राहुल पीएम बनेंगे तो..ऐसा बार-बार बोलने के पीछे अमित शाह की है रणनीति या डर!

अमित शाह शुक्रवार को राजस्थान में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए जनसभा में शामिल हुए। गृहमंत्री ने कहा कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर भ्रष्टाचार बढ़ेगा। इस बयान के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि बीजेपी क्यों राहुल को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में दर्शा रही है। इसे समझने के लिए बीजेपी की रणनीति और डर की जांच करना महत्वपूर्ण है। आधिकारिक रूप से, विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के लिए अनेक उम्मीदवार हैं, जिनमें नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल शामिल हैं। लेकिन राहुल गांधी के नाम को लेकर बीजेपी विपक्ष में अशांति फैलाती है। इससे विपक्ष को एकजुट होने से रोक दिया जाता है।

उनके मन में एक भावना पैदा होती है कि चाहे कुछ हो जाए, अगर विपक्ष एकजुट होकर विजयी होता है, तो प्रधानमंत्री पद की कुर्सी राहुल गांधी को ही मिलेगी। राहुल गांधी को विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषित करके बीजेपी को एक और लाभ पहुंचता है। इससे उन्हें अपने वोटबैंक को संगठित करने में मदद मिलती है। वे लोग, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक हैं, राहुल को देखकर बीजेपी के साथ और मजबूत हो जाते हैं। यह तुलना करने के लिए भी सुविधाजनक होता है। एक बड़ी वर्ग राहुल की राजनीतिक पकड़ पर सवाल उठाता है। यह मोदी के पक्ष में वातावरण बनाने में मददगार होता है। बीजेपी को लगता है कि कांग्रेस नेता पीएम मोदी के समक्ष किसी भी रूप में टिकते नहीं हैं। इसलिए उन्हें राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में बताने का फायदा होता है।

वे उम्मीद करते हैं कि लोग राहुल के मुकाबले में प्रधानमंत्री मोदी को देखकर उनके साथ और अधिक मजबूती से खड़े होंगे। इससे बीजेपी को अपनी विचारधारा और नेतृत्व पर भरोसा मिलता है। इन सभी कारणों से, बीजेपी और अमित शाह को राहुल को प्रधानमंत्री की कुर्सी के साथ जोड़ने का फैसला करना एक सत्यापित रणनीति हो सकता है। वे चाहते हैं कि राहुल गांधी को विपक्ष का मुख्य नेतृत्व मिले, ताकि वे लोकसभा चुनाव में मोदी के मुकाबले एक मजबूत विपक्षी प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर सकें। इससे वे उम्मीद करते हैं कि लोग राहुल के अनुभव और विचारों को समर्थन करेंगे और विपक्ष के लिए वोट देंगे।

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