी साल मिला, जब इस वेबसाइट ने उनके नाम का जिक्र किया.
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गर्वनर राजन फिलहाल शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में फायनेंस के प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रहे हैं.
वहीं 18 लोगों को Clarivate Analytics फर्म द्वारा नाम सुझाने के दो साल के भीतर ही उन्हें ये पुरस्कार मिला.

बतौर आरबीआई गवर्नर राजन का तीन साल का कार्यकाल चार सितंबर 2016 को पूरा हुआ था. आरबीआई गवर्नर के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा करने के ठीक एक साल बाद ही राजन ने एक किताब लिखी थी. जिसमें उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था के उस दौर से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभव साझा किए थे.
नोटबंदी का किया था विरोध
अपनी किताब आई डू व्हाट आई डू में उन्होंने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले पर भी खुलकर अपनी राय लिखी थी. उन्होंने लिखा था कि सरकार का ये फैसला हो सकता है कि लंबे वक्त में कालाधन रोकने में काम कर जाए, मगर शुरुआती तौर पर तो इस फैसले का देश की अर्थव्यवस्था पर भार पड़ा है.

राजन ने बताया कि सरकार ने फरवरी 2016 में नोटबंदी को लेकर मुझसे राय ली थी. उस वक्त भी मैंने कहा था कि कालेधन की रोकथाम के लिए कई दूसरे उपाय अपनाए जा सकते थे, नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा है.
आपकों बता दें केंद्र की मोदी सरकार ने आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी का फैसला लिया था. इसके बाद पांच सौ और हजार के पुराने करेंसी नोट बंद हो गए थे.
रघुराम राजन ने साल 2008 में आई मंदी को लेकर पहले ही संकेत दे दिए थे. उस वक्त उन्होंने कहा था कि अमेरिका में हाउसिंग मार्केट में संकट आने का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. आगे चलकर पुरी दुनिया ने मंदी की मार झेली.

2011 में भी राजन ने दुनिया की अर्थव्यवस्था गड़बड़ाने का जिक्र अपनी किताब ‘फॉल्ट लाइंस’ में किया था. उन्हें 2013 में ब्रिटिश मैगजीन ने रुपये के अवमूल्यन को लेकर उठाए गए कदम के लिए पुरस्कार दिया था. राजन की कोशिशों के बाद देश में विदेशी निवेश को नई रफ्तार मिली थी.
राजन दुनिया के बड़े बिजनेस स्कूल में बतौर विजीटिंग फैकल्टी पढ़ा चुके हैं. इसमें कैलोग स्कूल ऑफ मैनजमेंट शामिल है.