राहुल के ‘फर्जी दस्तखत का मामला पहला नहीं है, इतिहास में नेताओं के धर्म पर हुए हैं कई खेल


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अहमदाबाद :  साम दाम दंड भेद. किसी को देश की अगर सेवा करनी है तो ओछी हरकतें क्यों करेगा. क्यों लोगों को आपस में लड़ाएगा. क्यों नफरत की खेती करेगा और क्यों अफवाहें, झूठ और फर्जीवाडे के प्रपंच करेगा ? ये हरकतें अगर कोई करने लगे तो समझ लीजिए वो बेईमानी से पद हथियाने की कोशिश कर रहा है और पद मिलने के बाद वो सिर्फ उसका दुरुपयोग करेगा. ईमानदारी, देशभक्ति और वफादारी की जो बातें वो कर रहा है वो मक्कारी से ज्यादा कुछ नहीं. हमारे नेताओं को पहचानने का इससे अच्छा कोई पैमाना नहीं हो सकता.

ये बाते राहुल गांधी को लेकर खड़े हुए उस ताज़ा विवाद के बात सामने आई है जो सोमनाथ मंदिर के एक कथित रजिस्टर की तस्वीरें सामने आने से पैदा हुआ है. हालांकि कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि राहुल गांधी के दस्तखत फर्जी हैं. उनके असली दस्तखत की तस्वीर भी सुरजेवाला ने दिखाई. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी जनेऊधारी हिन्दू हैं, चुनावी नामांकन, बहन की शादी व पिता राजीव के अंतिम संस्कार की विधियों में भी हिन्दू परंपरा का निर्वाह किया है.

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने अहमदाबाद में पत्रकारों को बताया कि राहुल गांधी ने दर्शन व जलाभिषेक के  बाद विजिटर बुक में लिखा है कि प्रेरणादायक जगह है, यहां आकर दिव्य अनुभूति हुई. सुरजेवाला ने कहा कि राहुल कश्मीरी ब्राम्हण हैं, उन्होंने चुनावी नामांकन व अन्य जगह भी हिन्दू पहचान बताई है. बहन की शादी व पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अस्थि विसर्जन भी हिन्दू परंपरा से किया है.

दरअसल बीजेपी की पितृ संस्था ने हमेशा से इस तरह के हथकंड़ों का इस्तेमाल किया है. आपको इतिहास के कुछ किस्से बताते हैं जिनको लेकर बवाल हुआ. उन बातों पर भी विवाद हुआ जिनको बीजेपी राजनीति में अब खाद पानी की तरह इस्तेमाल कर रही है.

सबसे पहले भारत माता मंदिर की बात. भारत माता के नाम पर बीजेपी मरने मारने पर उतारू है लेकिन इतिहास कहता है कि 15 मई 1983 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हरिद्वार के सप्त सरोवर में विश्व हिन्दू परिषद के स्वामी सत्यमित्रानन्द द्वारा निर्मित भारत माता मंदिर का उद्घाटन किया था? इसके बावजूद इंदिरा गांधी पर निजी हमले करने में संघ पीछे नहीं रहा.

लेकिन कांग्रेस ही नहीं जिसने भी देश में सुधार और आधुनिक विचार डालने की कोशिश की उसे परेशानी झोलनी पड़ी. संघ परिवारियों ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर में महात्मा गांधी को प्रवेश नहीं करने दिया था. वजह बेहद खतरनाक थी वो थी. गांधी जी अपने साथ कुछ दलितों को मंदिर में ले गए थे. क्योंकि वे अपने साथ दलितों को लाये थे. इसी जगन्नाथ मंदिर में इंदिरा गांधी को इसलिए नहीं घुसने दिया गया क्योंकि उनके पति पारसी थे.  खुद गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर को मंदिर में प्रवेश नहीं मिला क्योंकि वो वह ब्राह्म समाज के थे.  संत कबीर को इस मंदिर में जाने नहीं दिया गया क्योंकि उनकी वेशभूषा मुस्लिम की थी.

बार बार ये कोशिश हुई कि इन महान हस्तियों को विधर्मी करार दिया जाए ताकि हिंदू ध्रुवीकरण का खेल आगे बढ़ाया जा सके. ये हस्तियां प्रगतिशील थीं और समाज को आगे ले जाना चाहती थीं. अंध विश्वास और ढोंग धतूरों से दूर धर्म का सही मर्म लोगों को समझाना चाहती थीं. यही वजह है कि इन सारे असभ्य एतराज़ और आपत्तियों पर बीजेपी ने कभी हमला किया. कोई बीजेपी से पूछेगा कि ऐसा क्यों नहीं किया.

आज जब ये बड़ा राजनैतिक मामला बनता जा रहा है तो कोई जाकर सोमनाथ मंदिर के गैरहिंदुओं के रजिस्टर में राहुल गांधी का नाम लिख आया तो पार्टी उत्साह से भर गई.

जिस चुनाव में सेव से महंगे टमाटर का मसला उठना चाहिए, जिस चुनाव में चिकन से महंगे अंडे का मामला उठना चाहिए. जिस चुनाव में बैंकों की लूट की बात होनी चाहिए. जिस चुनाव में रोजगार लगातार कम होते जाने की बात होनी चाहिए. जिस चुनाव में दोस्तों को लूट की छूट देने का मामला खड़ा होना चाहिए उसमें इस चिप्पड़ हरकत से अंदाज़ा लग जाता है कि इस पद्धति से जो वोट लिए जा रहे हैं वो जन का मत नहीं है बल्कि छल का का फल है. जो छल से वोट लेगा वो सेवा नहीं करेगा मेवा पर नज़र रखेगा.