आखिर विपक्ष ने मान लिया राहुल का लोहा, नोटबंदी से बदला रुख

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नई दिल्ली: पिछले एक महीने में नोटबंदी या विमुद्रीकरण को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बयानों ने उन्हें कम से कम एक लाभ पहुंचाया है… 8 नवंबर की रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई नोटबंदी की घोषणा के बाद से अब तक राहुल गांधी की प्रतिक्रियाओं ने लगभग 15 अन्य पार्टियों की तरफ से तारीफ हासिल की है, भले ही कुछ को यह प्रशंसा न चाहते हुए करनी पड़ी है…
गौरतलब है कि राहुल गांधी की तुलना में कहीं वरिष्ठ राजनेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कभी राहुल गांधी को राजनैतिक मैदान में नौसिखिया बताते हुए खारिज कर दिया था, लेकिन अब उन्हें कहना पड़ा है कि राहुल ‘उस कोयल पक्षी जैसे हैं, जो सिर्फ बहार आने पर ही नज़र आते हैं…’
बुधवार को संसद में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ऐसे 15 नेता राहुल गांधी के साथ दिखाई दिए, जहां राहुल ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के अंदाज़ में पत्रकारों से ‘उनके होंठों की भाषा पढ़ने’ के लिए कहा, और घोषणा की कि उनके पास ऐसी जानकारी है, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘निजी भ्रष्टाचार’ की पोल खुल जाएगी…
शुरुआत से ही कांग्रेस का साथ देती आ रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता तारिक अनवर ने कहा, “हां, एक नेता के रूप में वह परिपक्व हुए हैं…”
कांग्रेस के ही कुछ नेताओं का मानना है कि लगातार कई राज्य विधानसभा चुनावों में हार का सामना करने के बाद केंद्र सरकार द्वारा अचानक लागू की गई नोटबंदी, जिससे देशभर में नकदी संकट पैदा हो गया है, की वजह से राहुल गांधी को मजबूती दिखाने का मौका हासिल हुआ… लेकिन यही नेता यह भी मानते हैं कि राहुल को सरकार-विरोधी आंदोलन की अगुवाई का मौका मिलने की एक वजह उनकी मां तथा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की गैरहाज़िरी है, जो बीमारी की वजह से कांग्रेस संसदीय दल की बैठक की अध्यक्षता करने की स्थिति में भी नहीं हैं…
सो, यह ज़िम्मेदारी राहुल गांधी के कंधों पर ही आ गई कि वह अपनी पार्टी के 44 सांसदों को बैठक में संबोधित करें और बैंकों व एटीएम पर लगी लम्बी-लम्बी लाइनों व देश के ग्रामीण इलाकों में पैदा हुए गंभीर नकदी संकट को लेकर सरकार को घेरने की रणनीति तैयार करें… अन्य पार्टियों के साथ होने वाली बैठकों में भी आधिकारिक रूप से नेता प्रतिपक्ष के पद पर बैठे कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे नहीं, राहुल गांधी ही पार्टी की ओर से बोलते हैं…
कांग्रेस पार्टी कई साल से राहुल गांधी से पार्टी की कमान संभालने का आग्रह करती आ रही है, और इस संबंध में अंतिम बार प्रस्ताव कुछ ही हफ्ते पहले पारित किया गया था. कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है, जो परिवार के नेतृत्व से सिर्फ खुश ही नहीं, उसकी आदी भी है, सो, अध्यक्ष पद पर राहुल की ताजपोशी का निर्णय बिल्कुल पारिवारिक फैसले जैसा है, जो जब भी लिया जाएगा, कबूल कर लिया जाएगा… लेकिन अब इस बात से कांग्रेस कुछ राहत महसूस कर सकती है कि अन्य पार्टियां भी राहुल गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के लिए तैयार नज़र आने लगी हैं…
इस मुद्दे पर वामदलों का रुख भी कांग्रेस के लिए खुशख़बरी है… मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के पी. करुणाकरण ने कहा, “राहुल जी विपक्ष की ओर से बोलने वाले नेता हैं…” माना जाता है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बेहद अच्छे ताल्लुकात रखने वाले सीपीएम प्रमुख सीताराम येचुरी भी अब अक्सर राहुल गांधी से फोन पर बात किया करते हैं… इसके अलावा दोनों के बीच कम से कम दो बार बैठक भी हो चुकी हैं…
जिन नेताओं का ‘पूरा’ समर्थन अब तक नहीं मिल पाया है, उनमें तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी शामिल हैं, जो नोटबंदी के खिलाफ आंदोलनों का नेतृत्व करती रही हैं, और उनमें कांग्रेस की शिरकत नहीं रही है, लेकिन बुधवार को ममता बनर्जी के प्रतिनिधि प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी के साथ खड़े दिखे… फिर भी मुश्किल लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की विरले मौकों पर ही आलोचना करने वाली ममता बनर्जी उनके पुत्र के लिए भी ऐसी ही दयानतदारी दिखाएंगी, और ऐसी किसी टीम में शिरकत करेंगी, जिसके ‘कप्तान’ राहुल गांधी हों…
NDTV पर सुनेत्रा चौधरी की रिपोर्ट, विवेक रस्तोगी द्वारा अनूदित courtsey-NDTV