क्या मदर टेरेसा के बहाने अंधविश्वास फैलाया गया?

माता टेरेसा को संत की उपाधि दी ये अच्छी बात है, वो लोगों का खयाल रखती थीं, उनसे प्रेम करती थीं, उनकी सेवा करती थीं उनके दर्द भी बांटती थीं. उनके काम करने के तरीके पर हज़ारों सवाल उठे कहा गया वो मानवता की सेवा से ज्यादा ध्यान अपने धर्म के प्रचार पर देती थीं और एक कट्टर धार्मिक व्यक्ति थीं. वो एक रुढ़िवादी महिला थीं . धार्मिक अंधविश्वासों में जकड़ी रहती थीं और उनका एक ही मकसद होता था धर्म के मार्ग पर चलना. मैं न तो उनके मानवता की सेवा के लिए किए गए काम को नकारना चाहता न ये स्वीकर करना चाहता कि वो धार्मिक रूप से पुरातनपंथी नहीं थी लेकिन इस सारे विमर्ष के बीच दो चीज़ें कहीं खो जा रही हैं.
1.मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने के नाम पर पूरी दुनिया में एक बार नये सिरे से चमत्कार जैसी फालतू और कूढ़मगज चीज को बढ़ावा दिया जा रहा है और उस पर मुहर लगाई जा रही है. जिस महिला का पति खुद कह रहा है कि मेडिकल साइंस के कारण उसकी पत्नी ठीक हुई उस महिला के मामले को लेकर दुनियाभर में चमत्कारों को महिमा मंडन किया जा रहा है. ये अंधविश्वास फैलाने की एक कोशिश है.
2. मदर टेरेसा हों या कोई और साधु, संत, समाजसेवी और एनजीओ.ये सिर्फ एक ही काम करते हैं और वो है अधिकारों से वंचित तबको के क्रोध को शांत करना और बेहतर भविष्य की झूठी आस जगाना. आज ही रिपोर्ट आई है कि भारत आर्थिक रुप से असमानता को मामले में रूस के बाद दूसरे नंबर पर है. जिस धरती और संसाधन पर भारत वासियों का समान हक है उसके 54 फीसदी संसाधन सिर्फ अमीरों ने हथिया रखे हैं. इस तरह की असमानता के खिलाफ लोगों के मन में आक्रोश न उभरे इसका ध्यान ये संस्थाएं करती हैं. दुनिया भर के अमीर लोग इन संस्थाओं को जी भरके दान देते हैं. चमत्कार की आस लोगों का ध्यान उनकी समस्याओँ के असली कारणों तक नहीं जाने देती.
मैं फेसबुक पर बहुत दिनों से सक्रिय नहीं हूं. तरह तरह के विषाणु परेशान करते हैं इसलिए कम ही आता हूं. आजकल किसी अज्ञात विषाणु ने स्वास्थ्य पर भी हमला कर दिया है. फिर भी इस मामले पर चुप नहीं बैठना चाहता.अंध विश्वास का विरोध होना चाहिए. भले ही वो किसी भी स्तर पर हो और किसी भी भूभाग में हो.

 

Facebook पर पत्रकार गिरिजेश वशिष्ठ की वाल से