विश्लेषण: रैलियों में मोदी पर भारी पड़ रहे हैं राहुल, समझदारी में तो बीस नहीं इक्कीस दिखे.


Deprecated: Creation of dynamic property Maghoot_Theme::$loop_meta_displayed is deprecated in /var/www/vhosts/knockingnews.com/httpdocs/wp-content/themes/magazine-hoot/template-parts/loop-meta.php on line 108

अल्मोड़ा: नोटबंदी के बाद से दो बड़े बदलाव हुए हैं. एक तो ये कि राहुल गांधी का सुर ताल और अंदाज़ तीनों ही जबरदस्त तरीके से बदले हैं. अचानकर ही अल्हड़ से दिखने वाले राहुल गांधी बेहद परिपक्व और पढ़े लिखे नेता दिखाई देने लगे हैं और उनके भाषणों में Substance दिखाई देने लगा है. दूसरा बदलाव ये कि पीएम मोदी प्रधानमंत्रीकी गरिमा से दूर जोकरी करने वाले अपरिपक्व और छुटभैये नेता जैसा व्यवहार करने लगे हैं.

अाज का राहुल का अल्मोड़ा का भाषण लें तो आप पाएंगे कि  राहुल ने बेहद पुराने और मंजे हुए नेता की तरह भाषण दिया. उन्होंने अपने भाषण में सिर्फ मुद्दों की चर्चा की और राजनीतिक समझ से भरा भाषण दिया. उनकी दादी की तरह राजनीतिक विचारधाराओं की समझ और साहित्या का ज्ञान उनके भाषण में दिखाई देता था. राहुल ने सामाजिक समानता की बात की . ये कांग्रेस की  समाजवादी सोच का एक उदाहरण था जो साफ दिखाई दिया. उन्होंने कहा कि नोटबंदी काले धन के खिलाफ निर्णय नहीं थी. नोटबंदी आर्थिक डकैती थी. इसमें  मजदूरों का मजाक उड़ाया गया. हिन्दुस्तान को दो भागों में बांट दिया है. एक तरफ 1 प्रतिशत सुपर रिच लोग, दूसरी तरफ 99 प्रतिशत ईमानदार. 50 परिवारों को धन का ज्यादा भाग दिया गया. कालाधन 99 प्रतिशत ईमानदार लोगों के पास नहीं है.कालाधन सुपर रिच 1 प्रतिशत लोगों के पास है.

राहुल ने कहा नोटबंदी की वजह से 100 से ज्यादा लोग मर चुके हैं, उन्हें लोकसभा में याद करना चाहिए था. राहुल गांधी ने कहा कि उन्होंने जो सवाल पीएम से पूछे उसका उन्हें कोई जवाब नहीं मिला.

राहुल साहित्यिक अभिरुचियों का भी जबरदस्त इस्तेमाल कर रहे हैं. गुरुवार को राहुल गांधी ने पीएम मोदी के रवैये पर तंज कसते हुए गालिब का शेर पढ़ा था. वहीं शुक्रवार को उन्होंने बशीर बद्र को याद करते हुए कहा कि ‘लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं ख़ाते बस्तियां जलाने में..’न जो सवाल पूछ रहे थे उसका मज़ाक उड़ाया गया.’ गांधी ने यह बात करते हुए मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर पढ़ा और कहा ‘हर एक बात पे कहते हो कि तू क्या है…तुम्हीं कहो कि यह अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है.’

वहीं दूसरी तरफ मोदी का वाराणसी का भाषण बेहद सस्ता लगा. मोदी ने बिला वजह राहुल गांधी की नकल करने की कोशिश की और उनपर सस्ती टिप्पणियां की . मोदी को नहीं भूलना चाहिए था कि वे देश के  प्रधानमत्री है. उन्होंने राहुल पर और भी कई सस्ती टिप्पणियां की. सबसे ज्यादा सस्ता उनका राहुल की भूकंप वाली टिप्पणी का मज़ाक उड़ाना था . राहुल गांधी का नाम लिए बिना पीएम मोदी ने कहा ‘जबसे युवा नेता ने बोलना सीखा और बोलना शुरू किया है मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है. 2009 में पता ही नहीं चलता था कि इस पैकेट में क्या है. अब पता चला है. अगर वह न बोलते तो भूकंप आ जाता. देश को इतना बड़ा भूकंप झेलना पड़ता कि 10 साल तक भी देश नहीं उभर पाता. अच्छा है उन्होंने बोलना शुरू किया है. अब ‘भूकंप’ का कोई चांस नहीं है.’

मोदी चूंकि वरिष्ठ नेता है. वो सहारा वाले बयान का जवाब नहीं देना चाहते थे तो चुप रहते उनका मज़ाक उड़ाना अपेक्षाकृत बड़े नेता के मुंह से अच्छा नहीं लगा.  मोदी का राहुल की पैरोडी करना और उनकी नकल उतारना भी यही संदेश देता था कि वो राहुल के भाषण ध्यान से सुनते है और उनके वीडियो भी देखते हैं.  भाषण में वो एक तरफ राहुल को नौजवान नेता भी कहते हैं और दूसरी तरफ उनके भाषण ध्यान से बार बार सुनने कासंकेत भी देते हैं.

इसके विपरीत राहुल ागंधी ने हापुड़ में मोदी  मुर्दाबाद के नारे लगा रहे लोगों को ये कहकर चुप कराया कि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं उनकी मुर्दाबाद ठीक नही. इस एक टिप्णी ने साबित कर दिया  कि राहुल मोदी से ज्यादा परिवक्व तरीके से मंच पर पेश आ रहे हैं.