सवर्ण गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण का एलान, जानिए क्या चाहती हैं अन्य पार्टियां


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राफेल पर बुरी तरह घिरी हुई मोदी सरकार ने अब आरक्षण का कवर फायर लिया है. सरकार ने गरीब सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण देने का एलान किय है. सरकार का फैसला है कि सवर्ण गरीबों को नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण दे दिया जाए. जाहिर बात है राफेल पर घोटाले के आरोपों से घिरी सरकार को आरक्षण के ज़रिए राहत मिल सकती है. इस मामले पर हमेशा से पार्टियों की अलग लग राय रही है. आपको बताते हैं कि केन्द्रीय पार्टियों की राय क्या है.

इस रिजर्वेशन से जाट, गूजर, राजपूत, पटेल, पाटीदार समेत कई जातियों को शांत करने में सरकार को मदद मिलेगी.

सवर्णों के समर्थन में कुशवाहा और अखिलेश भी

न्यायपालिका में आरक्षण को लेकर राष्ट्रव्यापी ‘हल्ला बोल, न्यायालय का दरवारा खोल’ अभियान चलाने वाले केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने हाल ही में एक बयान दिया. लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की ओबीसी राजनीति में सेंध लगाने वाले कुशवाहा का यह बयान अप्रत्याशित तो नहीं, लेकिन नया जरुर है. उनका कहना है कि सवर्णों को भी 15 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए. ऐसा कहने वाले वे अकेले नहीं हैं. हाल ही में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी सवर्णों को आरक्षण देने की बात कही.

मायावती को भी नहीं सवर्णों  के आरक्षण से ऐतराज

बहुजन की राजनीति के बदले अब सर्वजन की राजनीति कर रहीं बसपा प्रमुख मायावती ने कहा है कि उनकी पार्टी सर्वसमाज में से अपरकास्ट समाज व मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के गरीबों को भी आर्थिक आधार पर अलग से आरक्षण देने के लिए संविधान संशोधन के पक्ष रही है. सनद रहे कि मायावती ने उपरोक्त बयान तब दिया जब संसद ने एससी-एसटी एक्ट संशोधन विधेयक 2018 को ध्वनिमत से पारित कर दिया था. संवाददाता सम्मेलन के दौरान एक पत्रकार ने उनसे जब सवर्ण आरक्षण के बारे में उनसे सवाल पूछा तब उन्होंने कहा कि बसपा कई बार संसद व संसद के बाहर जोरदार मांग कर चुकी है. यही नहीं यूपी में मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी उन्होंने केंद्र सरकार को इस संबंध में चिट्ठी लिखी. आज फिर से बसपा का कहना है कि अगर केंद्र की सरकार इस पर संविधान संशोधन विधेयक लाती है तो बसपा इसका समर्थन करेगी.

सवर्णों को मिले 15 फीसदी आरक्षण : रामविलास पासवान

बीते 6 सितंबर को जब सवर्णों ने एससी-एसटी संशोधन अधिनियम 2018 के विरोध में भारत बंद किया तब आरक्षण का सवाल भी उठाया गया. कांग्रेस की ओर से पहल हुई और रणदीप सूरजेवाला ने बयान दिया कि गरीब सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए. कांग्रेस के नहले पर दहला मारते हुए केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने पटना में एक संवाददाता सम्मेलन में गरीब सवर्णों के पक्ष में 15 फीसदी आरक्षण देने की बात कही. उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि आखिर आज कांग्रेस को कहां से अक्ल आई है जो गरीब सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग कर रही है जबकि लोजपा लंबे समय से गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग उठा रही है. हालांकि रामविलास पासवान को उनके इस बयान के लिए विरोध का सामना उसी दिन करना पड़ा और वह भी अपने संसदीय क्षेत्र हाजीपुर में. लोगों ने उनके बयान के लिए काले झंडे दिखाये.

सवर्णों को मिलनी ही चाहिए 25 फीसदी आरक्षण : आठवले

गरीब सवर्णों को 15 फीसदी आरक्षण मिले, यह बात एनडीए सरकार में एक और दलित मंत्री रामदास आठवले ने सुर में सुर मिलाया. हालांकि आठवले ने 15 फीसदी के बजाय 25 फीसदी आरक्षण सवर्णों को देने की बात कही. बीते 16 सितंबर 2018 को जयपुर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि देश के कई राज्यों में सवर्ण आरक्षण की मांग कर रहे हैं. महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पाटीदार और पटेल, हरियाणा में जाट और राजस्थान में राजपूत और उत्तर प्रदेश में ठाकुर और ब्राह्मण भी यही मांग कर रहे हैं. ऐसे में एससी/एसटी और ओबीसी के लिए मौजूदा आरक्षण व्यवस्था में छेड़छाड़ किए बगैर अगड़ी जातियों को 25 फीसदी आरक्षण देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सवर्णों में सभी आर्थिंक रूप से सम्पन्न नहीं होते, इसलिए सवर्ण जातियों को आठ लाख रुपये की क्रीमीलेयर लगाकर 25 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए. वे इस बारे में एनडीए की बैठक में सुझाव दे चुके हैं.

उदित राज ने उठाये सवाल

लेकिन दलित सांसद उदित राज ने गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के सवाल पर सवाल खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने किस मापदंड से गरीब सवर्णों के आरक्षण की मांग की है? वर्तमान में 3600 आई.ए.एस. पदों में लगभग 2600 ब्राह्मण हैं. उन्होंने सवाल खड़ा किया कि क्या कांग्रेस व भाजपा सवर्णों की भागीदारी सुनिश्चित करने जा रही है या आर्थिक उत्थान करने?

उन्होंने कहा कि भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रश्न इसलिए नहीं उठता क्योंकि उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि दूसरों की भागीदारी होना जरूरी है न कि इनकी. जहाँ तक गरीबी दूर करने का सवाल है, वह तो आरक्षण से असंभव है. पहला, नौकरियाँ बड़ी सीमित हैं, इससे आथिर्क उत्थान होने का प्रश्न ही नहीं उठता. दूसरा यह कि इसके द्वारा उन कारणों को निबटाने के लिए कोई उपाय नहीं सुझाए गए हैं, जिनके कारण सवर्णों में गरीबी आयी.

असमंजस में जदयू

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड की बात करें तो बीते दिनों पटना से प्रकाशित अखबारों में इस बाबत खबर जरुर छपी कि जदयू गरीब सवर्णों के आरक्षण के पक्ष में नहीं है. खबर में जदयू कार्यकारिणी की बैठक के हवाले से कहा गया कि पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह ने गरीब सवर्णों को आरक्षण दिये जाने के संबंध में बात कही जिसे नीतीश सरकार के वरिष्ठ सदस्य बिजेंद्र यादव ने खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि आरक्षण का सवाल आर्थिक नहीं है. यह एक सामाजिक जरुरत है. वहीं नीतीश कुमार के दायें हाथ कहे जाने वाले राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह ने भी गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के सवाल को खारिज किया. हालांकि इस संबंध में पूछने पर जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि उन्हें इस बाबत कोई जानकारी नहीं है. शीर्ष के नेताओं द्वारा ऐसी कोई बात अधिकारिक तौर पर नहीं कही गयी है.

पहले जातिगत जनगणना की रिपोर्ट, तब गरीब सवर्णों के आरक्षण की बात : तेजस्वी

देश में आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों के आरक्षण के मुद्दे पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा है कि जब तक जातिगत जनगणना के नतीजे सार्वजनिक नहीं के बाद ही सवर्णों के आरक्षण की बात की जाएगी. विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा है कि जातीय गनगणना के आंकड़े जब सामने आएंगे तभी पता चलेगा कि कौन गरीब है और तब हम सर्वणों के आरक्षण की बात करेंगे. सनद रहे कि 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का पक्ष लिया था.

बहरहाल, गरीब सवर्णों को आरक्षण मिले, इसकी पहली बार पहल जननायक कर्पूरी ठाकुर ने की थी जब उन्होंने मुंगेरी लाल कमीशन की अनुशंसाओं के अनुरूप 3 फीसदी आरक्षण सवर्णों को देने के अलावा 22 फीसदी आरक्षण पिछड़े वर्ग को देने की बात कही. हालांकि तब उन्हें इसके लिए विरोध का सामना करना पड़ा था. उन्हें इसके लिए गालियां भी मिली. मुंगेरी लाल कमीशन की अनुशंसायें तो मजाक वाला मुहावरा ‘मुंगेरी लाल के हसीन सपने’ बनकर रह गयीं.

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