इस अखबार को सैल्यूट, नोटबंदी में भूखे मरते मज़दूरों का मामला उठाया, रोटी भी नसीब नहीं

नकदी की कमी के कारण पूरे दिल्ली एनसीआर में पिछले 10 दिन से जितने निर्माण काम हो रहे थे सारे बंद हो गए हैं. मजदूरों के के पास अपने जो इक्का दुक्का नोट थे वो खत्म हो गए हैं. अब खड़ा हुआ है रोज़ी रोटी का संकट. लोग लाइन में लगने वालों को तो खाना बांट रहे हैं इनके पास तो राशन भी नहीं है. अखबार देशबंधु ने ये रिपोर्ट छापी है. इस अखबार की तारीफ करनी होगी विरोध और समर्थन के बयानों की राजनीति के बीच ये जनता का असली दर्द सामने लाया. इसके लिए ज़रूर इसे बधाई देनी चाहिए.

ये है देशबन्धु की रिपोर्ट जस की तस

नोटों की बंदी की मार के असर से मजदूरी कर रोज कमाने और रोज खाने वाले परिवारों का चूल्हा ठंडा पडऩे लगा है. बाजारों में 100-50 के नोटों की कमी की वजह से मजदूरों, राज मिस्त्री, पेंटर, प्लंबर जैसे काम करने वाले लोगों को एक सप्ताह से काम नहीं मिल रहा. बैंकों में कई घंटे लाइन में खड़े होकर 100-100 के नोट हासिल करने वाले लोग भी इन्हें मजदूरी में खर्च करने की बजाय रोजमर्रा की चीजों के लिए संभाल कर रख रहे हैं. जिन घरों में चिनाई, बेलदारी, पेंटिंग का काम चल भी रहा था, उन लोगों ने भी काम रोक दिया है. यही वजह है कि शहर के हजारों मजदूरों के परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

पहला केस

बुलंदशहर का हैदर अली फिलहाल गाजियाबाद के विजय नगर में रहता है और बेलदारी कर परिवार का पेट पालता है. हैदर अली की मानें तो जब से 1000-500 के नोटों पर बंदिश लगी, तब से उसे काम नहीं मिला. जो इक्का-दुक्का काम मिलने की संभावना भी बनी तो काम कराने वाले लोगों ने पहले ही कह दिया कि काम के बदले छुट्टे नोट नहीं मिलेंगे 500 का नोट दिया जाएगा. अब 500 के नोट को लेकर खुले नोट लौटाने का संकट और फिर इस नोट को बाजार में चलाने की परेशानी. हैदर अली की मानें तो 9 नवम्बर से उसे काम नहीं मिला.

दूसरा केस

रवि पेंटर, राजू पेंटर और प्लंबर का काम करने वाले मोहन के साथ-साथ उनके परिवारों पर भी नोट बंदी का ऐसा असर पड़ा कि वह संकट के दौर से गुजर रहे हैं.

काम की तलाश में यह तीनों रोजाना की तरह शनिवार को भी निकले और तुराब नगर के पीछे लेबर चौक पर पहुंचे. बाइक-स्कूटर पर आकर इनके पास रुकने वाला हर शख्स इन्हें ऐसा लगता कि मानों उन्हें काम पर ले जाने आया है, लेकिन दोपहर बाद तक लेबर चौक पर बैठने के बाद बीते पांच दिन की तरह शनिवार  को भी इन्हें काम नहीं मिला.

निराश-हताश यह तीनों दोपहर बाद घर लौट गए. रवि, राजू और मोहन का कहना है कि छुट्टे नोटों की वजह से अब लोगों ने काम बंद कर दिया. लोग अपने गुजारे की चिंता में उनके परिवारों की फिक्र भूल गए. 8 नवम्बर को नोट बंदी की घोषणा से पहले लेबर चौक पर लोग बेलदारी के लिए 350 रुपए, राज मिस्त्री 600 रुपए और पेंटर 700 रुपए दिहाड़ी लेते थे.

अब एक सप्ताह से काम न मिलने पर रोजी रोटी के संकट से जूझ रहे यह लोग कम दिहाड़ी पर भी काम करने के लिए तैयार हैं, लेकिन काम फिर भी नहीं मिल रहा.

इनका कहना है कि पसीना बहाने का दाम भले ही कम मिल जाए, मगर बस इतना हो जाए कि घर का चूल्हा चलता रहे. with thanks and courtsey Deshbandhu.com