पत्रकार प्रभात डबराल का ये पोस्ट नागपुर को जवाब है. जमकर हो रहा है शेयर

नई दिल्ली: प्रभात डबराल भारत के जाने माने पत्रकारों में से हैं उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक शिमला से सियाचिन तक पूरे भारत को देखा है. वाशिंगटन से क्रेमलिन तक उन्होंने पूरी दुनिया देखी है. कई दौर देखें है और कई युगों को जिया है. कभी दूरदर्शन के स्टार रिपोर्टर रहे प्रभात डबराल के अनुभवों में कई प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल रहा है. उन्होंने सबको नज़दीक से देखा.  उन्होंने भारत की राजनीति के कई दौर देखे हैं. इमरजेंसी के भी साक्षी रहे और भारत के ऐतिहासिक गौरवशाली क्षणों के भी. भारत की टीवी क्रांति के वो गवाह रहे हैं. एक चैनल से 500 न्यूज़ चैनलों की यात्रा में वो भी कारवांदार रहे हैं.

सहारा टीवी के चैनल्स उन्होने शुरू किए और जबतक उनकी छाप रही चैनल छाए रहे. वो उत्तराखंड के सूचना आयुक्त भी रहे हैं लेकिन अनुभवी पत्रकार का परिचय उनपर ज्यादा फबता है.

फेसबुक पर प्रभात डबराल की ये टिप्पणी जमकर वायरल हो रही है. फेसबुक से ज्यादा इसे वाट्सएप पर शेयर किया जा रहा है. डबराल आज के भड़काऊ माहौल से नाराज़ हैं . अभिजीत क् ट्वीट और वामपंथियों की राष्ट्रद्रोही कहने से दुखी प्रभात ने ये पोस्ट लिखा है. हमें दमदार लगा इसलिए आपके लिए जस का तस छाप रहे हैं.

 

कश्मीर के अलगाववादियों का समर्थन करोगे, पत्थरबाजों के पक्ष में बोलोगे, कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं था – ऐसा कहोगे और सोचोगे के लोग खुश होंगे तुम्हारा तर्क समझेंगे, तो तुमसे बड़ा मूर्ख कौन है. गाली खाने के काम करोगे तो गलियां ही पड़ेंगी न. खाओ गाली खूब खाओ, हमें क्या. लेकिन प्रॉब्लम ये है कि तुम्हारी मूर्खता से उनके हाथ मज़बूत होते हैं जो इस देश को तोड़ना चाहते हैं जो कश्मीर की समस्या को सुलझाना नहीं चाहते बल्कि इसे और उलझा कर अपना उल्लू सीधा करना कहते हैं. इससे भी ज़्यादा गंभीर बात ये है कि मानवाधिकार के नाम पर दिए जा रहे तुम्हारे ऊलजलूल बयान उन लोगों के संघर्ष और क़ुर्बानियों पर पानी फेर देते हैं जिन्होंने जान हथेली पर रख कर अलगाववादियों से लोहा लिया और कुछ ने तो जान तक क़ुर्बान कर दी. हमारे आज के बड़बोले स्वयंभू ‘देशभक्त’ तुम्हारे साथ उन्हें भी लपेट दे रहे हैं.

एम् एन वांचू का नाम सुने हो?. १९८९ में जब घाटी में पंडितों का नेता होने का दम भरने वाले सूरमा भी आतंकियों का मुक़ाबिला करने की जगह बाक़ियों के साथ घाटी छोड़ भाग निकले तो वामपंथी मानवाधिकार वादी वांचू ने ऐसा नहीं किया- वे श्रीनगर में ही जमे रहे, आतंकियों को चुनौती देते रहे और साथ ही साथ सुरक्षा बालों की ज़्यादतियों के खिलाफ भी आवाज़ उठाते रहे. मै १९९०-९१ मै उनसे श्रीनगर मे मिला था. आतंकवाद चरम पर था, आम मुस्लमान भी घर से बाहर निकलने मै डरता था, पंडित तो भाग ही चुके थे, लेकिन वांचू साहब एक थैला लटका कर खुलेआम घूमते थे – उन्हें आतंकी भी गाली देते थे और सुरक्षाबल भी . फिर एक दिन आतंकियों ने उन्हें मार डाला. उनका बेटा आज भी श्रीनगर मै रह रहा है. तुम जब ऊटपटांग तरीके से पत्थर बाज़ों की हिमायत करते हो तो आज के स्वयंभू देशभक्तों को वांचू जैसे असली देशभक्तों की सोच पर हमला करने का अवसर दे देते हो.

तुमने रंजूर का नाम भी नहीं सुना होगा. वो सी पी आई के राज्य सचिव थे. अलगाववादियों के खिलाफ खुलकर बोलते थे. पब्लिक मीटिंग्स करते थे. ९०-९१ मे आतंकियों ने उन्हें मार डाला. उनके कई और साथी भी आतंकियों के हाथों शहीद हुए. आज तुम्हारे कारण ये नक़ली देशभक्त वामपंथियों को ही देशद्रोही बोलने लगे हैं. कश्मीर मे अगर किसी राजनीतिक जमात ने वहीं घाटी मे रहकर आतंकियों को खुलकर चुनौती दी तो ो सी पी आई और सी पी ऍम के कार्यकर्ता ही हैं, हालाँकि उनकी तादाद बहुत कम है. सी पी ऍम के राज्य सचिव युसूफ तारिगामी आज भी वही हैं, उन पर कई हमले हो चुके हैं. फिर भी तुम्हारी हरकतों के कारण नकली देशभक्तों को वामपंथियों पर हमला करने का मौका मिल रहा है.

थोड़ा ज़ुबान पर काबू रखो यार, बुरा वक़्त है. देशहित मे थोड़ा संयम भी ज़रूरी है. उनके हाथ मज़बूत मत करो जो देश तोड़ने पर आमादा हैं.