लाइन लगाकर आप अमीरों की तिजोरी तो नहीं भर रहे? पढ़िए कैसे अंत में अंबानी-अडानी के खाते में जाएगा आपका पैसा,


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अब धीरे धीरे ये धारणा पक्की होने लगी है कि नोट बदलने से काले धन पर मामूली असर पड़ेगा. ज्यादातर जगहों पर कालेधन को सफेद में बदलने के नये-नये तरीके सामने आ रहे हैं. नोएडा में एक मैनेजर पकड़ा गया है. जो लोगों को नोट बदलकर दे रहा था. इसी तरह लोग नोट को सफेद बनाने के लिए अपने कर्मचारियों को अग्रिम वेतन बांट रहे हैं. कई लोगों ने अपने कर्मचारियों को धन सफेद करने का कोटा फिक्स कर दिया है.
इन सब हालात में लोग मानने लगे हैं कि ज्यादातर धन सफेद में तब्दील हो जाएगा. सैकड़ों करोड़ में कालाधन रखने वालों के मामले में धारणा है कि वो विदेशों के रूट से पैसा बदलवा रहे हैं.
अर्थशास्त्र के जानकारों का कहना है कि सरकार को भी पहले से अंदाज़ा था कि लोग अपना धन सफेद कर ही लेंगे उनका मानना है कि सरकार को इससे ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता था . इन लोगों का कहना है कि सरकार की नीयत कुछ और थी
इसलिए सरकार ने बदला रुपया
1. अर्थशास्त्र के जानकार मानते है कि केन्द्र सरकार का इरादा पूंजीपतियों और उद्योगों के लिए धन मुहैया कराना था.
2. अर्थ व्यवस्था का विकास करने के लिए कई साल से केन्द्र सरकार ब्याज कम करने की कवायद में लगी थी.
3. रिजर्व बैंक की अपनी मजबूरियां थीं ब्याज कम करने पर धन की मांग बढ़ जाती और ऐसी हालत में अधिक धन जमा नहीं होता क्योंकि कम ब्याज़ पर लोग बैंकों में धन रखने को तैयार नहीं होते.
3. केन्द्र सरकार ने जनधन योजना चलाई जिसके ज़रिए सबका अकाउंट खोला गया. सरकार का विश्वास था कि खाता होने पर सभी लोग अपना पैसा बैंक में रख सकेंगे इससे काफी पैसा बैंकों के पास आएगा.
4. जनधन योजना से काफी पैसा आया भी लेकिन जल्द ही ये खत्म हो गया. अकेले अडानी को ऑस्ट्रेलिया के विवादास्पद प्रोजेक्ट के लिए 4000 करोड़ दिए गए और धन खत्म हो गया.
5. हालात फिर खराब थे. माल्या जैसे लोग बैंकों का पैसा लेकर गायब हो चुके थे. बड़े बैंकों के 1 लाख 14 हज़ार करोड़ रुपये अमीर हड़प गए थे. सरकार ने उनके कर्जे माफ कर दिए थे. इससे भी बैंकों की हालत बिगड़ने लगी थी.
6. अमीर और पूंजीपति मुंह फाडे खड़े थे नये कारोबार शुरू करने के लिए उन्हें सस्ता और सुलभ लोन चाहिए था. जबतक पैसा नहीं मिलता वो नये कारोबार शुरू करने की हालत में नहीं थे.
7. जबतक कारोबार शुरू नहीं होते रोजगार के हालात नहीं सुधरते. रोजगार की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी
8. रेलवे की हालत भी लगातार बिगड़ रही थी . सारे टोटकों और गिमिक्स के बावजूद रेलवे घाटे में जा रही थी. रेलवे के घाटे में जाने का मतलब था सरकार की बदनामी. सरकार ने बदनामी से बचने के लिए रेलवे का अलग बजट ही खत्म कर दिया. इससे भी सरकार पर बोझ बढ़ गया.
ऐसे में एक ही रास्ता था कि सरकार लोगों से जबरदस्ती बैंक में पैसे जमा करवाए. इसके लिए सरकार ने नोट बदलने का रास्ता निकाला. सरकार ने नोट ही नहीं बदले इसके साथ कुछ नये नियम भी बना दिए. इन नियमों का मतलब था कि आप बैंक में पैसा तो जमा कर सकते हैं लेकिन बाहर नहीं निकाल सकते. हफ्ते में सिर्फ 24 हज़ार रुपये ही बाहर निकाले जा सकते हैं. यानी आपके पास कोई ग्राहक भुगतान में 10 लाख रुपये दे तो उसे आप बैंक में तो डाल सकते हैं लेकिन वापस नगदी नहीं निकाल सकते.
यानी सभी तरह का पैसा बैंक के पास ही रहेगा. अगर आप चैक से भुगतान करते हैं तो भी पैसा एक बैंक से दूसरे में चला गया .
कुल मिलाकर सरकार आपसे पैसे लेना चाहती है. ताकि उसे उद्योगपतियों को दे सके. आपको मामूली व्याज़ देकर टरका दिया जाएगा. अगर आपको लगता है ब्याज़ कम है तो आप शेयर बगैरह खरीद सकते हैं. अगर आप शेयर खरीदेंगे तो भी धन पूंजीपतियों के ही काम आएगा.
अब लोगों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है. घरेलू बचत के पैसे, महिलाओं की बचत की रकम और बेटी के ब्याह के पैसे सब आम लोगों को देने होंगे. इसलिए देने होंगे ताकि धन्नासेठ और उद्योग पति चाहे वो अंबानी हों, टाटा हों. बिड़ला हों या अडानी हों आपके पैसे सस्ते ब्जाज़ पर लेकर कारोबार कर सकें.