क्या सबसे असफल रेलमंत्री बन गए हैं सुरेश प्रभु? गलत फैसले जिन्होंने डुबाया

भारतीय रेल अपने सबसे खराब वक्त से गुजर रही है , जो सुरेश प्रभु कल तक सोशल मीडिया पर मोदी समर्थकों के हीरो हुआ करते थे वो अब नेपथ्य में चले गए हैं. ट्विटर पर कुछ लोगों को शिकायत लेकर सुरेश प्रभु ने जब एक्शन लिया तो वो हीरो बन गए सोशल मीडिया पर तरह तरह की तारीफें हुईं लेकिन अब जो हालात हैं उसमें प्रभु के पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा है.जानकारों का कहना है कि रेलवे के बजट को केन्द्रीय बजट में शामिल करने का फैसला इसीलिए लिया गया क्योंकि रेलवे की माली हालत गलत नीतियों के कारण काफी खराब हो गई है. हाल में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे 4000 करोड़ के घाटे में चल रही है.

ये हैं घाटे के लिए जिम्मेदार नीतियां

रेलवे के घाटे की सबसे बड़ी वजह बना है रेल्वे का अनापशनाप किराये बढ़ाने का फैसला. मंत्रालय के अफसरों के बहकावे में आके प्रभु ने रिकॉर्ड बार रेलवे का किराया बढ़ाया. उन्होंने 14 फीसदी किराया बढ़ाया. प्लेटफॉर्म का टिकट महंगा किया और माल भाड़े को भी महंगा कर दिया . तत्काल टिकट का दाम बढा दिया और  कैंसिलेशन को तो 100 फीसदी दाम बढ़ाकर करीब करीब सज़ा ही बना डाला. इसके अलावा सबसे गलत फैसला प्रभु ने 4 फीसदी किराया बढ़ाकर किया

रेल छोड़ कार में जाने लगे लोग

जानकारों का कहना है कि इन फैसलों से रेलवे का रैवेन्यू बढ़ने के बजाय घट गया. रेल्वे के मुसाफिर तेज़ी से दूसरे मोड्स की तरफ बढ़़. पेट्रोल के दाम कम होने के कारण 500 से 600 किलोमीटर तक की यात्रा करने वाले मुसाफिरों ने अपनी कारों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. 4 लोगों के परिवार के साथ अगर कोई 300 किलोमीटर की यात्रा अपनी गाडी में करता है तो उसकी करीब 36 फीसदी की बचत होती है. लोकल स्तर पर घूमने फिरने और स्टेशन जाने के मोटे खर्च और वक्त की बरवादी भी बचती है. रिजर्वेशन की परेशानी भी नहीं होती.

हवाई सफर से महंगी कर दी रेल

लंबी यात्रा के मुसाफिर हवाई यात्राओं का रुख करने लगे हैं . सरकार की हाल में आई नयी नीति ने हवाई यात्राएं रेल्वे के ऊंचे दर्जे से काफी सस्ती कर दी है अब तो हाल ये हैं कि एसी थ्री टियर के मुसाफिर भी हवाई जहाज में यात्रा करके समय और पैसे बचा रहे हैं. लंबी दूरी को लोगों के अपने घर जाने के लिए पहले हफ्ते भर की छुट्टी लेनी होती थी लेकिन अब ये काम 3 दिन में ही हो रहा है. यानी रेल्वे को यहा भी चपत. इसी का नतीजा है कि रेलवे 4 हज़ार करोड़ के घाटे में चल रही है और सरकार को रेल बजट को आम बजट  में मिलाना पड़ा है ताकि घाटा दबाया जा सके.