कैराना में पलायन की बात सच निकली, चुनाव के समय आई मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट


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कैराना में पलायने के मामले में मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट आ गई है. रिपोर्ट में पलायन की शिकायतों को सही बताया गया है. रिपोर्ट कहती है कि कानून व्यवस्था की खराब हालत और पुलिस की ढिलाई के कारण लोगों को इलाका छोड़ना पड़ा. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम की जांच में कई परिवारों ने स्वीकारा कि अपराधों की वजह से उन्हें घर छोड़ना पड़ा.

यही नहीं दुराचार व हत्या, छेड़खानी, वसूली के लिए हत्या, पुनर्वास के बाद बहुसंख्यक समुदाय के अल्पसंख्यक हो जाने से डेमोग्राफी बदलने की शिकायतें भी सही पाईं. आयोग ने टीम की सिफारिशों को मुख्य सचिव और डीजीपी को भेजकर आठ हफ्ते में कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) भी तलब की है.

चुनाव के समय आई रिपोर्ट

कैराना से पलायन का मुद्दा भाजपा ने जोर-शोर से उठाया था. तब तो समाजवादी पार्टी सरकार ने इसे झूठ बता खारिज कर दिया था. लेकिन अब मानवाधिकार आयोग की मुहर लग जाने के बाद भाजपा पश्चिम यूपी में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इसका जमकर इस्तेमाल कर सकती है.

राना में परिवारों के पलायन की शिकायतों की जांच कर रही मानवाधिकार आयोग की टीम ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि कानून व्यवस्था में विश्वास बहाल करने के लिए काम किया जाए ताकि लोग पलायन न करें.
यही नहीं यह भी सिफारिश की कि यूपी सरकार उच्चस्तरीय कमेटी बनाए जो कैराना छोड़कर गए परिवारों से मिले और उनकी शिकायतें सुनकर उन पर एक्शन ले. संभव हो तो परिवारों को लौटाने का प्रयास किया जाए. कैराना मामले की जांच में क्या तथ्य सामने आए और क्या सिफारिशें की गईं, पेश है रिपोर्ट…

आयोग ने आरोपों को गंभीर मानते हुए 10 जून 2016 को मुख्य सचिव व डीजीपी को चार सप्ताह में जवाब देने को कहा था. साथ ही आयोग के डीआईजी ने डिप्टी एसपी रवि सिंह, महिला इंस्पेक्टर सुमन कुमारी, इंस्पेक्टर सरोज तिवारी और अरुण कुमार को कैराना भेज कर जांच करवाई.
टीम ने पीड़ितों, चश्मदीदों, पुलिस प्रशासन के अधिकारियों से बात की. कैराना के सांसद हुकुम ‌सिंह के निजी सचिव से ऐसे 346 परिवारों की लिस्ट जारी की गई जो कैराना से पलायन कर चुके थे. इस लिस्ट में छह परिवारों का वेरिफिकेशन किया गया. देहरादून व सूरत जा चुके चार परिवारों से फोन पर बात की गई.