कुलदीप नैयर की गिरफ्तारी की पूरी कहानी, नहीं रहा पत्रकारिता का शेर


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नई दिल्ली : 25 जून, 1975. इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी. जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे तमाम कद्दावर और सरकार की मुख़ाल्फ़त करने वाले नेताओं की धरपकड़ हो रही थी. वरिष्ठ जर्नलिस्ट कुलदीप नैयर भी उन लोगों में शुमार थे, जो सरकार की नीतियों और रवैये का पुरज़ोर विरोध कर रहे थे. ज़ाहिर है, नैयर की गिरफ्तारी भी तय थी. आपातकाल की घोषणा के बाद प्रेस सेंसर शिप के मुद्दे पर कुलदीप नैयर इंदिरा सरकार के खिलाफ और मुखर हो गए.

कुलदीप नैयर ने इंदिरा गांधी को एक चिट्ठी लिखी, जिसका मजमून यह था कि प्रेस को जनता को सूचित और जागरूक करने के लिए अपने कर्तव्य का पालन करना पड़ता है और कभी-कभी यह अप्रिय कार्य भी बन जाता है. अगर प्रेस सरकारी भोंपू बन जाए, तो कमियों-ख़ामियों को कौन उजागर करेगा. इस दौरान कुलदीप नैयर साथी पत्रकारों को भी सेंसर शिप के ख़िलाफ़ एकजुट करने में लगे थे. 28 जून, 1975 को उन्होंने प्रेस क्लब में एक मीटिंग बुलाई, जिसमें कुल 103 जर्नलिस्ट पहुंचे. कुछ नामी संपादक भी थे.

कुलदीप नैयर घर से ही एक प्रस्ताव तैयार कर प्रेस क्लब पहुंचे थे, जिसमें लिखा था, ‘यहां एकत्रित हम सभी जर्नलिस्ट सेंसर शिप लागू किए जाने की निंदा करते हैं और सरकार से इसे फौरन हटाने की मांग करते हैं. साथ ही कस्टडी में लिए गए पत्रकारों की रिहाई की भी मांग करते हैं.’ 103 पत्रकारों में से सिर्फ 27 पत्रकारों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, जिनमें वेदप्रताप वैदिक, प्रभाष जोशी और बलवीर पुंज जैसे जर्नलिस्ट शामिल थे.

तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री वीसी शुक्ल, यानी विद्याचरण शुक्ल को इस मीटिंग की खबर लग गई. इंदिरा गांधी और उनसे कहीं ज़्यादा उनके बेटे संजय गांधी के करीबी वीसी शुक्ल ने फोन कर कुलदीप नैयर को मिलने के लिए बुलाया. जब कुलदीप नैयर उनके दफ्तर में दाखिल हुए, तो उन्होंने पहला सवाल पूछा, “वह लव लेटर कहां है.?” कुलदीप नैयर ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘मेरी तिजोरी में है.’ अचानक शुक्ल का सुर बदल गया. उन्होंने धमकाने वाले अंदाज़ में कहा, आपको गिरफ्तार किया जा सकता है. इसके बाद नैयर ने तपाक से जवाब दिया, मैं इंदिरा गांधी के ‘एम्बैसेडर एट लार्ज’ यूनुस खान की हिट लिस्ट में जरूर होऊंगा.

सरकार को कुलदीप नैयर की विदेशी पत्रकारों से नज़दीकी भी खल रही थी, और वीसी शुक्ल ने कुलदीप नैयर के अपने दफ़्तर से बाहर निकलते-निकलते कहा, ‘हम विदेशी पत्रकारों को सीधा कर देंगे. इन्हें बहुत ज़्यादा सिर चढ़ाया जा रहा है.’

आपातकाल लगे हुए करीब तीन सप्ताह बीत चुके थे. कुलदीप नैयर अपने कॉलम के ज़रिये सरकार पर हमलावर रुख अख्तियार किए हुए थे. एक सुबह वह UPSC के दफ्तर में अधिकारियों के चयन वाले पैनल में बतौर सदस्य बैठे थे. तभी जाने-माने जर्नलिस्ट निखिल चक्रवर्ती भागते हुए उनके पास पहुंचे, उन्हें एक कोने में ले गए और कहा, ‘सरकार आपके घर की तलाशी ले सकती है और गिरफ्तार कर सकती है, सतर्क रहें.’ कुलदीप नैयर उस दिन अपने घर पहुंचे और डिनर के दौरान परिवार से इस बात का ज़िक्र किया.

नैयर के छोटे बेटे राजीव ने जल्दी-जल्दी उनके कमरे में बिखरे सब कागज़ समेटे और एक दोस्त के घर छोड़ आए. दो दिन बाद सुबह-सुबह दरवाज़े पर दस्तक हुई. दरवाज़ा खुला, तो पुलिस वाला सामने खड़ा था. उसने कहा कि आपके घर की तलाशी लेनी है और गिरफ्तारी का वारंट है. तलाशी के दौरान तो घर में कुछ मिला नहीं, लेकिन कुलदीप नैयर को गिरफ्तार कर लिया गया.

टिप्पणियां अपनी आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइन्स’ में कुलदीप नैयर लिखते हैं, ‘जब पुलिस अधिकारी ने मुझे जीप में बिठाया, तो एक एन्टी क्लाइमैक्स सीन आया. कमज़ोर बैटरी के कारण जीप स्टार्ट ही नहीं हो रही थी. बाद में मुझे खुद ही धक्का देना पड़ा. जीप स्टार्ट हुई, तो थानेदार ने वायरलेस सेट पर अपने अधिकारी को मेरी गिरफ्तारी की सूचना देते हुए कहा, ‘शेर पिंजरे में आ गया है.’

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