देश के ग्रामीण बैंकों पर ‘हत्या’ का आरोप, ले चुके हैं 2474 से ज्यादा किसानों की जान, गुंडे भी रखते हैं बैंक

नई दिल्ली: नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी ने जो खुलासा किया है उसके बाद देश की पूरी व्यवस्था पर सवाल खडे कहो गए हैं. देश का पेट भरने वाले किसानों को छोटी मोटी फायनेंस कंपनियां जमकर टॉर्चर कर रहे हैं. माइक्रोफाइनेंस कंपनियों में ग्रामीण बैंक जैसे संस्थान आते हैं.

पहली बार एनसीआरबी ने डाटा का इस तरह से विभाजन किया है. वहीं डाटा के मुताबिक कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या 2015 में लगभग तीन गुणा बढ़ी थी. 2014 में जहां 1,163 किसानों ने आत्महत्या की थी वहीं 2015 में 3,097 किसानों ने आत्महत्या की. ये आंकड़ा साफ बताता है कि महाजनों से ज्यादा किसानों पर बैंक  मानसिक प्रताड़ना करते हैं.

डाटा ने चौकाने वाला खुलासा किया है. डाटा के मुताबिक यह बात सामने आई है कि जिन किसानों ने कर्ज न चुका पाने के कारण खुदकुशी की उनमें से 80 फीसद किसानों ने बैंकों से कर्ज लिया था न की महाजनों से. आंकड़े 2015 के हैं. डाटा के मुताबिक जिन 3,000 किसानों ने 2015 में आत्महत्या की थी उनमें से 2,474 ने बैंकों या किसी माइक्रो फाइनैन्स कंपनी से कर्ज लिया था.

इसके अलावा 2014 में जहां 969 किसानों ने आत्महत्या फसल के बर्बाद होने की वजह से की थी वहीं 2015 में यह 1,562 पर पहुंच गया. राज्यों के हिसाब से देखें तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है. डाटा के मुताबिक महाराष्ट्र में 1,293 किसानों ने आत्महत्या की, वहीं कर्नाटक में 946 और तेलांगना में 632 किसानों ने आत्महत्या की. इनमें से ज्यादातर किसानों ने बैंकों से कर्ज किया था. वहीं तेलांगना में 131 और कर्नाटक में 113 किसानों ने सूदखोर महाजन से कर्ज लिया था.

वहीं इन आंकड़ों पर पुराने योजना आयोग के पूर्व सदस्य अभिजीत सेन ने कहा कि सूदखोरों से कर्ज लेने में किसानों को आसानी होती और एक तरह से यह लोन बैंकों द्वारा दिए गए लोन के मुकाबले ज्यादा फ्लैक्सिबल होते हैं. सेन ने आगे कहा कि बैंक लोन कम फ्लैक्सिबल होते हैं और माइक्रो फानैन्स कंपनियों का हाल इससे बुरा है, वे लोन वसूलने की कोशिश में गुडों द्वारा कर्जदारों को धमकाते हैं. गौरतलब है कि किसानों की आत्महत्या 2014 के मुकाबले 2015 में 41.7 फीसद तक बढ़ी है. 2014 में आंकड़ा 5,650 और जो 2015 में बढ़कर 8,007 तक पहुंच गया.