राहत नहीं ये पेट्रोल के दाम करने के नाम पर ‘खेल’ कर रही है सरकार

पेट्रोल के दाम में मोदी सरकार ने जो राहत दी है वो तो दी है लेकिन इसमें राहत से ज्यादा राजनीति है. आपको बताते है कि कैसे बीजेपी ने पेट्रोल के दाम पर राहत की जगह राजनीति की. बड़ी बात ये है कि ये राहत राहत न होकर राहत का दिखावा ज्यादा है . सरकार ने जनता से लिए गए पैसे तक उसे नहीं लौटाए हैं.

जल्द ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे बीजेपी शासित राज्यों और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनावों में बमुश्किल डेढ़ से 2 महीने का वक्त है. चुनाव आयोग इन राज्यों में चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटा है और अगले कुछ दिनों में चुनाव कार्यक्रम भी घोषित हो सकता है. पेट्रोल-डीजल के ऊंचे दाम रोज नए रेकॉर्ड बना रहे थे.

ढाई रुपये की राहत देने से पहले केंद्र ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से अपना खजाना खूब भरा है. बताने की जरूरत नहीं कि सभी राज्यों ने भी (चाहे जिस पार्टी की सरकार हो) पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से खूब कमाई की है और कर रहे हैं. इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में केंद्र ने पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में प्रति लीटर 2 रुपये की कटौती की थी.

सरकार ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि उसने दाम कम कर दिया लेकिन यहां मामला इतना सिंपल नहीं है. जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत कम हो रही थी तो सरकार ने लगातार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर अपना खज़ाना बढ़ा और जनता को घटे दाम का फायदा नहीं मिलने दिया. एक्साइज ड्यूटी दस बार बढ़ाई गई. लगातार खज़ाना भरने के बाद जब कच्चे तेल का दाम बढने लगा तो सरकार को सांप सूंघ गया. वो बटोरे हुए खज़ाने पर कुंडली मारे बैठी ऱही.
अब जितना पैसा कमाया था उसके ब्याज़ के बराबर पैसों से डेढ़ रुपये लीटर का दाम कम करके वाहवाही लूट ली. तेल कंपनियों को भी मुनाफा 1 रुपये लीटर कम करने को कहा गया . सवाल ये उठता है कि तेल कंपनी अब तक 1 रुपये लीटर ज्यादा मुनफा कमा रही थीं और सरकार देख रही थी क्यों ?

जनता लुटती रही त्राहिमाम करती रही और सरकार अपना मुनाफा बढ़ाती रही. पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी की वजह से पिछले 4 सालों में केंद्र का एक्साइज कलेक्शन दोगुना से भी ज्यादा हो गया. 2014-15 में जहां केंद्र का एक्साइज कलेक्शन 99.184 करोड़ रुपये था, वहीं 2017-18 में यह बढ़कर 2.3 लाख करोड़ रुपये हो गया. इसी तरह राज्यों के VAT रेवेन्यू में भी इजाफा हुआ. 2014-15 में राज्यों का वैट रेवेन्यू 1.3 लाख करोड़ रुपये था जो 2017-18 में बढ़कर 1.8 लाख करोड़ रुपये हो गया.

प्रत्यक्ष कर संग्रह में इजाफा
इस साल अप्रैल से सितंबर के बीच भारतीयों ने 5.47 लाख करोड़ रुपये प्रत्यक्ष करों के तौर पर चुकाया है. यह पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही से 17 प्रतिशत ज्यादा है. पर्सनल और कॉरपोरेट टैक्स कलेक्शन भी 19 प्रतिशत बढ़ा है. जब भारतीय ज्यादा टैक्स जमा करते हैं तो इसका मतलब है कि पहले से ज्यादा लोग (और कंपनियां) टैक्स अदा कर रही हैं और इसका यह भी मतलब है कि वे पहले से ज्यादा कमा रहे हैं.

कॉरपोरेट्स द्वारा अडवांस टैक्स जमा में 16 प्रतिशत और लोगों द्वारा अडवांस टैक्स जमा में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. वित्त मंत्री जेटली ने गुरुवार को यह भी कहा कि प्रत्यक्ष कर संग्रह में इजाफा से राजकोषीय घाटा को कम करने में मदद मिली है. उन्होंने पेट्रोल-डीजल पर राहत के लिए इसे भी एक वजह बताई.

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