नोटबंदी से बैंकों की हालत भी खराब, लोन सस्ते होने की उम्मीद करना बेकार

नई दिल्ली: एक तरफ अनुमान लगाया जा रहा था कि नोटबंदी से बैंकों के खजाने भर गए हैं लेकिन हो इसका उल्टा रहा है. सरकारी बैंकों के एनपीए(डूबने वाला लोन) लगातार बढ़ता ही जा रहा है. पिछले साल यानी 1 जनवरी 2016 से 31 दिसंबर 2016 तक सरकारी बैंकों के डूबत खाते में 56.4 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. इस बढ़ोत्तरी के साथ अब सरकारी बैंकों के कुल 6,14,72 करोड़ रुपये करीब करीब डूब गए हैं. आने वाली दो तिमाही में इसके और अधिक बढ़ने की आशंका है.

इसका एक बड़ा कारण नोटबंदी भी है, जिसकी वजह से छोटी और मध्यम औद्योगिक इकाइयां अपनी किश्तों का भुगतान नहीं कर सकी हैं. बता दें कि 9 नवंबर से मोदी सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था.

पिछले दो सालों में बैड लोन में 135 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो चुकी है. दो साल पहले यह बैड लोन 2,61,843 करोड़ रुपये थे, जो अब बढ़कर 6,14,72 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. अब बैड लोन पीएसयू बैंकों के ग्रॉस एडवांस का 11 फीसदी हो गया है, जबकि सरकारी और प्राइवेट बैंकों को मिलाकर दिसंबर 2016 तक कुल एनपीए 6,79,409 करोड़ रुपये हो गया है. यह सभी आंकड़े केयर रेटिंग्स एजेंसी द्वारा द इंडियन एक्सप्रेस के लिए एकत्र किए गए हैं.

कम से कम 5 बैंकों का कुल एनपीए अनुपात यानी कुल लोन की तुलना में कुल बैड लोन का अनुपात 15 फीसदी से अधिक हो चुका है. इंडियन ओवरसीज बैंक का एनपीए अनुपात 22.42 प्रतिशत है यानी इंडियन ओवरसीज बैंक से लोन दिए जाने वाले हर 100 रुपये के लोन में से 22.42 फीसदी लोन एनपीए में चला जाता है. वहीं दूसरी ओर यूको बैंक का एनपीए अनुपात 17.18 फीसदी, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का एनपीए अनुपात 15.98 फीसदी, आईडीबीआई बैंक का एनपीए अनुपात 15.16 फीसदी और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का एनपीए अनुपात 15.08 फीसदी है.