लाश की तलाश में परेशान हैं वो लोग. जब लाश नहीं मिलती तो ठहर जाती है प्रगति


Deprecated: Creation of dynamic property Maghoot_Theme::$loop_meta_displayed is deprecated in /var/www/vhosts/knockingnews.com/httpdocs/wp-content/themes/magazine-hoot/template-parts/loop-meta.php on line 108

कोटा, राजस्थान: लोग लाश से दूरी बनाते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो लाशों की हमेशा तलाश में रहते हैं. अगर लाश न मिले तो परेशान हो जाते हैं. वो चाहते हैं कि लोग उन्हेंं शव दे दें ताकि काम चलता रहे.

शवों को दान करने को लेकर जागरूकता की कमी और मौत के बाद अंतिम संस्कार करने की प्रवृत्ति से जुड़े रहने की वजह से कोटा मंडल के कम से कम दो मेडिकल कॉलेजों के छात्रों का पढ़ाई करना मुश्किल हो रहा है.

कोटा और झालावाड के मेडिकल कॉलेजों में हालात यह है कि उन्हें जितने शवों की जरूरत है, उनमें से आधे ही मिल रहे हैं.

उन्होंने कहा डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त के दौरान शव प्राप्त करना व्यावहारिक रूप से मुश्किल हो गया है. कोटा के मेडिकल कॉलेज के शरीर रचना विभाग के प्रमुख डॉ. प्रीतम जयसवाल ने कहा कि एक कॉलेज में 150 स्नातक सीटें हैं और अध्ययन के लिए वार्षिक तौर पर कम से कम 15 शवों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि स्नातकोत्तर में छात्र को अपने अध्ययन के लिए अलग से एक शव की जरूरत होती है. जयसवाल ने कहा कि पिछले छह साल में कोटा मेडिकल कॉलेज को दान में 17 शव मिले हैं. उन्होंने कहा कि 17वां शव कोटा शहर के मोहन लाल झाबक (79) का था जो उनकी इच्छा के मुताबिक दिया गया था. झालावाड के मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य ने कहा कि उनके कॉलेज को ऐसे दान में कोई शव नहीं मिला है और अपनी जरूरत को जयपुर और उदयपुर के कॉलेज से पूरी कर रहा है.

झालावाड मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. आरके असेरी ने कहा कि पहले मेडिकल कॉलेज को पर्याप्त संख्या में ऐसे शव मिल जाते थे जिन पर कोई दावा नहीं करता था लेकिन पिछले 15 सालों में नागरिक समाज सक्रिय हो गया और वे ऐसे शवों का अंतिम संस्कार कर देता है या दफन कर देता है. झालावाड और कोटा के कॉलेजों का प्रशासन अब लोगों को शवों को दान करने के वास्ते प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान आयोजित कर रहा है.