अगर ये हुआ तो पत्नियों को देनी होगी 50000 रुपये महीने से ज्यादा सेलरी


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नई दिल्ली: खबर की शुरुआत एक किस्से से करते हैं. किस्सा पेप्सीको की चेयरमैन इंदिरा नुई की लाइफ का सच्चा किस्सा है. नूई ने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक बार वह देर से घर पहुंची तो उनकी मां गेट पर खड़ी थीं और उन्होंने नूई को दूध लाने को कहा. जब नूई ने यह बताया कि वह पेप्सिको की प्रेजिडेंट बनने वाली हैं तो उनकी मां ने कहा, ‘तुम भले ही पेप्सिको की प्रेजिडेंट हो. लेकिन जब तुम घर में घुसती हो, तुम पत्नी हो, तुम बेटी हो, तुम बहू हो, तुम मां हो. तुम यह सब हो और यह जगह कोई नहीं ले सकता. तो अपना प्रेजिडेंट पद घर पर न लाओ.’ ये किस्सा भारत में महिलाओं की स्थिति बताने के लिए काफी है.

इस किस्से का जिक्र हम यहां इसलिए कर रहे हैं क्योंकि मिस वर्ल्ड बनी मानुसी छिल्लर ने मां पर एक बयान देकर नयी बहस को जन्म दिया है. उन्होंने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा वेतन किसी को मिलना चाहिए तो वो है मां. दरअसल मां के काम को देखते हुए अब ये अनुमान लगाया जाने लगा है कि मां का वेतन कितना हो. माना जा रहा है कि मां की ममता की कीमत नहीं लगाई जा सकती न ही उसकी जॉब से तुलना की जा सकती है लेकिन अगर उसे केवल काम की तरह देखा जाए तो सैलरी कितनी होगी?

लेकिन सच्चाई यह है कि उनके द्वारा दिनभर की गई मेहनत को न तो काम का दर्जा मिलता है और न उसकी कोई सैलरी. वह बात अलग है कि बॉस जैसा हुक्म देने वालों की कमी नहीं होती.

ये है वेतन का हिसाब

  • दो बच्चों की 12 से 14 घंटे देखभाल का 12 हजार रुपये.
  • 3 से 4 लोगों के मन का खाना बनाने का 6 हजार रुपये.
  • घर की साफ-सफाई से लेकर कपड़ों तक का 3 हजार रुपये.
  • घर के बजट को संभालना, खर्चों का ध्यान रखना और पैसा बांटने का 4 हजार रुपये.
  • बच्चों और बूढ़ों की नर्सिंग और बीमार होने पर देखभाल का 6 हजार रुपये.
  • बच्चों को पढ़ाने का, उनके स्कूल के कामों में मदद करने का 6 हजार रुपये.
  • बच्चों को घूमाने से लेकर ऐसे काम जिसे गिनाना मुश्किल है, 8 हजार रुपये.

टोटल हुआ 45 हजार रुपये. अगर हर साल इसमें 10 प्रतिशत भी बढ़ोतरी मान ली जाए तो कितना होगा उसका अंदाजा आप लगाइए.

ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक कॉर्पोरेशन ऐंड डिवेलपमेंट द्वारा 2011 में की गई एक स्टडी के मुताबिक एक भारतीय महिला औसतन रोजाना 6 घंटे बेगार करती है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भले ही उनका काम अनपेड हो लेकिन होममेकर्स द्वारा किए गए काम को इकॉनमिक ऐक्टिविटी में का दर्जा मिलना चाहिए और राष्ट्रीय आय में शामिल भी किया जाना चाहिए. इसे नजरअंदाज करके हम अर्थव्यवस्था में महिलाओं के योगदान को नकार देते हैं.

मिलनी चाहिए सैलरी

पांच साल पहले महिला एवं बाल कल्याण मंत्री कृष्णा तीरथ ने यह सुझाव दिया था कि गृहिणियां जो काम करती हैं उसे जॉब माना जाए और पति, पत्नियों को इस काम के लिए पैसा भी दें. 2012 का यह सुझाव तो कहीं गुम हो गया था लेकिन मानुषी के उत्तर ने फिर इस विषय पर चर्चाएं शुरू कर दी हैं. इकॉनमिक टाइम्स ने इस पर रिसर्च की और यह पाया कि शहर में रहने वाली एक भारतीय मिडल क्लास परिवार में होममेकर (घर संभालने वाली) को 45 हजार रुपये हर महीने मिलने चाहिए.