क्या नोटबंदी से पहले ही कालाधन सफेद करने का हो गया था जुगाड़? ये रहे परिस्थितिजन्य साक्ष्य

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नई दिल्ली: क्या मुंबई के खान परिवार और गुजरात के महेश शाह को पहले से नोटबंदी का अंदाज़ा था? आपको  हो सकता है ये चौंकाने वाली बात लगे लेकिन परिस्थिति जन्य साक्ष्य़ कहते हैं कि ऐसा ही था. इस योजना में सरकार ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर लोगों ने अपील की थी कि वो अपने काले धन को को 45 फीसदी पैसे देकर सफेद कर सकते हैं. इस योजना में अब तक दो ऐसे नाम सामने आ चुके हैं जिनके पास धन था ही नहीं फिर भी उन्होंने लाखों करोड़ की रकम सफेद कर ली. इन में मुंबई का जो परिवार शामिल है उसके सदस्‍यों के नाम अब्‍दुल रज्‍जाक मोहम्‍मद सैयद(खुद), मोहम्‍मद आरिफ अब्‍दुल रज्‍जाक सैयद(बेटा), रूखसाना अब्‍दुल रज्‍जाक सैयद (पत्‍नी) और नूरजहां मोहम्‍मद सैयद(बेटी) हैं. यह परिवार मुंबई के ब्रांदा इलाके में रहता है. परिवार के तीन सदस्‍यों के पैन कार्ड अजमेर के पते पर बने हैं. इसी साल सितंबर में ये लोग मुंबई आएं थे.

इससे पहले अहमदाबाद के रहने वाले महेशकुमार चंपकलाल शाह ने 13860 करोड़ रुपये की संपत्ति का एलान किया था. शाह को तीन दिसंबर को आयकर विभाग ने हिरासत में ले लिया था. मुंबई और अहमदाबाद में किए गए खुलासों की जांच की जा रही है और यहां की रकम को एक अक्‍टूबर को जारी किए गए आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया था. सरकार की ओर से एक अक्‍टूबर को बताया गया था कि 65250 करोड़ रुपये की अघोषित सं‍पत्ति का खुलासा हुआ है. बाद में इसमें सुधार कर आंकड़ा 67382 करोड़ रुपये बताया गया था.क्या नोटबंदी से पहले ही कालाधन सफेद करने का हो गया था जुगाड़? ये रहे परिस्थितिजन्य साक्ष्य

अचरज की बात ये है कि इन दोनों लोगों ने कालाधन न होते हुए भी इतनी रकम सफेद कराई तो क्यों? जाहिर बात है कि सिर्फ पागलपन के लिए तो कोई ऐसा नही करता. एक थ्योरी ये आ रही है कि दोनों ने दूसरों का पैसा काले से सफेद कराया. ये लोग समाज के अहम और ताकतवर लोग हो सकते हैं. लेकिन इस थ्योरी में थोड़ा छेद है. जाहिर बात है कि जब सरकार वचन दे रही है कि वो नाम जाहिर नहीं करेगी तो फिर कोई दूसरे के नाम से धन सफेद क्यो करेगा ?

दूसरी थ्योरी है नोटबंदी या डिमॉनिटाइजेशन की. इस थ्योरी में अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि अपनी आयकी घोषणा करने वाले खान परिवार और महेश शाह को नोटबंदी का पहले से अंदाज़ा था. या फिर उन लोगों ने जिन्हें नोटबंदी का अंदाज़ा था इन दोनों को अपने काले धन को सफेद करने में इस्तेमाल किया. जाहिर बात है नोटबंदी के बाद ये लोग अपनी एक घोषणा से किसी का भी कालाधन सफेद करने की शक्ति से संपन्न हो गए थे. फर्ज कीजिए किसी के पास अगर 100 करोड़ के पुराने नोट हैं तो महेश शाह के लिए बाएं हाथ का खेल है कि वो एक चैक देकर किसी से भी य़े रकम लेले और शान से इस रकम को सफेद करते हुए एक चैक उस शख्स को दे दे.

अंदाज़ा तो यहां तक लगाया जा रहा है कि गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ बदनाम नेताओं का धन सफेद करने के लिए इन दोनों का इस्तेमाल किया जाना था. बाद में ये काम नहीं हो पाया.

काम न हो पाने की दो वजहों को अहम माना जा रहा है ….

  1. आखिरी समय में इतनी बड़ी रकम की घोषणा करने के कारण इनका नाम आयकर अधिकारियों के सर्किल में तेज़ी से फैल गया था जिसके कारण खेल खराब होने का खतरा खड़ा हो गया.
  2. जिन लोगों को इनसे अपना धन सफेद कराना था उनका डिमॉनिटाइजेशन से पहले की कहीं इंतज़ाम हो गया.

इस योजना के तहत 30 सितंबर तक सरकार को 45 प्रतिशत टैक्स देकर अघोषित आय घोषित की जा सकती थी. इसके तहत अघोषित आय पर टैक्स चुकाने के बाद आय की स्वैच्छिक करने वाले पर आयकर विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं होनी थी.  गुजरात के कारोबारी महेश शाह ने योजना के आखिरी दिन 13 हजार करोड़ रुपये अघोषित आय की जानकारी आयकर विभाग को दी थी. शाह को टैक्स की 975 करोड़ रुपये की पहली किश्त 30 नवंबर तक चुकानी थी.