सरकारी स्कूलों में वर्ल्ड क्लास पेरेन्टिंग शिक्षा, ऐसा तो पब्लिक स्कूलों में भी नहीं

नई दिल्ली:  आपने सुना होगा कि दुनिया के जाने माने स्कूल बच्चों को बेहतरीन शिक्षा देने के लिए उनके पेरेनट्स यानी अभिभावकों को पेरेन्टिंग सिखाते हैं. इसका मतलब होता है कि बच्चों की परवरिश ऐसी हो कि वो हर तरफ से अच्छे इनसान बनें. भारत के कुछ बड़े स्कूलों ने भी इस रिवाज को शुरू किया था. सुन के अजूबा लगेगा पर दिल्ली में सरकारी स्कूलों में भी ये लागू कर दिया गया है.

पेरेन्टिंग की पहली क्लास खुद दिल्ली के डिपुटी सीएम और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने ली. सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली के 10 स्कूलों में अभी अभिभावक वर्क शॉप की जा रही है. लेकिन आने वाले समय में दिल्ली के सभी 1000 स्कूलों में इस वर्कशॉप को किया जाएगा. इससे पहले पब्लिक स्कूलों की तर्ज पर सरकारी स्कूलों में पीटीएम भी शुरू की गई थी.

दर असल पेरेन्टिंग वो तरकीब है जिससे आप अपने बच्चों को अच्छा इनसान बनाते हैं उनके साथ अच्छे रिश्ते बनाते है जिससे बच्चे परिवार के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. अभिभावकों को देखकर बच्चे बहुत कुछ सीखते हैं. अगर अभिभावक मारपीट करते हैं तो बच्चे भी वही करने लगते हैं.

शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने अभिभावकों को संबोधित करते हुए कहा- पैरेंटिंग वर्कशॉप एक नया प्रयास है. देश में पहली बार इस तरह का काम हो रहा है. बच्चों के साथ-साथ पैरेंट्स की भी क्लास लग रही है. सिसोदिया ने जोर देकर कहा कि अब हम बच्चों को पढ़ाई और अभिभावकों को पैरेंटिंग सिखाएंगे. मनीष सिसोदिया ने बच्चों के जीवन में नकारात्मक सोच दूर करने के लिए पैरेंट्स को सलाह दी कि वह लोग वैज्ञानिक थॉमस एडिसन की कहानी को याद रखें.

10वीं और 12वीं क्लास के स्‍टूडेंट के अभिभावकों से बात करते हुए मनीष सिसोदिया ने कहा- बच्चे बड़े होकर कुछ बनेंगे वो ठीक है,  लेकिन उनमें ये भाव भी होना चाहिए कि वो एक नागरिक भी बनेंगे. ऐसे में आप लोगों का पैरेंट्स होना समाज में बहुत बड़ा रोल अदा करने जैसा है. आपका योगदान बड़ा है.

सिसोदिया ने पेरेंट्स से कहा कि बच्चों को स्किल्‍ड करना स्कूल का काम है, लेकिन उनमें संस्कार डालना पैरेंट्स का काम है. बच्चों के लिए सकारात्मक नजरिए पर बोलते हुए सिसोदिया ने कहा- बच्चे टेंशन में ने रहें इसके लिए पैरेंट्स वर्कशॉप जरूरी है.

बच्चों से बातचीत करने की अहमियत पर बोलते हुए सिसोदिया ने कहा कि बातचीत का मतलब सवाल पूछना नहीं है. नही तो टीचर और पैरेंट्स में फर्क ही नही रहेगा.

बच्चों को अपने ऑफिस की बात शेयर करें. बच्‍चों को तब लगेगा कि अपनी बात भी पैरेंट्स से शेयर की जाए. बच्चों के साथ अच्छा बुरा क्या हो रहा है ये जानना जरूरी है.